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This Article is From Apr 18, 2024

Bastar Lok Sabha Seat: क्या भाजपा अपनी खोई हुई सीट वापस ले पाएगी या कांग्रेस की फिर होगी जीत?

Know Your Constituency: बस्तर को जितना अधिक लोग मांडवी हिडमा के कारण जानते हैं, उतनी ही यहां की राजनीति भी चर्चा में रहती है. इस बार चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपने इस खोए हुए सीट को दोबारा हासिल कर पाती है या कांग्रेस दूसरी बार फिर से अपनी सरकार बनाती है.

Bastar Lok Sabha Seat: क्या भाजपा अपनी खोई हुई सीट वापस ले पाएगी या कांग्रेस की फिर होगी जीत?
Bastar Lok Sabha Candidates

Lok Sabha Elections 2024: दो अलग-अलग तस्वीरों से शुरुआत करते हैं...पहला- वो इलाका जो रामायण काल से है...वो इलाका जहां दंडकारण्य है...वो इलाका जहां भगवान राम ने कई दानवों का वध किया...दूसरा- वो इलाका जहां देश के सबसे दुर्दांत नक्सली रहते हैं....वे इलाका जो दशकों से सरकार के लिए सिरदर्द बना है....वो इलाका जहां विकास अब भी नहीं पहुंचा है....आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर की.  बस्तर भले ही विकास की दौड़ में थोड़ा पिछड़ा है पर यहां होने वाली सियासत का असर पूरे प्रदेश और कई मायनों में देश पर भी पड़ता है. NDTV की विशेष सीरीज अपने लोकसभा क्षेत्र को जाने में आज बात इसी बस्तर लोकसभा सीट की.

जब कभी भारत में नक्सलवाद की बात होती है तो छत्तीसगढ़ के बस्तर का जिक्र जरूर होता है. बल्कि, देश के कई मोस्ट वांटेड नक्सलियों का संबंध भी इसी इलाके से रहा है. मांडवी हिडमा इसी क्षेत्र से संबंध रखता है. आए दिन यहां से सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ की खबर सामने आती रहती है. यहां की राजनीति भी खुद में बहुत खास है. इस बार के लोकसभा चुनाव में यहां पहले चरण, यानी 19 अप्रैल को मतदान होना है. बस्तर के सियासी हिसाब-किताब पर तो बात करेंगे ही, लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि खुद बस्तर का इतिहास का है..

History of Bastar Lok Sabha Seat

History of Bastar Lok Sabha Seat

कभी दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था बस्तर

छत्तीसगढ़ के दक्षिण दिशा में बस्तर जिला स्थित है. बस्तर जिले का और संभाग का मुख्यालय जगदलपुर शहर है. यह पहले दक्षिण कोशल नाम से जाना जाता था. खूबसूरत जंगलों और आदिवासी संस्कृति में रंगा जिला बस्तर, प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है. यह जिला किसी समय में केरल जैसे राज्य और बेल्जियम, इजराइल जैसे देशों से भी बड़ा था. जिले का सही तरीके से संचालन होने के लिए इसे 1999 में दो अलग जिलों, कांकेर और दंतेवाड़ा में बांट दिया गया.

ऐतिहासिक रूप से क्षेत्र महाकाव्य रामायण में दंडकारण्य और महाभारत में काला साम्राज्य का हिस्सा माना जाता है.

बस्तर रियासत 1324 ईस्वी के आसपास स्थापित हुई, जब अंतिम काकतिया राजा, प्रताप रुद्र देव के भाई अन्नाम देव ने वारंगल को छोड़ दिया और बस्तर में अपना शाही साम्राज्य स्थापित किया. महाराजा अन्नम देव के बाद महाराजा हम्मीर देव, बैताल देव, महाराजा पुरुषोत्तम देव, सहित कई राजाओं ने यहां शासन किया. बस्तर में अंतिम शासन महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव का रहा. 1948 में भारत के राजनीतिक एकीकरण के दौरान बस्तर रियासत को भारत में विलय कर दिया गया.

कभी भाजपा की थी परंपरागत सीट 

ये तो सभी को पता है कि साल 1951 से पूरे देश में आम चुनावों की शुरुआत हुई थी. अगर बात करें बस्तर की, तो 1952 में इसे लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया. 1998 के बाद से भाजपा ने 2014 तक लगातार छह लोकसभा चुनाव जीते. फिर 25 साल बाद, 2019 में दीपक बैज ने यहां कांग्रेस का झंडा फहराया. उन्होंने भाजपा के बैदूराम कश्यप को 38,982 वोटों से हराया था. 

2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की कुल जनसंख्या 8,34,375 थी. इसमें 4,13,706 पुरुष एवं 4,20,669 महिलाएं हैं. जनसंख्या में 70% जनजातीय समुदाय जैसे गोंड, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा और धुरुवा समुदाय हैं. यही कारण है कि यहां की राजनीति में भी इन समुदायों का बहुत असर रहता है. बल्कि इन्हें इस क्षेत्र का वोट बैंक भी माना जाता है.  

8 में से 5 विधान सभा पर भाजपा

बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल 8 विधान सभा सीट है. इनमें से पांच पर भाजपा और तीन पर कांग्रेस के विधायक हैं. कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंटा विधान सभाओं में से केवल जगदलपुर ही सामान्य श्रेणी की सीट है. बाकी सभी एसटी के लिए आरक्षित हैं. इस लोकसभा में कुल छह जिले शामिल हैं. फिलहाल यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. कुल 1861 मतदान केंद्रों पर लगभग 13 लाख 77 हजार 946 मतदाता अपना वोट डालेंगे.

Lok Sabha Election History of Bastar

Lok Sabha Election History of Bastar

पिछले पांच आम चुनावों का इतिहास

अगर बात करें इस सीट के चुनावी इतिहास की तो यहां उम्मीदवारों ने कई बार स्वतंत्र रूप से सरकार बनाई हैं. बल्कि, यहां 1952 के पहले आम चुनावों में मुचाकी कोसा ने स्वतंत्र सरकार बनाई थी. इसके बाद 1957 में कांग्रेस आई और फिर 1962 से 71 तक दोबारा स्वतंत्र उम्मीदवार ने बाजी मारी.अगर बात करें भाजपा की, तो 1998 के चुनाव में पहली बार बलिराम कश्यप ने यहां सरकार बनाई और इसके बाद 2014 तक भाजपा ने अपना दबदबा कायम रखा. लेकिन, 2019 में भाजपा के इस किले में सेंध लगाते हुए कांग्रेस के दीपक बैज ने बाजी मारी और फिलहाल वहीं यहां से सांसद है.

आदिवासी वोट बैंक वाली सीट है बस्तर

बस्तर लोकसभा क्षेत्र एक आदिवासी बाहुल्य निर्वाचन क्षेत्र है. 2023 में यहां की आठों विधान सभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस को प्राप्त वोटों की तुलना करें तो भाजपा को 4 लाख 87 हजार 399 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 4 लाख 5 हजार 753. इस तरह कांग्रेस 81 हजार 646 वोटों से पीछे रही. कांग्रेस के  प्रत्याशी कवासी लखमा कोंटा से विधायक हैं. उन्होंने भाजपा के सोयम मुका के खिलाफ यह चुनाव मात्र 1981 वोटों से जीता था.

कवासी बनाम महेश कश्यप

इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने बस्तर से उनके ही पार्टी से छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री 70 वर्षीय कवासी लखमा को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने एक बार फिर जाति आधारित कार्ड खेलते हुए 49 वर्षीय महेश कश्यप को पहली बार चुनावी रण में उतारा है. आदिवासी नेता कवासी लखमा बस्तर संभाग में ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति में जाना पहचाना नाम है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोंटा से वे 6 बार विधायक चुने जा चुके हैं. इससे पहले पार्टी ने उन्हें 2011 के लोकसभा उप चुनाव में टिकट दिया था, लेकिन वह हार गए थे.

वहीं, भाजपा के प्रत्याशी महेश कश्यप पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहे है. हालांकि, भाजपा ने इससे पहले दो बार कश्यप वर्ग (बलिराम कश्यप और दिनेश कश्यप) को टिकट दिया है. इस बार देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा अपना खोया हुआ सीट वापस ले पाती है या कांग्रेस दोबारा अपनी सरकार बनाती है.

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फिलहाल, यहां चुनावी प्रचार-प्रसार का शोर बंद हो गया है. मतदान के दिन आदिवासी वोटों का क्या रुख रहेगा, ये तो 4 जून को ही पता चलेगा.

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