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यहां आंगनबाड़ी में खिलौने नहीं, टूटे Toys से खेलने को मजबूर बच्चे, क्यों देरी कर रहा विभाग?

Toys Shortage : बचपन का मजा तब और भी खास हो जाता है, जब मासूमों के हाथों में खिलौने होते हैं, लेकिन जब खिलौने नहीं होते तो मजा फीका हो जाता है. दरअसल छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में आंगनवाड़ी में खिलौनों की कमी है, जिसकी वजह से टूटे खिलौने से बच्चे खेलने को मजबूर हैं. 

यहां आंगनबाड़ी में खिलौने नहीं, टूटे Toys से खेलने को मजबूर बच्चे, क्यों देरी कर रहा विभाग?
यहां आंगनबाड़ी में खिलौने नहीं, टूटे Toys से खेलने को मजबूर बच्चे,क्यों देरी कर रहा विभाग?

CG News In Hindi: छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में 2 साल से खिलौनों की सप्लाई नहीं हो रही है. बच्चों के सामने प्लास्टिक के खिलौने ज्यादा दिन टिक नहीं पाते, ऐसे में बच्चे टूटे खिलौनों से खेलने को मजबूर हैं. जिले के ग्राम पंचायत बस्ती और सलका के आंगनबाड़ी केंद्रों में प्लास्टिक के कुछ छोटे खिलाैने ही बचे हैं. जूनापारा केंद्र में भी खिलौने नहीं है. यही हाल कंचनपुर, बुड़ार व अन्य केंद्रों का है. 

करीब 7 हजार बच्चों की संख्या दर्ज

आपको बता दें कि जिले के 449 आंगनबाड़ी केंद्र व 90 मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब 7 हजार बच्चों की संख्या दर्ज है. आंगनबाड़ियों में शासन से हर साल खिलौनों की सप्लाई समय पर नहीं होने के कारण बच्चों के पास खिलौने नहीं है, जिससे बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है.

लंबे समय से नहीं हुई सप्लाई

टूटे खिलौनों से बच्चों में नकारात्मक असर पड़ सकता है. महिला बाल विकास विभाग के अनुसार परियोजना स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्रों में खिलौने बांटे गए थे, कुछ केंद्र छूट गए होंगे वहां खिलौने दिये जाएंगे. विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रों में खिलौने की सप्लाई हुई थी, इसके बाद खिलौने नहीं आए हैं.

शहर समेत ग्रामीण क्षेत्रों के आंगनबाड़ियों की पड़ताल की तो सामने आया कि ज्यादातर केंद्रों में बच्चे टूटे खिलौनों से ही खेलते नजर आए. कार्यकर्ताओं ने बताया कि जिलेभर में ऐसी ही स्थिति है. बीते 2 वर्ष तक बच्चों को खिलौने नहीं मिल पाए. जबकि शासन से हर वर्ष खिलौना खरीदी के लिए स्वीकृति आती है.

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गलत असर पड़ेगा

विभागीय अधिकारियों का कहना है कि 2024 में वितरण नहीं हो पाया. वहीं, डॉक्टर बताते हैं कि बचपन में बच्चों की प्रवृत्ति भी ज्यादातर सीखने की ही होती है. ऐसे में यदि आंगनबाड़ी के छोटे-छोटे बच्चों को हाथ-पैर टूटे गुड्डे, गुड़िया, चपटे बॉल, बिना चक्के की कार या अन्य खिलौने आदि खेलने को मिल जाएं तो बच्चे अपने लर्निंग लाइन (सीखने की प्रक्रिया) से भटक जाएंगे. यही नहीं, बच्चों के मन मस्तिष्क पर भी गलत असर पड़ेगा. मामले में महिला बाल विकास की जिला परियोजना अधिकारी प्रियंका रानी गुप्ता ने कहा कि केंद्रों में खिलौने की सप्लाई की गई है. कुछ केंद्र छूट गए होंगे, जिन केंद्रों में खिलौने नहीं है, वहां खिलौने भिजवाएंगे.

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