
Naxalite Surrender Story: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के कुल्हाड़ी घाट के जंगलों में 19 से 21 जनवरी के बीच हुई मुठभेड़ नक्सलियों के लिए भारी साबित हुई. इस ऑपरेशन में एसडीके एरिया कमेटी के डिप्टी कमांडर दिलीप उर्फ संतु बुरी तरह घायल हो गया. सुरक्षाबलों से बचने के लिए संतु चार दिन तक बिना खाना-पानी के एक गुफा में छिपा रहा. गहरी चोट, खून बहता शरीर और जंगल में अकेले मरने का डर— यही उसकी जिंदगी बन गई थी. नक्सली मूवमेंट के लिए जान देने का दावा करने वाले साथी उसकी सुध तक लेने नहीं आए. आखिरकार, जब उसे समझ आ गया कि यह लड़ाई सिर्फ इस्तेमाल करने की है, तो उसने आत्मसमर्पण का फैसला कर लिया. लेकिन अकेले नहीं, संतु के साथ दो महिला नक्सलियों ने भी हथियार डाल दिए,दो महिला नक्सलियों ने भी हिंसा का रास्ता छोड़ा.
संतु के साथ एसडीके एरिया कमेटी की एक्शन टीम मेंबर मंजुला उर्फ लखमी और बरगढ़ एरिया कमेटी की सक्रिय सदस्य सुनीता उर्फ जुनकी ने भी आत्मसमर्पण किया. तीनों नक्सली 5-5 लाख रुपये के इनामी थे और लंबे समय से सुरक्षा बलों के रडार पर थे. गरियाबंद पुलिस लाइन में एडीजी विवेकानंद सिन्हा, आईजी अमरेश कुमार मिश्रा और एसपी निखिल राखेचा की मौजूदगी में तीनों नक्सलियों ने एक ऑटोमैटिक इंसास राइफल के साथ आत्मसमर्पण किया.
कैसे टूटा नक्सली संगठन में भरोसा?
सरेंडर के बाद एनडीटीवी से बातचीत में संतु ने बताया कि मुठभेड़ में उसके सर को गोली चीरते हुए निकल गई जब वह घायल हुआ, तो सब अपनी अपनी जान बचाकर भागने लगे और सब उसे अकेला छोड़कर भाग निकले . चार दिन तक वह गुफा में भूख, प्यास और दर्द से तड़पता रहा. उसके पास न कोई दवाई थी, न खाने का कोई साधन. जब उसे अहसास हुआ कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है, तो किसी तरह वहां से निकला और इलाज कराने के बाद आत्मसमर्पण करने का फैसला लिया.
"अब जंगल में रहना नामुमकिन हो गया है"
संतु ने बताया कि सुरक्षा बलों की सख्त घेराबंदी के चलते नक्सलियों की हालत बदतर हो चुकी है. भूख और प्यास से तड़पना उनकी दिनचर्या बन चुकी है. सुरक्षा बलों की बढ़ती कार्रवाई के कारण सोने तक का वक्त नहीं मिलता,हर वक्त मुठभेड़ का डर बना रहता है. संतु ने खुलासा किया कि पिछले कुछ महीनों में कई नक्सली इसी वजह से संघठन से भाग चुके हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं. अब नक्सली संगठन कमजोर और बिखरते नजर आ रहे हैं.
साथियों से भी आत्मसमर्पण की अपील
सरेंडर करने के बाद संतु और दोनों महिला नक्सलियों ने अपने अन्य साथियों से भी हथियार डालने की अपील की. उन्होंने कहा कि सरकार की पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वालों को सुरक्षित जीवन और सुविधाएं दी जा रही हैं, इसलिए वे भी मुख्यधारा में लौटें और हिंसा का रास्ता छोड़ दें.
गरियाबंद पुलिस के अनुसार, पिछले एक साल में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव और लगातार हो रही मुठभेड़ों के कारण कई नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं. पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सरकार की नीति स्पष्ट है—जो आत्मसमर्पण करेगा, उसे पुनर्वास योजना का लाभ मिलेगा, और जो हिंसा की राह पर रहेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी.सुरक्षा बलों के ऑपरेशन से नक्सली संगठन पहले से कमजोर और बिखरते नजर आ रहे हैं.
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