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This Article is From Apr 10, 2025

नक्सलियों ने 15 दिनों में दो बार की शांति वार्ता की पेशकश, सरकार भी राजी पर अड़चन कहां हैं ?

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर सुरक्षा बलों के लगातार जारी प्रहार के बीच शांति वार्ता की पहल भी की जा रही है. शांति वार्ता के लिए कभी सरकार संदेश देती है तो कभी नक्सली पत्र जारी करते हैं. संदेश और पत्रों के बीच सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि क्या कभी सरकार और नक्सलियों के बीच शांति वार्ता होगी? क्या बातचीत से ही बस्तर में शांति आएगी? क्या 31 मार्च 2026 तक सरकार नक्सलियों को खत्म कर पाएगी.

नक्सलियों ने 15 दिनों में दो बार की शांति वार्ता की पेशकश, सरकार भी राजी पर अड़चन कहां हैं ?

Naxalites in Bastar: छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बल के जवानों और नक्सलियों के बीच जारी जंग के बीच शांति वार्ता की जुबानी और कागजी कोशिश भी जारी है. ये तब और अहम हो जाता है जब पिछले 15 दिनों में ही नक्सल संगठन की ओर से 2 पत्र जारी कर बातचीत के लिए उचित माहौल बनाने की बात कही गई. इसमें से एक पत्र तो नक्सल संगठन के केन्द्रीय समिति की ओर से जारी होना बताया जा रहा है. दूसरी तरफ खुद राज्य के डिप्टी CM विजय शर्मा ने गुरुवार को ही कहा है- नक्सलियों की ओर से चर्चा करने वालों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है. न हम अपनी ओर से कुछ कहेंगे न उनकी शर्त मानेंगे. ऐसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कभी सरकार और नक्सलियों के बीच शांति वार्ता होगी? क्या बातचीत से ही बस्तर में शांति आएगी? इन सबके बीच सवाल उन आदिवासियों का भी है जो जंगलों में बिछी है IED के चपेट में आ रहे हैं. क्या है जमीनी स्थिति जानिए इस रिपोर्ट में. सबसे पहले बात कुछ आंकड़ों की जो स्थिति की तस्वीर कुछ हद तक साफ करते हैं.

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जंगलों में बारूद पर चलने को मजबूर हैं ग्रामीण

अब बात उन ग्रामीणों की जो न तो नक्सली हैं और न ही सुरक्षाबलों की टीम का हिस्सा लेकिन वो हिंसा की चपेट में आ रहे हैं. बस्तर संभाग के बीजापुर जिले का एक गांव मुदवेंडी. यहां के ग्रामीण अभी भी नक्सल हिंसा के दंश झेल रहे हैं. साल 2024 में ही मुदवेंडी गांव में 20 अप्रैल को आदिवासी युवक गढ़िया पुनेम और 27 जुलाई को 10 साल के हिडमा कवासी की मौत नक्सलियों की बिछायी आईईडी पर पैर पड़ने से हो गई. साल 2025 के मार्च महीने में ही बीजापुर के उसूर की सुशीला सोढ़ी की मौत आईईडी पर गलती से पैर पड़ने से हो गई. इसी महीने उसपरी गांव में 28 वर्षीय सरस्वती ओयाम आईईडी ब्लास्ट में बुरी तरह घायल हुईं.ये गांव,नक्सल हिंसा के दर्द को समेटे हुए है. यहां के लोग जंगलों में बारूद पर चलते हैं. स्थानीय ग्रामीण जोगा बताते हैं कि अभी तो जंगल घूमने में दिक्कत होती है. नक्सली पुलिस के नाम पर IED लगा देते हैं और शिकार हम होते हैं. 

नक्सली जैसी चाहें वैसी चर्चा को तैयार: विजय शर्मा

हालांकि नक्सलियों की हिंसा के बावजूद, भारत सरकार का लक्ष्य 2026 तक नक्सलवाद का समाधान करना है. पिछले 15 महीनों में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों पर ताबड़तोड़ हमले किए हैं, लेकिन इसी दौरान नक्सली भी अपनी ताकत का अहसास दिलाते रहे हैं. सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच जारी इस संघर्ष के बीच शांति वार्ता की कोशिशें हो रही हैं. नक्सलियों ने हाल में 2 पत्र जारी किए, जिनमें बातचीत का माहौल बनाने की बात की गई है. खुद डिप्टी CM विजय शर्मा ने कहा-  मैं कह रहा हूं, कोई टीम किसी की प्रतीक्षा न करें, जिसको चर्चा करनी है वो आए. मैं कह रहा हूं कि उनका लाइफ सेटल होने तक सरकार उनकी चिंता करेगी. वो जैसी चाहें हम वैसी चर्चा करने को तैयार हैं. कोई बंधन नहीं है,चर्चा के लिए हम तैयार हैं. शांति वार्ता की कोशिशों का इतिहास देखें तो पिछले कई सालों से इस पर बात हो रही है, लेकिन परिणाम अभी तक नहीं मिले हैं.

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बस्तर में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता बताते हैं कि नक्सलियों और सरकार के बीच वार्ता में सबसे बड़ी बाधा शर्तें ही है. सरकार कहती है लोकतंत्र पर भरोसा करिए, हथियार छोड़िए और नक्सल संगठन के पत्र कहते हैं पहले सुरक्षा बल के जवानों को वापस बुलाइये, कैंप मत लगाइये, जवानों की तैनाती रोकिए. ये शर्तें ऐसी हैं जो व्यावहारिक रूप से न तो सरकार मान सकती है न ही नक्सल संगठन ही तैयार हो सकते हैं. यही वजह है कि शांति की चर्चा जरूर होती है, लेकिन वार्ता नहीं होती. जाहिर है शांति वार्ता की कोशिशों के बीच नक्सल हिंसा में मौत का सिलसिला जारी है. सवाल ये है कि यह कब रुकेगा? क्या बातचीत से समाधान होगा? यह अब भी अनसुलझा सवाल है. 
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