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महिलाओं को पीरियड लीव: जापान और स्पेन से क्या सीख सकता है भारत?

Smriti Irani: महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा के एक सवाल- 'महिला कर्मचारियों को पेड छुट्टियां देने की दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं.' पर कहा कि माहवारी कोई विकलांगता नहीं है. इसलिए पेड लीव देने की जरूरत नहीं है.

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महिलाओं को पीरियड लीव: जापान और स्पेन से क्या सीख सकता है भारत?
Menstruation Leave: जापान और स्पेन से क्या सीख सकता है भारत?

महिलाओं को माहवारी के दौरान दिए जाने वाला पेड लीव (Menstruation Leave) एक बार फिर चर्चाओं में है. दरअसल, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा (Manoj Kumar Jha) के एक सवाल- 'महिला कर्मचारियों को माहवारी के लिए कुछ पेड छुट्टियां देने की दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं.' पर कहा कि माहवारी स्वाभाविक प्रक्रिया है, ये कोई विकलांगता नहीं है. इसलिए पेड लीव देने की जरूरत नहीं है. जाहिर है कि स्मृति ईरानी के इस बयान के बाद एक बार फिर पेड लीव पर बहस तेज हो गई है, क्या भारत में इस तरह के प्रावधान जरूरी हैं?

बता दें कि इसी साल 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने महिला कर्मचारियों और छात्राओं के लिए माहवारी के दौरान छुट्टी की मांग को लेकर दायर की गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया था. चीफ जस्टिस डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जनहित याचिका को खारिज करते हुए नीतिगत मामला बताया था. वहीं हमेशा पेड लीव पर बहस के दौरान एक तर्क ये भी दिया जाता रहा है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महिलाओं की भागीदारी लगभग 18 फीसदी है और अगर ऐसे में माहवारी के दौरान उन्हें छुट्टियों का प्रावधान लाया जाता है, तो उस पर भी असर पड़ेगा.

ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर पूरा मामला क्या है? क्या वाकई माहवारी के दौरान छुट्टियों की जरूरत है? जमशेदपुर में रहने वाले डॉक्टर प्रशांत रंजन कहते हैं कि महिलाओं को माहवारी होती है, उनमें से आधे से ज्यादा महिलाओं को हर महीने में एक या दो दिन तक दर्द होता है और कुछ को इतना ज्यादा दर्द होता है कि वो अपने नियमित काम को भी ठीक से नहीं कर पाती हैं. माहवारी के दौरान महिलाओं में सिर्फ दर्द जैसी समस्याएं नहीं होती, बल्कि मेंटली, फिजिकली और साइकोलॉजिकली चेंजेस भी होते हैं. जिसकी वजह से काम पर इसका प्रभाव पड़ता है. महिलाएं उस दौरान अपने काम पर ज्यादा फोकस नहीं कर पाती हैं और उन्हें आराम की जरूरत होती.

भारत में किन राज्यों ने की है पहल?

इसी साल सितंबर महीने में मध्य प्रदेश के जबलपुर की धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने माहवारी के दौरान महिलाओं को हर महीने में 6 दिनों की छुट्टियां देने का ऐलान किया है, जो मेडिकल लीव नहीं माना जाएगा. हालांकि सबसे पहले साल 1992 में लालू यादव की सरकार ने महिला कर्मचारियों को माहवारी के दौरान हर महीने दो दिन की छुट्टी लेने की मंजूरी दी थी. बता दें कि बिहार भारत का पहला राज्य है, जहां माहवारी में छुट्टी देने का प्रावधान लागू हुआ. इसके अलावा केरल में भी ये प्रावधान लागू है. दरअसल, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसी साल ये घोषणा की थी कि राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत आने वाली सभी विश्वविद्यालयों में लड़कियों को माहवारी के दौरान छुट्टी दी जाएगी. हालांकि तब कांग्रेस सांसद हिबी ईडन ने कहा था कि वो एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आएंगे, ताकि कामकाजी महिलाओं को भी माहवारी के दौरान पेड लीव मिल सके.

अरुणाचल प्रदेश से आने वाले सांसद, निनांग एरिंग ने एक प्राइवेट मेंबर बिल, मेन्सटूरेशन बेनिफिट बिल 2017 लोकसभा में पेश किया था. इस बिल में सरकारी और निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दो दिन की छुट्टी देने का प्रस्ताव दिया गया था. 

दरअसल, साल 2017 में देश में पहली बार अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सदस्य निनॉन्ग एरिंग ने द मेन्स्ट्रुएशन बैनिफिट बिल 2017 का प्रस्ताव रखा था. जिसमें पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं के लिए 4 दिन की पेड पीरियड लीव देने की बात कही गई थी. साथ ही ये भी कहा गया था कि अगर महिला इस दौरान छुट्टी नहीं लेना चाहती तो उसे 4 दिन के लिए दिनभर में 2 बार आधे-आधे घंटे का आराम दिया जाना चाहिए. अगर कोई कंपनी मालिक ऐसा नहीं करे तो उस पर जुर्माना और जेल भेजने की सजा का प्रावधान होना चाहिए. हालांकि ये बिल संसद में रद्द कर दिया गया था.

पेड लीव पर क्या कहती हैं जबलपुर धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की छात्रा?

एनडीटीवी के सहयोगी संजीव चौधरी ने पेड लीव के मुद्दे पर कुछ छात्रों से बातचीत की.

बातचीत दौरान जबलपुर धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की छात्रा संस्कृति सक्सेना कहती हैं कि यूनिवर्सिटी में मासिक अवकाश के प्रावधान से छात्राओं पर अब क्लासेज जाने के लिए किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं है. इसके पहले क्लास जाना एक मजबूरी होती थी और इस दौरान ध्यान केंद्रित करने में काफी मुश्किल का सामना करना पड़ता था. इस सकारात्मक कदम ने छात्राओं का न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक तनाव भी कम कर दिया है. साथ ही साथ इस प्रकार के विषयों पर खुलकर बातचीत के लिए एक बेहतर स्थान को भी विकसित किया है.

जबलपुर धर्मशास्त्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की ही छात्रा अनायदा खान कहती हैं कि आप किसी बीमार व्यक्ति से काम करने के लिए नहीं कहेंगे, लेकिन महिलाओं से केवल काम के लिए ही नहीं बल्कि उस दौरान शारीरिक दर्द और असुविधा महसूस करने के बावजूद पूर्ण क्षमता से काम पर आने की अपेक्षा करते हैं. 

वो आगे कहती हैं कि हां, मासिक धर्म सामान्य है और उसके साथ आने वाला दर्द भी सामान्य है, इस दर्द को मानना और इसका समाधान ढूंढना ही तर्कसंगत है.

वहीं पीएचडी स्कॉलर शुभ्रांगना पुंडीर कहती हैं कि पिछले कुछ समय से महिलाओं का मासिक धर्म वाद-विवाद का विषय रहा है. हमने स्मृति ईरानी की भांति इस पर लोगों की प्रतिक्रिया देखी है कि यह मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से असम्मान और भेदभावपूर्ण है. यह अमानवीय है कि किसी व्यक्ति को तब काम पर आने के लिए और उसे सौंपे गए अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए कहा जाता है जब वह कष्ट या परेशानी में हो.

शुभ्रांगना पुंडीर आगे कहती हैं कि मासिक धर्म अवकाश से दफ्तर और स्कूल कॉलेज में महिलाओं के लिए बेहतर माहौल बनेगा, क्योंकि यह स्वीकार करना होगा कि शारीरिक कष्ट के साथ साथ यह एक जैविक प्रक्रिया भी है और महिलाओं के शरीर के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया है. पीरियल लीव का विरोध पुरुष प्रधान समाज करता है, क्योंकि वो महिलाओं की जरूरतों को नहीं समझता है.

पीएचडी स्कॉलर शुभ्रांगना पुंडीर कहती हैं कि केंद्र सरकार के लिए यह उचित नहीं है कि वह महिलाओं को शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रभावित करने वाली एक समस्या से मुंह फेर ले.

किन देशों में महिलाओं को पेड लीव 

स्पेन में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को हर महीने में तीन दिन की छुट्टी दी जाती है. साथ ही इन तीन दिनों की छुट्टियों को 5 दिनों तक बढ़ाने का भी विकल्प दिया गया है. बता दें कि स्पेन यूरोप का पहला देश है, जहां महिलाओं को पेड लीव दी जा रही है.

एशिया में जापान पहला देश है, जहां महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान छुट्टी देने का कानून लाया गया था. जापान में पीरियड लीव को लेबर लॉ के तहत लाया गया है. यहां महिलाओं को साल 1947 से ये छुट्टियां दी जाती हैं. इसके अलावा साल 1948 में इंडोनेशिया महिलाओं के लिए ऐसी नीति लेकर आया था. यहां दो दिन की पीरियल लीव मिलती है. हालांकि इससे पहले 1922 में सोवियत संघ ने इसके लिए नेशनल पॉलिसी बनाई थी.

बता दें कि इन देशों में जो कानून है उसमें कहा गया है कि किसी भी महिला को महावारी के दौरान परेशानियां होती है, तो उनसे काम नहीं करवाया जा सकता है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस, ताइवान, इंग्लैंड, दक्षिण कोरिया, अफ्रीका, फिलीपींस, जाम्बिया जैसे देशों में भी महावारी के दौरान महिलाओं को एक दिन की छुट्टी दी जाती है.

अगर बात भारत की जाए तो यहां,जोमैटो बायजू, स्विगी, मातृभूमि, बैजू, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर जैसी 12  कंपनियां महावारी के दौरान महिलाओं को पीरियड लीव दे रही है.

बिहार ने दिखाई राह, कहां से शुरु हुआ आंदोलन?

साल 1991, नवंबर महीने में बिहार में पीरियड लीव को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू हुई. ये हड़ताल लगभग 32 दिन चली थी. जिसके बाद उन्हें यह हक मिला. वो दिन था 2 जनवरी 1992. इसके बाद देश में बिहार ऐसा पहला राज्य बना जहां महिला कर्मचारियों को 2 दिनों की पीरियड लीव दी जाती है. इसकी शुरुआत लालू प्रसाद सरकार ने की थी. इसके बाद 1997 में मुंबई में स्थित कंपनी कल्चर मशीन ने 1 दिन की छुट्टी देने की शुरुआत की. साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने भी पीरियड लीव देने का ऐलान किया.

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