Parali Pollution: देश में अक्टूबर और नवंबर के महीने में हर वर्ष प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है. हालात इतने खराब हो जाते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में बिना मास्क के चलना भी मुश्किल हो जाता है. लिहाजा, इस पर लगाम लगाने के लिए संसद की एक समिति ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के उद्देश्य से पराली का बेंचमार्क यानी न्यूनतम मूल्य तय करने और धान की जल्द तैयार होने वाली फसल को अपनाने की सलाह दी है. साथ ही, समिति ने कहा है कि "रेड एंट्री" वाले किसानों के लिए एक निश्चित समय बाद इससे बाहर निकलने का भी प्रावधान होना चाहिए.
समिति ने ये दिए हैं सुझाव
अधीनस्थ विधान संबंधी समिति के अध्यक्ष मिलिंद मुरली देवड़ा ने मंगलवार को राज्यसभा में एनसीआर और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए गठित आयोग पर अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है. समिति की अनुशंसा में कहा गया है कि आयोग को राज्य सरकारों से मशविरा कर पराली के लिए एक मानक न्यूनतम मूल्य तय करना चाहिए, जो एमएसपी की तरह किसानों को पराली की बिक्री पर एक निश्चित आय की गारंटी प्रदान करे. इसकी हर साल समीक्षा का भी सुझाव दिया गया है. अनुशंसा में कहा गया है कि जिन इलाकों में पराली के अंतिम उपभोक्ता नहीं हैं, वहां 20-50 किलोमीटर पर भंडारण की सुविधा उपलब्ध कराई जाए, ताकि किसानों पर पराली की ढुलाई का ज्यादा बोझ न पड़े.
पराली पर राष्ट्रीय नीति बनाने की सिफारिश
समिति ने कहा है कि पराली जलाने की एक प्रमुख वजह यह है कि धान की कटाई के बाद किसानों के पास रबी की फसल की बुवाई के लिए 25 दिन से ज्यादा का समय नहीं रहता है. ऐसे में पूसा-44 जैसी धान की जल्द तैयार होने वाली फसल को प्रोत्साहित कर इस समस्या का हल निकाला जा सकता है. विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से रायशुमारी के बाद तैयार इस रिपोर्ट में कृषि अपशिष्ट से जैव ऊर्जा उत्पादन के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय नीति बनाने की भी सिफारिश की गई है. इस नीति को तैयार करने में कृषि मंत्रालय के साथ नवीन और नवीनीकृत ऊर्जा मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, उद्योग, स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श का सुझाव दिया गया है.
किसानों को राहत देने का सुझाव
समिति ने "रेड एंट्री" के नियमों में भी कुछ बदलाव के सुझाव दिए हैं. उसने कहा कि यदि कोई किसान दोबारा पराली जलाने का दोषी नहीं पाया जाता है, तो एक निश्चित समय के बाद उसका नाम अपने-आप "रेड एंट्री" से हट जाना चाहिए. साथ ही, यह भी प्रावधान होना चाहिए कि किसान यदि पराली निष्पादन के लिए पर्यावरण अनुकूल तरीके अपनाता है, तो वह खुद भी अपना नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू करवा सके.
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समिति ने पराली जलाने संबंधी नियमों में कार्रवाई और जुर्माने से जुड़े कई प्रावधानों में स्पष्टता लाने का भी सुझाव दिया है. मसलन, उसने "छोटे और सीमांत किसान" की स्पष्ट परिभाषा की आवश्यकता पर जोर दिया है. इसके अलावा अधिकारियों की जिम्मेदारी में भी स्पष्टता लाने की सिफारिश की गई है.