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नक्सली हिड़मा–राजे Love Story: बंदूकों के साए में जन्मीं वह प्रेम कहानी, जो मुठभेड़ में साथ ही खत्म हो गई

Naxali Hidma-Raje Love Story: खूंखार नक्सली माड़वी हिड़मा और उसकी पत्नी एनकाउंटर में मारी गई है. इस बीच इनके प्रेम और विवाह की कहानी सामने आई है. जो बंदूकों के साए में जन्मीं और मुठभेड़ के साथ खत्म हो गई. आइए जानते हैं... 

नक्सली हिड़मा–राजे Love Story: बंदूकों के साए में जन्मीं वह प्रेम कहानी, जो मुठभेड़ में साथ ही खत्म हो गई
AI जनरेटेड फोटो...

Naxali Hidma- Raje Love Story: नक्सल संगठन में प्रेम शब्द अक्सर दबा रहता है.आदेश, अनुशासन, भय और बंदूकों की भाषा जहां हावी हो, वहां दिल की धड़कनें सुनाई नहीं देतीं. लेकिन इसी खामोशी और खून के बीच कभी-कभी कोई कहानी जन्म लेती है, जो असंभव लगते हुए भी सच हो जाती है. ऐसी ही कहानी थी हिड़मा और राजे की, जो अब मुठभेड़ की गोलियों के साथ हमेशा के लिए खत्म हो चुकी है.

साल 2008-09, हिड़मा उस समय संगठन में तेजी से ऊपर उठ रहा चेहरा था. खामोश, तेज, रणनीतिक. वहीं राजे, संगठन की उन गिनी-चुनी महिलाओं में से थी, जो कमांडर रैंक तक पहुंच चुकी थीं. दोनों का रोजाना सामना होता था.कभी मीटिंग में, कभी मूवमेंट के दौरान, कभी किसी कार्रवाई की तैयारी में. जंगल का जीवन ऐसा होता है जहां हर दिन आखिरी दिन हो सकता है. शायद इसलिए वहां प्रेम जल्दी पलता है, गहरा पलता है.

दो साल तक अनकहा रिश्ता—संगठन के नियमों से भी बड़ा हो गया दिल...

दोनों एक ही बटालियन के हिस्से थे. राजे, जो संगठन के भीतर मां की तरह देखभाल करती थी. घायल साथियों की सेवा, खाना बनाना, रणनीतियों की बारीकियां समझना. हिड़मा, जिसे हथियारों और ऑपरेशनों की कमान दी जाती थी. धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे की उपस्थिति का इंतजार करने लगे. गांवों में होने वाली मीटिंग, रात की पदयात्रा, कैंप के अंदर की हलचल हर जगह दो जोड़ी आंखें एक-दूसरे को ढूंढतीं.

लेकिन दोनों जानते थे, संगठन से ऊपर कुछ नहीं...

यह वाक्य माओवाद का कठोर नियम था. किसी भी तरह के रिश्ते की अनुमति नहीं. पर जंगल में दिल अक्सर नियम नहीं मानता. समय के साथ दोनों को एक साथ कई बड़े वारदातों की जिम्मेदारी दी गई. बीजापुर, जगदलपुर, सुकमा के जंगलों में जितनी भी हाई-प्रोफाइल कार्रवाई हुई. राजे हमेशा हिड़मा के साथ ही रही. दोनों कठिन परिस्थितियों में एक-दूसरे की ढाल, सहारा और साथ बनते गए. कई साथियों ने इस रिश्ते को महसूस किया, लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं—क्योंकि यह रिश्ता जिम्मेदारियों के बीच भी बेहद अनुशासित था.

जंगल के बीच लिया सात जन्मों का वचन—गुपचुप शादी

एक रात, लंबी मसल-पट्टी और खूनी अभियान के बाद, जंगल के बीच दोनों ने चुपचाप एक-दूसरे का हाथ थामकर विवाह कर लिया. न गवाह, न गीत—बस सन्नाटा, आग की हल्की लौ और दो दिलों के वचन. कहा जाता है, हिड़मा ने अपने साथियों से कहा था कि अब वह मेरी साथी सिर्फ संगठन में नहीं, जीवन में भी है. जंगल के भीतर पैदा हुई यह शादी संगठन की किताबों में दर्ज नहीं थी.  लेकिन साथियों के दिलों में यह जोड़ी “जंगल के दूल्हा-दुल्हन” के नाम से मशहूर हो गई. संगठन के नियमों के मुताबिक इन्होंने पहले नसबंदी भी करवाई थी. 

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अंत भी वहीं जहां शुरुआत हुई

कहते हैं, जो प्रेम जंगल में जन्म ले, वह जंगल ही पूरी करता है. हिड़मा और राजे की कहानी भी ऐसी ही रही. दोनों पिछले दिनों आंध्र–छत्तीसगढ़ बॉर्डर के जंगलों में एक ही टीम में थे.सुरक्षाबलों के ऑपरेशन “संभव” ने जब मुठभेड़ की आग को घेरा, तो वह आखिरी लड़ाई थी जिसमें दोनों एक साथ थे और एक साथ ही ढेर हो गए. जिस हाथ को उन्होंने विवाह की रात थामा था, वह हाथ मौत के वक्त तक नहीं छोड़ा. नक्सलवाद की दुनिया में प्रेम अक्सर दम तोड़ देता है. लेकिन हिड़मा और राजे की कहानी ऐसी रही जो बंदूक, खून, नियम और प्रतिबंधों से ऊपर उठ गई. जंगल की पगडंडियों पर शुरू हुई कहानी उसी जंगल की मिट्टी में दफन हो गई. 

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