Mukesh Chandrakar Murder : जांबाज पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की जांच के लिए गठित SIT ने बड़ा खुलासा किया है. SIT ने अपनी छह पेज की जांच रिपोर्ट पत्रकारों से साझा की है जिसने इस जघन्य हत्याकांड की परतें खोल दी है. जारी प्रेस नोट से पता चलता है कि जुझारू पत्रकार मुकेश की हत्या की प्लानिंग कातिलों ने 4 से 5 दिन पहले ही कर ली थी. इसमें पता चलता है कि हत्या कैसे हुई? हत्या की रात क्या-क्या हुआ ? कैसे मुकेश आरोपियों से मिलने पहुंचा ? इस घटना को SIT (Special Investigation Team) ने कैसे सुलझाया ? आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं SIT की रिपोर्ट क्या कहती है.
1. मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी से गायब थे. अलगी रात तक भी मुकेश का कुछ पता नहीं चला तो भाई युकेश चंद्राकर सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचे और रिपोर्ट दर्ज कराई.
2. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने मामले की गंभीरता को देख बड़े अधिकारियों को सूचना दी. जिसके बाद तुरंत साइबर सेल, बड़े अधिकारी और जवानों को उनकी तलाश में लगाया गया.
3. मुकेश चंद्राकर के सभी मोबाइल नंबर बंद आ रहे थे. आखिरी लोकेशन नृकनपाल और जांगला सेक्टर की थी.... जो भैरमगढ़ की ओर है. पुलिस अलर्ट हुई और पत्रकार समेत टीम के साथ वहां पर पहुंचीं. लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.
4. तभी मुकेश के भाई युकेश चंद्राकर ने G-Mail के ज़रिए आखिरी लोकेशन चेक की. तो मुकेश की लोकेशन चट्टानपारा के एक बाड़े की मिली.
5. पुलिस फ़ौरन अलर्ट हुई और तुरंत वहां पहुंची. वहां जाकर बाड़े के पूरा एरिया का सर्च किया. पुलिस ने देखा कि बाड़े में कुल 17 कमरे थे जिन पर ताले लगे थे.
6. अब बाड़े के मालिक यानी कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को बुलाया गया. उनके आने पर ताले खुलवाए गए लेकिन वहां पर कुछ नहीं मिला.
7. पुलिस ने बाड़े के पास एक नया सेप्टिक टैंक देखा. पुलिस ने सुरेश से पूछा कि ये क्या है ? तो सुरेश ने कहा कि ये बाथरूम के रेनोवेशन का काम चल रहा है.
8. इसके बाद पुलिस ने सुरेश से रितेश चंद्राकर के बारे में पूछा. सुरेश ने बताया कि उनकी दो साल से रितेश से कोई बात नहीं हुई है. जानकारी के लिए बता दें कि रितेश चंद्राकर, मुकेश चंद्राकर का चचेरा भाई था. पुलिस को शुरुआती जाँच में रितेश पर ही शक था.
9. इसके बाद पुलिस ने उसी रात रितेश चंद्राकर और अन्य संदिग्धों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) की जांच के लिए सायबर सेल को भेजा.
10. इसके बाद पुलिस ने रितेश की तलाश में अलग-अलग टोल प्लाजा के CCTV फुटेज खंगाले. इसके बाद 02 जनवरी सुबह 8:20 बजे, रितेश को कोण्डागांव टोल प्लाजा पर एक थार गाड़ी (CG 04 0001) में जाते देखा गया.
CCTV के ज़रिए जोड़ी गई कड़ी-दर-कड़ी
इसके बाद कई CCTV के ज़रिए गाड़ी का फॉलो अप लिया गया. अनुमान के आधार पर रायपुर एयरपोर्ट के CCTV फुटेज देखे गए. और पुलिस को रितेश की थार गाड़ी एयरपोर्ट के पार्किंग में मिली. इसके बाद पुलिस ने एयरपोर्ट से उस समय की फ्लाईट से आने जाने वालों की डिटेल मांगी. जांच में पता चला कि रितेश ने 02 जनवरी 2025 को सुबह रायपुर से दिल्ली की फ्लाइट टिकट ऑनलाइन बुक की थी. वारदात के बाद रितेश चंद्राकर दिल्ली क्यों जा रहा था ? इस बात से पुलिस का शक और मजबूत हो गया.
मुकेश के घर के CCTV फुटेज भी खंगाले
पुलिस ने 02 जनवरी से लेकर 03 जनवरी की दरम्यानी रात तक लगातार छानबीन जारी रखी और सबूत जुटाने की कोशिश की. इसके बाद मुकेश चंद्राकर के घर के आसपास कुल चार जगहों पर लगे CCTV कैमरों की जांच की गई. हालांकि CCTV कैमरे मुकेश के घर से काफी दूर लगे थे... और रात का समय होने के चलते फुटेज में ये तो नहीं दिखा कि मुकेश किस गाड़ी से घर से बाहर निकले थे ? क्लीयर नही होने से कुछ पुख्ता जानकारी वहां से नहीं मिली.
कॉल डिटेल्स से खुले मामले के कई सवाल
इसके बाद SP ने पत्रकार साथियों से मुकेश के बारे में पूछताछ की. वे खुद सर्च ऑपरेशन में शामिल हुए और टीम की सभी गतिविधियों की निगरानी करते हुए दिशा-निर्देश देते रहे. रात 3-4 बजे के बीच पुलिस को मुकेश और रितेश के कॉल डिटेल्स (CDR) प्राप्त हुए. एनालिसिस में पाया गया कि मुकेश के अंतिम कॉल से पहले दो कॉल रितेश से ही थे. इससे ये साफ़ हुआ कि रितेश का मुकेश की गुमशुदगी में कोई न कोई संबंध जरूर है. गौर करें कि अभी तक पुलिस को मुकेश की कोई खबर नहीं मिली थी. मुकेश अभी भी लापता ही थे.
रितेश के भाई का नंबर आ रहा था बंद
इसी कड़ी में पुलिस को ये भी जानकारी मिली कि रितेश के अलावा उसके भाई दिनेश चंद्राकर भी इस मामले में शामिल हो सकता है. पुलिस ने रितेश की CDR से दिनेश चंद्राकर का नंबर निकला. कॉल करने पर पता चला दिनेश का नंबर बंद है. उसका मोबाइल बंद होने के कारण पुलिस ने उसकी तलाश शुरू की. 03 जनवरी की सुबह पुलिस को पता चला कि दिनेश बीजापुर जिला अस्पताल में भर्ती है. इसके बाद पुलिस अलर्ट हो गई और तुरंत उसे खोजने का अभियान तेज किया.
आरोपी ने अस्पताल में ही उगले राज
सुबह करीब 12 बजे पुलिस बीजापुर जिला अस्पताल में पंहुची जहां दिनेश चंद्राकर अस्पताल में मिला. डॉक्टर की अनुमति से उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की गई. शुरुआत में दिनेश ने किसी भी जानकारी से इनकार किया. लेकिन सख्ती और CDR व लोकेशन के आधार पर 3 घंटे की पूछताछ के बाद उसने कबूल किया कि उसका भाई रितेश और महेंद्र रामटेके ने मिलकर मुकेश की लोहे की रॉड से हत्या की... फिर हत्या के बाद शव को सेप्टिक टैंक में छुपा दिया.
खुलासे के बाद सेप्टिक टैंक को खुदवाया
बता दें कि महेंद्र रामटेके रितेश चंद्राकर का सुपरवाइजर था. दोनों साथ में ही सुरेश चंद्राकर के साथ ठेकेदारी का काम चलते थे. पुलिस को महेंद्र रामटेके के बारे में जानकारी मिलने के बाद उसे तुरंत पकड़ने की कोशिश शुरू हुई. उसे बीजापुर के नए बस स्टैंड के पास से हिरासत में ले लिया गया. पूछताछ में उसने अपना गुनाह मान लिया. घटना की पूरी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई. सेप्टिक टैंक की खुदाई के लिए प्रशासनिक अधिकारी, नगर पालिका के कर्मचारियों और फॉरेंसिक टीम को बुलाया गया.
अंदर मिला पत्रकार मुकेश का शव
03 जनवरी को को शाम करीब 5 बजे सेप्टिक टैंक का ढक्कन हटाया गया. टॉर्च की रोशनी में टैंक के अंदर एक शव दिखाई दिया. मौके पर भारी भीड़ इकट्ठा हो गई जिसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल तैनात कर जगह को घेर लिया गया. पुलिस ने शव की पहचान कराई, जिसमें पुष्टि हुई कि यह गुमशुदा पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव था. शव का पोस्टमार्टम के लिए पंचनामा तैयार कर मर्चरी भेजा गया. पूछताछ में खुलासा हुआ कि मुकेश चंद्राकर रिश्ते में इनके भाई लगते थे और NDTV में पत्रकार थे. मुकेश इन लोगों के ठेकेदार काम के खिलाफ खबर चला रहे थे. इसी वजह से इनके काम की जांच शुरू हो गई थी. इससे नाराज होकर सुरेश चंद्राकर ने अपने साथ रितेश, महेंद्र और दिनेश के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची.
अभी तक नहीं मिला मुकेश का फोन
पुलिस ने बिना देर किए दिनेश और महेंद्र को बीजापुर से और रितेश को रायपुर एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के दौरान हत्या में इस्तेमाल वाहन, लोहे की रॉड, और अन्य सबूत भी बरामद किए गए. तीनों आरोपियों ने साजिश के तहत मुकेश के दोनों मोबाइल चालू हालत में तुमनार नदी के पास ले जाकर पत्थरों से तोड़ दिए और नदी में फेंक दिए. पुलिस अब भी गोताखोरों की मदद से मोबाइल की तलाश कर रही है.
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हैदराबाद से गिरफ्तार हुआ ठेकेदार
तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया. जिसके बाद कोर्ट ने 08 जनवरी तक तीन दिन का पुलिस रिमांड मंजूर की. 03 जनवरी को पुलिस को पता चला कि सुरेश चंद्राकर बीजापुर से इनोवा वाहन में फरार हो गया है. उसे पकड़ने के लिए चार टीमों को रवाना किया गया. 2 दिन की मेहनत के बाद 05 जनवरी की देर रात पुलिस ने सुरेश को हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया. सुरेश ने बताया कि मुकेश उनका रिश्तेदार था लेकिन उनके ठेकेदार काम के खिलाफ खबरें चलाकर उनकी जांच शुरू करवा दी थी. इसी गुस्से में उसने यह साजिश रची. चारों आरोपियों को अलग-अलग रखकर पुलिस ने दो दिन तक पूछताछ की. मोबाइल डिटेल और कॉल रिकॉर्ड खंगालने पर कई अहम सबूत मिले जो जांच में शामिल किए गए.
पुलिस ने क्राइम सीन किया रीक्रिएट
पुलिस ने आरोपियों से घटनास्थल पर दो बार पूरी घटना की रीक्रिएशन करवाई. फॉरेंसिक टीम ने भी कमरे और आसपास का बारीकी से निरीक्षण किया जिसमें कई अहम सबूत मिले. पुलिस ने घटनास्थल को सील कर दिया और हर पहलू की गहराई से जांच की जा रही है. पूरी जांच पूछताछ और जब्ती की वीडियोग्राफी करवाई गई जिसे सबूत के तौर पर दर्ज किया गया है. मामले में 50 से अधिक लोगों से पूछताछ की गई जिनसे कई अहम जानकारियां मिलीं.
मुकेश के साथ क्या हुआ था ?
दरअसल, घटना की रात मुकेश को उसके चचेरे भाई रितेश ने रात के खाने के बहाने बुलाया था. वहां उसे पहले बेरहमी से पीटा गया फिर उसका गला घोंटा गया और धारदार हथियार से हमला किया गया. हत्या के बाद शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से सीमेंट से ढक दिया गया ताकि किसी को पता न चले.
सभी सबूतों को सुरक्षित रखा गया
आरोपियों के मोबाइल से कई डिलीट किए गए डाटा बरामद हुए जिन्हें लैब में जांच के लिए भेजा गया है. घटनास्थल से बरामद सबूत, जैसे हत्या में इस्तेमाल औजार, कपड़े, और अन्य सबूतों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजने की प्रक्रिया चल रही है. सुरेश चंद्राकर और उससे जुड़े संबंधियों की संपत्ति का ब्योरा जुटाया जा रहा है. बैंकों से मिली जानकारी के अनुसार, सुरेश ने घटना के चार दिन पहले यानी कि 27 दिसंबर को अपने खाते से बड़ी रकम निकाली थी. SIT इसकी भी गहराई से जांच कर रही है.
पुलिस ने कैसे सुलझाया मामला ?
पुलिस ने इस मामले की जांच में A. I. और OSINT जैसे आधुनिक तकनीकी उपकरणों का इस्तेमाल किया. आरोपियों से चार चारपहिया वाहन, ठेकेदारी की मिक्सर मशीन और अन्य सामग्रियां बरामद की गई हैं. साथ ही, 100 से ज्यादा कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) का विश्लेषण किया गया है. SIT टीम ने मामले से जुड़े सभी सबूतों को कानूनी प्रक्रिया के तहत सुरक्षित रख लिए हैं. मामले में हर संभव बिंदु पर जांच की जा रही है. आरोपियों को पकड़ने में महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओडिशा पुलिस की भी मदद ली गई.