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Loksabha Eelction Results: बड़े चेहरे का दांव BJP -कांग्रेस पर पड़ा भारी ! बाहरी प्रत्याश‍ियों को स्थानीय जनता ने नकारा  

Loksabha Election Result : छत्तीसगढ़ में इस बार अपने गृह क्षेत्र से बाहर जाकर चुनाव लड़ना कांग्रेस और बीजेपी के दिग्गजों को भारी पड़ गया. इन्हें हार का सामना करना  पड़ा है. 

Loksabha Eelction Results: बड़े चेहरे का दांव BJP -कांग्रेस पर पड़ा भारी ! बाहरी प्रत्याश‍ियों को स्थानीय जनता ने नकारा  

Loksabha Election Results 2024: लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में 11 सीटों में से BJP ने 10 सीटों पर जीत का झंडा बुलंद किया है. इस चुनाव में सबसे दिलचस्प पहलू 4 प्रमुख नेताओं की हार रहा, जिन्होंने अपने गृह जिलों से बाहर जाकर चुनाव लड़ा. उनकी वहां एक नहीं चल पाई और जनता ने उन्हें नकार दिया. इन दिग्गजों में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, भिलाई विधायक देवेंद्र यादव, पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू, और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडेय. इन नेताओं की हार ने साबित किया कि बड़े चेहरे की बजाय जनता स्थानीय को स्थानीय नेता रास आता है.

ये रहा कारण 

बता दें कि बीजेपी हो या कांग्रेस, ये चारों नेता दुर्ग जिले में सक्रिय रहे हैं और यहीं से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं. उम्मीद की जा रही थी कि बड़े चेहरे का फैक्टर काम करेगा. इसके विपरीत स्थानीय जनता ने स्पष्ट रूप से बाहरी प्रत्याशियों को नकार दिया.

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राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि मतदाता सोचते हैं कि बाहरी नेता उनके स्थानीय मुद्दों और समस्याओं को समझने और हल करने में सक्षम नहीं होते हैं. इस चुनाव का परिणाम स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की बहस को और भी प्रासंगिक बना दिया है.

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संपर्क की कमी और प्राथमिकता का सवाल

बाहरी प्रत्याशी अक्सर मतदाताओं के साथ सीधे संपर्क में नहीं रह पाते हैं, जिससे उनके चुनावी अभियान कमजोर पड़ जाते हैं. स्थानीय नेताओं के पास जनसमर्थन होता है और वे जनता के बीच में रहकर उनके मुद्दों को सुनते और हल करते हैं. इस कारण बाहरी प्रत्याशी अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने में विफल हो जाते हैं. हालांकि ज्योत्सना महंत भी सीधे तौर पर स्थानीय नहीं हैं, लेकिन उनके पति व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत यहां पहले से ही जमीन तैयार करते रहे हैं और पूर्व में यहां से सांसद रह चुके हैं. जबकि सरोज स्थानीय जनता के लिए नई थीं. दूसरा सवाल प्राथमिकता का है. जनता सोचती है कि स्थानीय नेता उनकी समस्याओं को समझते हैं और सीधे संपर्क में रहते हैं. बाहरी प्रत्याशियों के पास ऐसा कनेक्शन और समझ नहीं होती, जो स्थानीय नेताओं की होती है.

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