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Jagdeep Dhankhar News: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे में आर्टिकल 67(ए) का उल्लेख, जानिए क्या कहता है संविधान?

Jagdeep Dhankhar News: विशेषज्ञों का कहना है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से अब भारत के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. विशेषज्ञों का कहना है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, इसलिए यह पद लंबे समय तक खाली नहीं रह सकता.

Jagdeep Dhankhar News: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे में आर्टिकल 67(ए) का उल्लेख, जानिए क्या कहता है संविधान?
Jagdeep Dhankhar News: जगदीप धनखड़

भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राजस्थान के ग्रामीण इलाके से भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक तक जगदीप धनखड़ का सफर, दृढ़ता, बहुमुखी प्रतिभा और जनसेवा की कहानी है. वे चार दशकों से भी ज्यादा समय से सार्वजनिक जीवन में हैं. उनका इस्तीफा ऐसे समय में आया है, जब उनके कार्यकाल के अभी दो साल बाकी हैं. अगस्त 2022 में पदभार ग्रहण करने वाले धनखड़ ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र भेज दिया, जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 67(ए) का जिक्र किया है. जगदीप धनखड़ ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया है और इसे स्वीकार कर लिया गया है. अब राज्यसभा के उपसभापति उनकी जिम्मेदारियों को संभालेंगे.

क्या है आर्टिकल 67(ए)?

संविधान में ऐसी सभी स्थितियों के लिए प्रावधान हैं, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा पद छोड़ना भी शामिल है, चाहे वह इस्तीफे, मृत्यु या स्वास्थ्य कारणों से हो. इस्तीफे की स्थिति में दो महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं. पहला यह है कि नए उपराष्ट्रपति का चुनाव आम तौर पर दो महीने के भीतर होना चाहिए. ऐसे में अब नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होगा.

जगदीप धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला दिया, जिसमें उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का प्रावधान है. संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अपने हाथ से लिखे पत्र द्वारा अपने पद से इस्तीफा दे सकता है. यह इस्तीफा तुरंत माना जाएगा. उपराष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति को ही अपना इस्तीफा देना होता है.

अपने पांच साल के कार्यकाल से पहले कभी भी उपराष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं, बस उन्हें राष्ट्रपति को एक लिखित त्यागपत्र सौंपना होगा. यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67 के अंतर्गत आती है, जो उपराष्ट्रपति के कार्यकाल की रूपरेखा तय करता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से अब भारत के नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. विशेषज्ञों का कहना है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, इसलिए यह पद लंबे समय तक खाली नहीं रह सकता.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, इस बात की प्रबल संभावना है कि धनखड़ के उत्तराधिकारी का चुनाव जल्द ही होगा, जैसा कि संसद के ऊपरी सदन के कामकाज में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा अनिवार्य किया गया है. पिछले एक साल में धनखड़ को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, हाल ही में उन्हें नैनीताल में भर्ती होना पड़ा था. उनकी बीमारी की सटीक प्रकृति का खुलासा नहीं किया गया है.

ऐसा रहा धनखड़ का सफर

18 मई, 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक छोटे से गांव किठाना में जन्मे जगदीप धनखड़ एक साधारण किसान परिवार से हैं. उन्हें अक्सर 'किसान पुत्र' कहा जाता है और यही पृष्ठभूमि भाजपा ने बाद में उनके उपराष्ट्रपति पद के नामांकन के दौरान अपने राजनीतिक संदेश में भी उजागर की.

उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल से पूरी की, जो कई उल्लेखनीय सैन्य और सार्वजनिक सेवा हस्तियों को तैयार करने के लिए जाना जाता है. बाद में उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की.

धनखड़ ने 1979 में राजस्थान बार काउंसिल में पंजीकरण के बाद अपनी वकालत शुरू की. एक कुशल कानूनी विशेषज्ञ के रूप में उनकी प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ी. 1990 में उन्हें राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया गया और वे राज्य के सबसे प्रतिष्ठित कानूनी पेशेवरों में से एक बन गए.

उन्होंने कई उच्च न्यायालयों और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वकालत की, जहां उन्होंने विभिन्न प्रकार के मामलों की पैरवी की. धनखड़ को राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. इस भूमिका ने विधिक समुदाय में उनकी प्रतिष्ठा को और मजबूत किया.

उन्होंने 1989 में झुंझुनू से जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीति में प्रवेश किया. संसद में उनकी स्पष्ट वकालत ने उन्हें जल्द ही मंत्री पद दिला दिया. 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल में उन्हें संसदीय कार्य राज्य मंत्री नियुक्त किया गया.

उन्होंने सरकार और विधानमंडल के बीच महत्वपूर्ण समन्वय का कार्यभार संभाला. बाद में उन्होंने 1993 से 1998 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में किशनगढ़ निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

धनखड़ राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे और जनता दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) और अंततः भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित कई दलों से जुड़े रहे.

जुलाई 2019 में धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. इस पद पर रहते हुए वे राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल के केंद्र में रहे. उनके कार्यकाल के दौरान ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार के साथ संघवाद, विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों और कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर उनका लगातार टकराव हुआ.

उनके आलोचकों ने उन पर संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया. हालांकि, धनखड़ ने जोर देकर कहा कि वह लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए काम कर रहे थे.

16 जुलाई, 2022 को भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद के लिए धनखड़ को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का उम्मीदवार घोषित किया. 6 अगस्त, 2022 को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 710 वैध मतों में से 528 मतों से हराया, और 74.37 प्रतिशत मत हासिल किए, जो 1992 के बाद से जीत का सबसे बड़ा अंतर है. उनके चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और उसके केवल दो सदस्यों ने ही मतदान किया.

उपराष्ट्रपति के रूप में धनखड़ ने राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में भी कार्य किया, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधायी सत्रों की अध्यक्षता की. संसदीय नियमों के प्रति अपने कठोर पालन और स्पष्ट दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध धनखड़ को सभी दलों में समान रूप से सम्मान और चुनौती मिली.

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