
Gariaband Hindi News: गरियाबंद ज़िले का सरकड़ा गांव इन दिनों प्यासा है. वो भी इसलिए नहीं कि बारिश कम हुई है, बल्कि इसलिए कि जिस तालाब से पिछले 70 सालों से गांववाले निस्तार, पशुओं को पानी और घरेलू कामों के लिए पानी लेते थे. वह अचानक कागजो में निजी जमीन बन गया. गांववालों को यह बात दो माह पहले चली, जो उनके लिए एक बड़ा झटका था. जिस तालाब को वे सार्वजनिक मानते थे, अब उस पर किसी परिवार का मालिकाना हक दर्ज हो चुका है. इतना ही नहीं, तालाब का सारा पानी सुखा दिया गया है ताकि वहां पर निजी तौर पर मछली पालन किया जा सके.
गांव की करीब 3000 की आबादी में से 65-70% लोग रोज़मर्रा के पानी के लिए इस तालाब पर निर्भर थे, लेकिन बीते दो महीनों से यह तालाब पूरी तरह सूखा पड़ा है. क्योंकि अब यह गांव का नहीं, किसी जमींदार का तालाब है.
गांववाले भुगत रहे खामियाजा
ग्रामीणों का कहना है कि यह तालाब कभी गांव की सामूहिक जमीन का हिस्सा था, लेकिन अब कथित रूप से एक पुराने मालगुजार के दो बेटों ने इसे दो हिस्सों में बांटकर अपने नाम करा लिया है. अब गांववाले इस निजीकरण का खामियाज़ा प्यास से भुगत रहे हैं. बीते दो महीनों से तालाब की जमीन तो छोड़िए, पानी भी हक नहीं रहा. अब महिलाएं बाल्टी-कटोरा लेकर किलोमीटरों की पैदल यात्रा पर निकलती हैं और गांव के बच्चे मवेशियों से ज़्यादा प्यासी आंखों से चुपचाप तालाब की ओर देखते हैं, जहां अब सिर्फ मिट्टी और गंदगी बची है जो निजीकरण का ऐलान करती हैं.
प्रशासन क्या कर रहा है?
अपर कलेक्टर अरविंद पांडे ने कहा है कि इस मामले की शिकायत मिली है और मौके का निरीक्षण कर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश छुरा एसडीएम को दिए गए हैं. जांच के बाद जो भी तथ्य सामने आएंगे, उनके आधार पर कार्रवाई की जाएगी.
गांववालों की चिंता
गांव के बुज़ुर्गों का कहना है कि उन्होंने अपने बचपन से यह तालाब सार्वजनिक रूप में देखा है. वे हैरान हैं कि जब कभी यह निजी ज़मीन था ही नहीं, तो अब अचानक कैसे हो गया? अब ग्रामीण प्रशासन से यही सवाल पूछ रहे हैं कि अगर एक दिन में तालाब निजी हो सकता है, तो कल को स्कूल, रास्ता, यहां तक कि मंदिर भी कहीं "रजिस्टर" न हो जाए?
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तालाब विवाद की समयरेखा- कब क्या हुआ?
- 1967-68 में गांव का निस्तारी तालाब गोशवारा अभिलेख में मालगुजार लखनधर के नाम पर दर्ज हो गया, जबकि गांव के लोग इसे सार्वजनिक संपत्ति मानते रहे.
- 1975-76 से पांच साला खसरा में तालाब खसरा नंबर 254 में दर्ज तो रहा, पर किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखा गया.
- 18 मार्च 2019 को तत्कालीन अनुभागीय अधिकारी बिंद्रानवागढ़ द्वारा इस तालाब को शासन में निहित करने की अधिसूचना जारी की गई, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ.
- अप्रैल 2025 में तालाब का सारा पानी निकालकर मछली बीज डाले गए, जिससे गांव को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ा.
- 19 मई 2025 को ग्रामीणों ने कलेक्टर गरियाबंद को आवेदन देकर तालाब को शासन के अधीन घोषित करने और सार्वजनिक उपयोग बहाल करने की मांग की.