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CG Liquor Scam: ईडी का बड़ा दावा, छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में 1000 करोड़ के मनी ट्रेल में शामिल थे चैतन्य

Chhattisgarh Liquor Controversy: ईडी का दावा है कि इस पूरे घोटाले की ₹1,392 करोड़ की राशि 2019 से 2022 के बीच कांग्रेस और उसके सहयोगियों को मिली.

CG Liquor Scam:  ईडी का बड़ा दावा, छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में 1000 करोड़ के मनी ट्रेल में शामिल थे चैतन्य

Sharab Ghotala Chhattisgarh: कैश, कमीशन और करप्शन की ये कहानी कोई सस्पेंस थ्रिलर नहीं है. प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक छत्तीसगढ़ की ये वो काली सच्चाई है, जिसके खुलासा से राज्य की सियासत में भूचाल आ गया है. इसकी सबसे धमाकेदार कड़ी जुड़ी है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी से.

ईडी की जांच रिपोर्ट किसी सियासी क्राइम ड्रामा जैसी है, जिसमें हर मोड़ पर घूस, घोटाले और तत्कालीन सरकार की मिलीभगत के सुराग मिलते हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2019 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में जो शराब व्यापार चला, वह एक सरकारी लूट मशीन थी. ऊपर से नीति का चोला, लेकिन अंदर से ताक़तवरों की कमाई का खेल. ईडी का दावा है कि इस पूरे घोटाले की ₹1,392 करोड़ की राशि 2019 से 2022 के बीच कांग्रेस और उसके सहयोगियों को मिली.

इस खेल का किंगपिन कौन था?

ईडी के मुताबिक़, तत्कालीन मुख्यमंत्री का बेटा चैतन्य बघेल, जो न केवल काली कमाई के तार जोड़ रहा था, बल्कि उसे रियल एस्टेट में बदलकर एक ऐसी दुनिया बना रहा था, जहां कैश के बदले सत्ता मिलती थी. इस घोटाले को और खौफनाक बनाता है, ईडी का वो खुलासा, जिसमें कहा गया है कि ये पूरा शराब सिंडिकेट अनवर ढेबर,अनिल टुटेजा और अरुण पति त्रिपाठी की मिलीभगत से राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और रिटायर्ड IAS अधिकारी विवेक ढांड के संरक्षण में चल रहा था. ईडी का दावा है कि विवेक ढांड सिर्फ पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सीधे लाभार्थी थे. यानी पूरी अफसरशाही पर एक संगठित गिरोह ने कब्जा कर लिया था.

भ्रष्टाचार की कमाई से खड़ी की गई  "विठ्ठल ग्रीन"

ईडी के अनुसार, चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी किसी औपचारिक कार्रवाई का हिस्सा नहीं, बल्कि सिंडिकेट के आर्थिक जाल का सबसे अहम हिस्सा पकड़ने की कोशिश है. उनका रियल एस्टेट प्रोजेक्ट विठ्ठल ग्रीन असल में एक “मनी लॉन्ड्रिंग लैब” बन चुका था. बाहर से आवासीय इमारत, लेकिन अंदर से भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी एक सोची-समझी साजिश.

ऐसे किया गया लेनदेन का खेला

NDTV के पास मौजूद रिमांड नोट के मुताबिक, चैतन्य की कंपनी को ‘सहेली ज्वेलर्स' नाम की शेल कंपनी से ₹5 करोड़ मिले. इसे लोन बताया गया, लेकिन न ब्याज दिया गया, न भुगतान किया गया. किताबों में सिर्फ ₹7.14 करोड़ की लागत दिखाई गई, लेकिन हकीकत में प्रोजेक्ट की लागत ₹13–15 करोड़ तक है, जिनमें से ₹4.2 करोड़ कैश में ठेकेदारों को दिए गए. 2020 में एक ही दिन में 19 फ्लैट शराब कारोबारी त्रिलोक सिंह ढिल्लन के कर्मचारियों के नाम खरीदे गए, ताकि असली लेन-देन की परतें छुपाई जा सकें. ये घोटाला सिर्फ कागज़ों की हेराफेरी नहीं, बल्कि ये सिस्टम के हाइजैक की कहानी है.

तीन हिस्सों में बंटा था पूरा खेल

पार्ट A: डिस्टिलरीज से ₹75 प्रति शराब केस की उगाही, जो सरकार के नाम पर वसूला जाता था, लेकिन सीधा सिंडिकेट की जेब में जाता था. इस चैनल से ₹319 करोड़ कमाए गए.

पार्ट B: डुप्लीकेट होलोग्राम, नकली स्टॉक्स और नकद बिक्री से बनी एक शराब अर्थव्यवस्था. 2022–23 में हर महीने 400 ट्रक बिना सरकारी रिकॉर्ड के शराब ले जाते रहे. एक केस पर ₹3,880 वसूला गया, जिसमें से केवल ₹590 सरकार को मिलता, बाकी ₹3,000 सीधे काले धन में बदल जाता.

पार्ट C: विदेशी शराब की सप्लाई में FL-10A लाइसेंस के ज़रिए एक्सक्लूसिव कंपनियों को लाइसेंस दिए गए. इन कंपनियों ने पुरानी दरों पर शराब खरीदी और ऊंची कीमतों पर बेची. इस मॉडल से ₹211 करोड़ का काला मुनाफ़ा कमाया गया, जिसमें 60% हिस्सा सीधे राजनीतिक आकाओं को गया.

कैश कलेक्टर के खोले ये राज

सबसे चौंकाने वाला खुलासा सामने आया लक्ष्मीनारायण बंसल उर्फ पप्पू के कबूलनामे से, जो इस पूरे घोटाले का कैश कलेक्टर था. उसने ईडी को बताया कि ₹1,000 करोड़ से अधिक की नकद राशि उसने खुद मैनेज की और चैतन्य बघेल के निर्देश पर ₹80–100 करोड़ नकद केके श्रीवास्तव को पहुंचाए थे. अनवर ढेबर के फोन से मिली चैट्स भी इस लिंक को पुख्ता करती हैं.

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चैतन्य बघेल ने साधी चुप्पी

अब चैतन्य बघेल ईडी की 5 दिन की कस्टडी में हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और पैसों के फ्लो से जुड़े सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं.

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