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This Article is From May 12, 2024

Mother's Day 2024: 19 साल, 141 मौतें... किडनी की बीमारी से जूझते सुपेबेड़ा की महिलाओं का दर्द छत्तीसगढ़ में कौन करेगा महसूस?

Mother's Day 2024: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के गांव सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से अब तक 141 लोगों की मौत हो चुकी है. घर के मुखिया की मौत के बाद उनके घर की जिम्मेदारियां महिलाओं के कंधे पर आ गई है.

Mother's Day 2024:  19 साल, 141 मौतें... किडनी की बीमारी से जूझते सुपेबेड़ा की महिलाओं का दर्द छत्तीसगढ़ में कौन करेगा महसूस?

गरियाबंद में किडनी पीड़ितों के गांव कहे जाने वाले सुपेबेड़ा के दर्द से अब कोई अनजान नहीं है. पिछले 19 सालों में यहां 140 से ज्यादा किडनी रोगियों की मौत हो गई, जबकि 2 दर्जन अधिक लोग अब भी इस बीमारी से ग्रसित हैं. राहत और बचाव के सरकारी दावे के बीच विधवा हो चुकी महिलाएं जो अब बीमारी से नहीं, बल्कि व्यवस्था से जूझ रही है. 

बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मदद की आस में सुपेबेडा ग्राम की दो महिलाएं

इधर, सुपेबेडा ग्राम की रहने वाली वैदेही और लक्ष्मी बाई के घर किडनी रोग काल बन कर आया. दोनों के पति शिक्षक थे, लेकिन 2014 में लक्ष्मी सोनवानी के पति क्षितीराम की किडनी रोग से मौत हो गई, जबकि 2017 में वैदेही क्षेत्रपाल के पति प्रदीप की मौत हो गई. बीमारी से ग्रसित पति के इलाज के लिए दोनों महिलाओं को जमीन से लेकर जेवर तक बेचना पड़ा. हाउस लोन लेकर इलाज भी कराया, लेकिन पैसे खर्च होने के बाद भी जान नहीं बच पाई.

बता दें कि दोनों महिलाओं के 3-3 बच्चे हैं और इनकी गुजर बसर और परवरिश की जिम्मेदारी भी इन्हीं महिलाओं पर है. वहीं साल 2019 में राज्यपाल के दौरे के बाद कलेक्टर दर पर प्रतिमाह 10 हजार की पगार पर दोनों महिलाओं को नौकरी मिल गई, लेकिन ये रुपये महंगाई के जमाने में गुजर बसर के लिए नाकाफी है. इन्हें आज भी बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मदद की आस है.

गांव की 80 महिलाएं आज भी सरकारी मदद के लिए  कर रही है संघर्ष

इस गांव में लगाभग 80 महिलाएं ऐसी है जिनके पति और पिता की मौत किडनी रोग से हो गई. वहीं घर की मुखिया के गुजर जाने के बाद परिवार चलाने के लिए सरकारी मदद के लिए ये महिलाएं संघर्ष कर रही है. इन्हीं में से एक प्रेमशिला. इनके  पति, सास और ससुर की मौत 7 साल पहले किडनी रोग से हो गई थी. वहीं पति और ससुर की मौत के बाद छोटी ननद और दो बच्चे के भरण पोषण की जिम्मेदारी अब प्रेमशिला के कंधे पर है. बता दें कि प्रेमशिला घर चलाने के लिए सिलाई करती है. 

अधिकांश महिलाएं मजदूरी के भरोसे चला रही है घर परिवार

इसी गांव की गोमती बाई, रीना आडील, यशोदा और हेम बाई मजदूरी के भरोसे परिवार चला रही है. वहीं सरकार के निर्देश के बावजूद जिला पंचायत ने केवल महिला समूह का गठन कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है. पिछले 6 साल में 6 सिलाई मशीन देकर सारे महिलाओं के दर्द निवारण का दावा करने वाले जिला पंचायत के अफसर कैमरे के  सामने नहीं आ रहे हैं. इधर, स्वास्थ्य विभाग के अफसर अपनी जिम्मेदारी निभाने की बात कह रही है.

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