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This Article is From Oct 26, 2023

Karwachauth 2023 : ऐसे हुई करवाचौथ की शुरुआत, द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था व्रत

करवाचौथ का व्रत रखने के लिए महिलाएं बहुत जतन करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं करवा चौथ के त्योहार को मनाने की परंपरा कब से शुरू हुई? करवाचौथ (Karwachauth) के व्रत से जुड़ी कुछ जानकारी हम आपको देने जा रहे हैं.

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Karwachauth 2023 : ऐसे हुई करवाचौथ की शुरुआत, द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था व्रत

Karwachauth 2023 : सुहागिनों के सबसे महत्वपूर्ण और अखंड सौभाग्य का वरदान देने वाला करवाचौथ (Karwachauth) त्यौहार इस साल 1 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा. करवाचौथ का व्रत रखने के लिए महिलाएं बहुत जतन करती है और निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं करवा चौथ के त्योहार को मनाने की परंपरा कब से शुरू हुई? करवाचौथ (Karwachauth Fasting) के व्रत से जुड़ी कुछ जानकारी हम आपको देने जा रहे हैं.

करवाचौथ के व्रत में कथा सुनने का है महत्त्व

करवाचौथ के व्रत में भगवान शिव, माता-पार्वती, कार्तिकेय गणेश और चंद्र देवता की पूजा की जाती है. करवा चौथ व्रत वाले दिन कथा सुनना बेहद ज़रूरी माना गया है. करवा चौथ का व्रत के पीछे की मान्यता है कि करवा चौथ की कथा (Karwachauth Katha) सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है. इसके साथ ही उनके घर में सुख, शांति, समृद्धि आती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है.

द्रौपदी ने भी रखा था करवाचौथ का व्रत

महाभारत (Mahabharat) में भी करवा चौथ के महत्व के बारे में बताया गया है. भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी (Draupadi) को करवा चौथ की कथा सुनाते हुए कहा था कि पूरी श्रद्धा और विधि पूर्वक और सच्चे मन से इस व्रत को रखने से समस्त दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं, तब श्रीकृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा था और इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों ने महाभारत के युद्ध में जीत हासिल की थी.

चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती है महिलाएं

करवा चौथ (Karwachauth) का व्रत सुहागिन महिलाओं के अलावा वे लड़कियां भी रखती हैं, जिनकी शादी होने वाली है या फिर शादी की उम्र हो गई है. वे इस व्रत को रखती हैं और संध्या के समय शुभ मुहूर्त में पूजा कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं.

ब्रह्मदेव ने कहा था व्रत रखें

करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है, पौराणिक कथाओं की मान्यता है कि एक बार देवता और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी, भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे, ब्रह्मदेव ने कहा इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे और अच्छे मन से उनके विजय की कामना करनी चाहिए.

देवताओं की पत्नी ने रखा था व्रत

ब्रह्मदेव ने ये वचन दिया कि ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं को निश्चित रूप से जीत मिलेगी. ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी ने स्वीकार किया और कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की जीत के लिए प्रार्थना की और ब्रह्मदेव ने कहा था वैसा ही हुआ, उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस ख़बर को सुनकर सभी देवताओं की पत्नियों ने अपना व्रत रखा और उस समय आसमान में चाँद निकल आया था, तभी से करवाचौथ के व्रत की परंपरा शुरू हुई और महिलाएं आज चाँद को देखकर पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती है.

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