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सरगुजा: उपेक्षा से बढ़ी संजय पार्क की दुर्दशा, सौंदर्यीकरण के लिए न बजट, न चौकीदार

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का एकमात्र पार्क संजय वन यानी संजय वन वाटिका प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण बदहाली की तरफ बढ़ाता जा रहा है. लगभग 40 एकड़ में फैले इस पार्क की स्थिति ये है कि इसके रखरखाव के लिए न तो बजट है और न ही देखभाल करने के लिए चौकादीर. 

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सरगुजा: उपेक्षा से बढ़ी संजय पार्क की दुर्दशा, सौंदर्यीकरण के लिए न बजट, न चौकीदार

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का एकमात्र पार्क संजय वन यानी संजय वन वाटिका प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण बदहाली की तरफ बढ़ाता जा रहा है. लगभग 40 एकड़ में फैले इस पार्क में सुसज्जित करने में असफल हैं. स्थिति ये है कि इसके रखरखाव के लिए न तो बजट है और न ही देखभाल करने के लिए चौकादीर. 

बजट के अभाव में संजय वन वाटिका पार्क की हालात बदहाल

बता दें कि 40 एकड़ में फैले इस पार्क में हिरन, कोटरा, मौर, सहित कई प्रकार के पक्षी हैं तो वहीं दूसरी ओर वन औषधि के पेड़ सहित बच्चों के लिए झुला लगे हुए हैं. जिन्हें देखने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में शहर के लोग यहां आते हैं. इससे बावजूद वन विभाग और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस पार्क को बेहतर तरीके से सुसज्जित करने में असफल हैं. वहीं दूसरी ओर वन्य प्राणियों को गोद लेने की योजना डिस्प्ले बोर्ड तक ही सीमित है. जिसके कारण आम शहरवासियों में इसे लेकर नाराजगी भी है. 

2000 में पार्क का संचालन वन प्रबंधन समिति शंकर घाट को दे दिया गया था

दरअसल, संजय पार्क अंबिकापुर का वर्षों पुराना पार्क है. इस पार्क का संचालन साल 2000 में वन प्रबंधन समिति शंकर घाट को दे दिया गया था और तब से आज तक इस पार्क का देखरेख व संचालन इस समिति के द्वारा किया जा कर रहा है. हालांकि नियंत्रण वन विभाग के द्वारा किया जाता है. बीते कुछ साल पहले जिला प्रशासन और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा इस पार्क को बेहतर तरीके से सुसज्जित करने का काम किया था. अधिकारी मनरेगा, बीआरजीएफ व अन्य योजनाओं से इस पार्क में लाखों रुपए के कार्य कराए थे. वहीं पार्क में छत्तीसगढ़ संस्कृति के साथ सरगुजा की लोक संस्कृति को मिट्टी के घरों में चित्र के माध्यम से उभारा गया था जो लोककला का बेजोड़ नमूना है.

वन विभाग के अधिकारी की लापरवाही से हालत दिन-ब-दिन हो रही खराब

वहीं टॉय ट्रेन, मचान, औषधीय गुणों वालें पेड़ के साथ तालाब में बोटिंग करने के लिए भी पहले सुविधा है, लेकिन अब जिला प्रशासन व वन विभाग के अधिकारी की लापरवाही से पार्क की हालत दिन-ब-दिन खराब हो रही है.

संजय पार्क में वन्य जीवों की अच्छी-खासी संख्या है जिसमें मुख्य रूप से चीतल, कोटरा, मोर, बंदर और कई प्रकार की छोटा पक्षी शामिल हैं. हालांकि अब इन जानवरों के लिए  भोजन आदि की व्यवस्था करने में अब पार्क समिति को बजट की भारी दिक्कत हो रही है. वहीं वन विभाग के द्वारा पार्क के लिए अलग से बजट नहीं आवंटित करने के कारण 65 वन्यजीव (कोटरा व चीतल) का विस्थापन 1 साल पहले ही कोरिया जिले के गुरु घासीदास नेशनल पार्क में कर दिया गया है, ताकि उन्हें बेहतर तरीके से रखा जा सके.

समिति के अध्यक्ष अजीत पांडे ने बताया कि दुर्भाग्य है कि अंबिकापुर के जनप्रतिनिधि भी पार्क की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं. इस पार्क की देखरेख के लिए लगभग 20 से ज्यादा कर्मचारी प्रतिदिन काम करते हैं, लेकिन बजट प्राप्त नहीं होने के कारण किसी तरह से काम चलाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि यहां रहने वाले जानवरों को समय-समय पर चिकित्सा व दवाईयां की भी आवश्यकता पड़ती है जो अत्यंत आवश्यक है. अगर जनप्रतिनिधि मदद करते तो पार्क और बेहतर तरीके से विकसित हो सकता है. वहीं दूसरी ओर वन विभाग के कोई भी अधिकारी संजय पार्क को लेकर बोलने से बचते हुए नजर आए.

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