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Indira Garden: वेंटिलेटर पर गौरेला का 'ऑक्सी जोन', बदहाली की मार झेल रहा 1200 हेक्टेयर में फैला पार्क

Indira Garden Gaurella: गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में 1200 हेक्टेयर में फैला इंदिरा उद्यान बदहाली और अव्यवस्था की मार झेल रहा है. शहर के बीच बसा पार्क ऑक्सी जोन का काम कर रहा है. इसपर NDTV की विशेष ग्राउंड रिपोर्ट...

Indira Garden: वेंटिलेटर पर गौरेला का 'ऑक्सी जोन', बदहाली की मार झेल रहा 1200 हेक्टेयर में फैला पार्क
इंदिरा उद्यान की हालत खस्ता

Indira Garden Chhattisgarh: कभी गुलजार रहने वाला, हरियाली से भरपूर छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले का इकलौता बड़ा ऑक्सीजोन कहा जाने वाला इंदिरा उद्यान (Indira Garden) आज वीरानी और बदहाली की मार झेल रहा है. 1200 हेक्टेयर में फैले इस हरित क्षेत्र को वन विभाग (Forest Department) की उदासीनता ने एक अंधेरे कोने में धकेल दिया है. जहां कभी सुकून की तलाश में लोग आते थे, वहां अब शराबखोरी, अय्याशी और रात की आवारगी हावी हो गई है. स्थानीय रहवासी अब उद्यान की इस दुर्दशा से न सिर्फ नाराज हैं, बल्कि रोजाना हो रहे अतिक्रमण को लेकर गहरी चिंता में भी हैं.

NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट इस पूरे मामले की सच्चाई सामने लाती है, कागजों में चल रही योजनाएं, जमीन पर सिर्फ वादों की गूंज. क्या प्रशासन अब भी जागेगा? या इंदिरा उद्यान सिर्फ एक नाम बनकर रह जाएगा? मामले में जिम्मेदार अधिकारी बात करने को तैयार नहीं है.

प्रकृति का सबसे सुंदर रूप था इंदिरा उद्यान

एक समय था जब इंदिरा उद्यान का नाम छत्तीसगढ़ के अच्छे उद्यानों में आता था, लेकिन आज इसकी हालत देखकर लोगों को दुख होता है. सरकार की योजनाएं कागज पर तो दिखती हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई इन उजड़े पलों में साफ झलकती है. इंदिरा उद्यान सिर्फ एक ऑक्सीजन जोन नहीं, बल्कि यहां कभी बच्चों के लिए खास बाल उद्यान भी हुआ करता था, जिसमें छोटे-बड़े झूले, फिसलनियां, चकरी और फूलों की रंगीन फुलवारी हुआ करती थी.

इंदिरा उद्यान की खस्ता हालत

इंदिरा उद्यान की खस्ता हालत

90 के दशक में इंदिरा उद्यान सिर्फ एक बाग नहीं था, यह जानवरों का सुरक्षित आशियाना भी था. यहां एक बड़ा रेस्क्यू सेंटर हुआ करता था. ऐसा केंद्र जहां घायल या भटके हुए जंगली जानवरों को इलाज और आराम मिलता था. हिरण, कोटरी, सफेद भालू, काला भालू, खरगोश, बंदर, लकड़बग्घा और हाइना जैसे वन्य जीव कभी इस सेंटर में इनकी देखरेख होती थी. इन्हें स्वस्थ कर जंगल में छोड़ना या जरूरत पर ज़ू भेजना, यही उद्देश्य था.

उपेक्षा का शिकार हुआ उद्यान

हजारों पौधे लगाने के बाद उनका रखरखाव और संधारण उपेक्षा का शिकार हो जाता है. मिट्टी से भरे पॉलिथीन के खाली बैग यहां-वहां पड़े रहते हैं, निस्तारण का कोई सिस्टम नहीं है. वन विभाग खुद कहता है प्लास्टिक बंद करो, लेकिन खुद ही हजारों प्लास्टिक बैग खुले में फेंके जा रहे हैं. ये कैसा दोहरा मापदंड है? ऐसा नहीं है इंदिरा उद्यान के लिए कोई बजट या फंड नहीं आता है. शासन बाकायदा इंदिरा उद्यान के लिए बजट भेजती है, लेकिन उद्यान प्रबंध इस बजट का किस तरह से दुरुपयोग करती है, इसका उदाहरण भी हम आपको दिखाएंगे.

प्रशासन की लापरवाही

प्रशासन की लापरवाही

सैकड़ों की संख्या में वर्मी कंपोस्ट के फिट बना दिए गए जिसमें आज तक कभी वर्मी डाला ही नहीं गया, उसका भला उपयोग कैसे हो, इस 1200 हैकटेयर के इंदिरा उद्यान में अवस्थित निर्माण सिर्फ इसलिए कराए गए कि पैसे का बंदरबांट किया जा सके, योजना पर तरीके से कोई भी निर्माण नहीं किया गया जिसे मौक़ा मिला उसने अपने हिसाब से निर्माण कार्य किया, इसी इसी इंदिरा उद्यान में जिले के अलग-अलग तीर्थ स्थलों को ध्यान में रखते हुए एक स्थान पर एक थीम पार्क बनाया गया ताकि लोग एक नजर में जिले के पर्यटन एवं आस्था के केंद्रों को जान सकें, लेकिन देखरेख के अभाव में वह भी जर्जर और जीर्ण हो गया है.

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बचते नजर आए अधिकारी

इस मामले को लेकर पूरे इंदिरा उद्यान और उसकी व्यवस्था को लेकर मरवाही वन मंडल के अधिकारी ग्रीष्म चांद से व्यवस्थाओं की जानकारी देने से बचते हुए नजर आए. एनडीटीवी जब उनके कार्यालय पहुंचे, तो 1 घंटे बैठने के बाद उन्होंने यह कह कर मिलने से मना कर दिया कि आज हम बहुत व्यस्त हैं, मुलाकात नहीं कर पाएंगे.

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