
छत्तीसगढ़ के मध्य में बसा बालोद जिला वन, जल और खनिज संसाधनों से समृद्ध है. बालोद जिले को 1 जनवरी 2012 को दुर्ग से विभाजित कर एक स्वतंत्र जिला बनाया गया. 3.5 लाख हेक्टेयर के एरिया में फैले इस जिले में लौह अयस्क का विशाल भंडार है, जो भिलाई स्टील प्लांट की लाइफ लाइन होने के साथ छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति को सबल बनाने में मददगार है. प्राकृतिक संपदा से समृद्ध होने के साथ ही ये जिला इतिहास और कई धरोहरों को अपने अंदर सहेजे हुए है.
जिले के लिए वरदान है राजहरा माइंस
बालोद जिला दल्ली राजहरा के लौह अयस्क की खदानों के लिए मशहूर है. राजहरा माइंस जिले की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान माना जाता है. यहां हेमेटाइट प्रकार का लौह अयस्क पाया जाता है. इस माइन से साल 1955 से उत्खनन किया जा रहा है. भिलाई स्टील प्लांट के लिए बड़ी मात्रा में यहां ये लौह अयस्क की सप्लाई होती है.
कृषि उपज में भी अग्रणी है बालोद
जिला में तांदुला, खरखरा और गोंदली डैम की बदौलत सिंचाई की अच्छी सुविधा उपलब्ध है इसलिए यहां कृषि उत्पादन भी अच्छा है. धान, चना, गन्ना और गेहूं यहां की मुख्य फसल है. 1921 में बनाए गए तंदुला बांध से सिंचाई की सुविधा तो मिलती ही है, साथ ही यहां से भिलाई स्टील प्लांट में भी पानी पहुंचाया जाता है. बांध के पास सुआ रिसॉर्ट है, जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है.
जिले में हैं ये मशहूर मंदिर
सियादेवी मंदिर
माता सीता का ये मंदिर हरियाली और झरनों के बीच बसा है. किवदंती है कि वनवास काल के समय भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण यहां आए थे. इस मंदिर को छत्तीसगढ़ के मशहूर मंदिरों में गिना जाता है.
गंगा मैया मंदिर
बालोद-दुर्ग रोड पर झलमला में स्थित गंगा मैया मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. माना जाता है कि एक मछुआरे ने एक छोटी सी झोपड़ी के रूप में मंदिर बनाया था. बाद में स्थानीय लोगों ने मिल कर यहां विशाल मंदिर बनवाया.
एक नजर में बालोद
- भौगोलिक क्षेत्रफल - 3,52,700 हेक्टेयर
- जनसंख्या 8,26,165
- विधानसभा क्षेत्र- 3
- ग्राम पंचायत 421
- नगर पालिका 2
- नगर पंचायत 5
- भाषा हिंदी, छत्तीसगढ़ी,