
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बिलासपुर जिले के ग्राम मोहभट्ठा में आयोजित जनसभा को संबोधित किया. इस दौरान कई विकास कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया. साथ ही तीन लाख गरीबों को उनका आशियाना दिया. पीएम मोदी ने सभा के मंच से कई दौरान पीएम आवास के हितग्राहियों से संवाद भी किया. मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक हितग्राही दल्लु राम बैगा से संवाद किया जो इस प्रकार है.
प्रधानमंत्री ने मुस्कराकर पूछा-“पक्का मकान बन गया है?”
दल्लु राम ने हाथ जोड़कर जवाब दिया- “हां, बन गया है”
प्रधानमंत्री ने फिर पूछा- “अच्छा लग रहा है कि नहीं?”
भावुक दल्लु राम ने जवाब दिया- “अच्छा लग रहा है.”
प्रधानमंत्री ने अंत में पूछा- “बाकी सब ठीक है?”
दल्लु राम ने आत्मविश्वास के साथ कहा- “ठीक है”
छत्तीसगढ़ के तीन लाख गरीब परिवारों के लिए रविवार का दिन बेहद खास और अविस्मरणीय रहा. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें उनके सपनों के आशियानों में गृहप्रवेश कराया. इनमें बड़ी संख्या में दूरस्थ वनांचलों के गरीब और वंचित परिवार भी शामिल हैं. ये ऐसे परिवार हैं, जो प्रधानमंत्री आवास जैसी योजना नहीं होती तो शायद ही कभी अपने खुद के पक्के मकान का सपना पूरा कर पाते. यह योजना प्रदेश के लाखों गरीब परिवारों का बड़ा सपना पूरा कर रही है.
पीएम मोदी ने बिलासपुर के मोहभट्ठा में दूरस्थ अंचलों के तीन आदिवासी परिवारों को खुद अपने हाथों से नए आवासों की चाबी सौंपी. बीजापुर जिले के चेरपाल पंचायत की सोमारी पुनेम, कबीरधाम जिले के ग्राम हाथीडोब के दल्लुराम बैगा और जशपुर जिले के करदना पंचायत के पहाड़ी कोरवा जगतपाल राम को प्रधानमंत्री मोदी ने भी मंच पर इन्हें चाबी सौंपी.
विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय के दल्लुराम बैगा कभी कच्ची मिट्टी और खपरैल के घर में भय और असुरक्षा के साये में रहते थे, लेकिन अब उन्हें पक्का मकान मिल गया है.
प्रधानमंत्री जनमन योजना के अंतर्गत दल्लुराम का आवास स्वीकृत होने के बाद उनके सपनों के घर का सफर शुरू हुआ. आवास निर्माण के लिए दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता के साथ ही 95 दिनों की मनरेगा मजदूरी के रूप में 23 हजार रुपये भी मिले. अन्य योजनाओं से रसोई गैस, शौचालय और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी मिलीं. अब दल्लुराम और उनका परिवार न केवल सुरक्षित मकान में रह रहा है, बल्कि आत्मसम्मान और गर्व के साथ समाज में अपनी पहचान भी बना रहा है.
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टूटे सपनों को मिला सहारा और मिट्टी के आंगन में उग आई उम्मीद की छत
वर्षों तक संघर्ष करते हुए सोमारी पुनेम ने कभी नहीं सोचा था कि उसके सिर पर एक दिन पक्की छत होगी. पति के निधन के बाद वह अपने बेटे के साथ एक छोटे से टपकते छप्पर के नीचे जीवन की अनगिनत कठिनाइयों के बीच अपना जीवन-यापन कर रही थीं. नियद नेल्ला नार योजना शुरू होने के बाद जब उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना की जानकारी मिली तो उनकी आंखें चमक उठी. वह बताती हैं, "मैंने अपने पास जो थोड़ी-बहुत बचत थी, वही लगाई. हर दिन मजदूरों के साथ बैठकर खुद ईंटें उठाईं. घर बनता गया और मेरा आत्मविश्वास भी."
बीजापुर के चेरपाल में रहने वाली 60 साल की सोमारी कहती हैं. "आज जब मैं अपने घर के दरवाजे से अंदर जाती हूं तो लगता है कि मैं अकेली नहीं हूं. मेरे साथ मेरे स्वर्गीय पति का सपना भी इस घर में सांस ले रहा है."