
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के कोयला नगरी के रूप में पहचान बनाने वाला चिरमिरी, जिसे कभी मिनी इंडिया कहा जाता था, आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह शहर अब उस मुकाम पर पहुंच चुका है,जहां लोग चाहकर भी रह नहीं पा रहे. पिछले एक दशक में यहां की आबादी 40 फीसदी तक घट गई है, और यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा.
शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव अब पलायन की सबसे बड़ी वजह बन चुका है. चिरमिरी की अर्थव्यवस्था का आधार रही कोयला खदानें अब दम तोड़ रही हैं. साल 1972 से 1984 के बीच भर्ती हुए कोल वर्कर अब तेजी से रिटायर हो रहे हैं. औसतन हर महीने 50 श्रमिक सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और नई भर्तियां बंद हैं.
2004 के बाद से तो मानो रफ्तार पकड़ ली हो पलायन में लोग अपने गृह राज्य, बड़े शहरों या गांवों की ओर लौटने लगे हैं. इसका सीधा असर शहर के व्यापार और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर पड़ा है.
शहर की वर्तमान स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार चिरमिरी की जनसंख्या 85,317 थी.अब 2025 आते-आते इसमें लगभग 20% की गिरावट आ चुकी है. रोजगार के अवसर लगभग समाप्त हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं और उच्च शिक्षा के लिए युवाओं को रायपुर या बिलासपुर जाना पड़ता है. यातायात की व्यवस्था भी बेहद कमजोर है.
पट्टे की समस्या, जिम्मेदार कौन
स्थानीय निवासी शिवांश जैन के अनुसार बेरोजगारी यहां की सबसे बड़ी समस्या है. जो लोग वर्षों से सरकारी जमीन पर बसे हैं, उन्हें आज तक पट्टा नहीं मिला. एसईसीएल के पास लीज में दी गई जमीन को सरकार वापस लेकर पुनः वितरण की प्रक्रिया शुरू कर सकती है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही. लोगों की मांग है कि पुराने बंद पड़े खदानों से उत्पादन शुरू हो, नई भर्तियां हो, या नए उद्योग स्थापित किए जाएं.
स्थानीय निवासी राजकुमार मिश्रा का कहना है कि सरकार अरबों-खरबों का राजस्व चिरमिरी से लेती है, लेकिन पलायन रोकने के लिए न तो कोई नीति है, न ही क्रियान्वयन. यदि सही जनगणना हो जाए तो नगर निगम का दर्जा भी छिन जाएगा.
स्वास्थ्य मंत्री ने दिया ये जवाब
स्वास्थ्य मंत्री एवं स्थानीय विधायक श्याम बिहारी जायसवाल ने माना कि चिरमिरी में पलायन एक गंभीर समस्या है. उन्होंने बताया कि माइनिंग के शुरुआती दौर में विस्थापन और योजनाबद्ध खनन नहीं हो पाया, जिससे आज यह हालात हैं. सरकार अब हॉर्टिकल्चर कॉलेज, जिला अस्पताल और रेलवे लाइन जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. दो नई माइंस भी शुरू की गई हैं, और दो और जल्दी शुरू होने वाली हैं. साथ ही एसईसीएल से रिक्लेम की गई जमीन पर पट्टा वितरण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
ये भी पढ़ें कार की डिग्गी में मिला 6 साल की बच्ची का शव, आक्रोशित लोगों ने कथित आरोपी के घर और गाड़ियों में लगाई आग
पूर्व महापौर डमरू रेड्डी की पहल
पूर्व महापौर डमरू रेड्डी ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में लीज होल्ड से कोयला खत्म हो चुकी जमीन को चिन्हित कर पट्टा देने की शुरुआत की थी. उन्होंने बताया कि उनकी कोशिशों से 159 लोगों को पट्टा मिला, जिन पर प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मकान बने.