
आदिवासी शब्द जैसे ही सामने आता है तो आमतौर पर झारखंड और छत्तीसगढ़ की तस्वीर सामने आती है...लेकिन हकीकत ये है कि देश में सबसे ज्यादा आदिवासी मध्यप्रदेश में रहते हैं. ये मुख्य तौर पर झाबुआ, मंडला, खरगौन, धार, बड़वानी, बैतूल, होशंगाबाद, उमरिया, अनूपपुर, सीधी, शहडोल, बालाघाट, हरदा, श्योपुर और ग्वालियर इलाके में रहते हैं. मध्यप्रदेश के अधिकांश जनजाति समुदाय अधिकांशत: जंगल के निकट निवास करते हैं. इसी वजह से उनके देवी-देवता और गोत्र भी जंगल से ही संबंधित है. अहम ये है कि इनकी परंपराएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी हू-ब-हू सहेज कर रखी जाती रही हैं.

मध्यप्रदेश के आदिवासियों ने अपनी परंपराओं के काफी सहेज कर रखा है
मसलन भील जनजाति समूह में हरहेलबाब या बाबदेव, मइड़ा कसूमर, भीलटदेव, खालूनदेव, सावनमाता, दशामाता, सातमाता पूजी जाती हैं तो वहीं गोंड समुदाय में महादेव, पड़ापेन या बड़ादेव,लिंगोपेन,ठाकुरदेव, चंडीमाई, खैरमाई देवता माने जाते हैं. इसके अलावा बैगा जनजाति में बूढ़ादेव, बाघदेव, भारिया दूल्हादेव, नारायणदेव, भीमसेन पूजे जाते हैं. ये सभी नाम कहीं न कहीं जंगलों से संबंधित हैं. यही उनके रहन-सहन में भी दिखता है. मसलन आदिवासी महिलाओं के गहने जुरिया,पटा, बहुँटा, चुटकी, तोड़ा, पैरी, सतुवा, हमेल, ढार, झरका, तरकीबारी और टिकुसी है. ये सभी जंगल से ही तैयार होती हैं. भील जाति की महिलाएं मस्तक पर बोर गूँथ कर लाड़ियाँ झुलाती हैं. जनजातीय पुरुष भी कान, गले और हाथों में विभिन्न आभूषण पहनते हैं. गोदना सभी स्त्रियों का प्रिय पारंपरिक अलंकार है. आदिवासियों के भोजन पर ध्यान दें तो कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, साँवा, चना, पिसी और चावल उनके थाली में पाए जाते हैं. हाल के वर्षों में कई आदिवासी आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाते भी दिख जाते हैं पर परंपराओं के प्रति उनका अपनापन सराहनीय है.