Mahatma Gandhi Story: देश की आजादी यूं ही नहीं मिली. इस आजादी के लिए हजारों लोगों ने कुर्बानी दी है. आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ का भी अपना योगदान रहा है. रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित जैतुसाव मठ में स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर बैठकें होती थी. यहां प्रदेशभर के आजादी के मतवाले जुटते थे. यहीं से आंदोलन को छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में ले जाने की रणनीति बनाई जाती थी. छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देशभर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यहां पहुंचते थे. मठ के ट्रस्टी अजय तिवारी बताते है कि आजादी के आंदोलन में छत्तीसगढ़ की अहम भूमिका रही है.
मठ में अंग्रेजों से आजादी की बनती थी रणनीति
जैतुसाव मठ ट्रस्ट के सचिव महेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि उनका जन्म देश आजाद होने के पहले हुआ था. उन्होंने अपने पिता से सुना है कि किस तरह मठ में आजादी की लड़ाई को लेकर बैठकें होती थीं. अंग्रेजों के समय छत्तीसगढ़ सेंट्रल प्रोविंस का हिस्सा हुआ करता था. सेंट्रल इंडिया की आजादी के आंदोलन में छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की अहम भूमिका रही है. महंत लक्ष्मीनारायण दास, पंडित सुंदर लाल शर्मा, खूबचंद बघेल, पंडित रवि शंकर शुक्ल जैसे नेता थे, जो आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहते थे. महेंद्र अग्रवाल बताते है कि तब के दौर में अंग्रेज सामान्यतः मठ में प्रवेश नहीं करते थे. इसलिए यहां बैठकें होती थीं. जब अंग्रेजों को पता चला, तो उसके बाद से मठ में अस्थाई जेल बना दी गई. अंग्रेज आसपास के आंदोलन से जुड़े लोगों को हिरासत में लेकर आते और यहीं बंद कर देते थे.
गांधी जी दो बार आए थे छत्तीसगढ़
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का स्वतंत्रता आंदोलन के समय दो बार छत्तीसगढ़ के दौरे पर आए थे. वे पहली बार 1920 में आए थे. इसके बाद 1933 में आए थे. गांधी जी ने यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की बैठक ली थी. आज उस जगह पर गांधीजी की प्रतिमा और गांधी हॉल का निर्माण किया गया है. 1920 में अंग्रेजों ने धमतरी के कंडेल नहर के पानी पर टैक्स लगा दिया था. यहां के लोगों ने अंग्रेजों के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और गांधी जी को आमंत्रित किया था. इसके बाद महात्मा गांधी इस आंदोलन में शामिल होने पहुंचे थे. हालांकि, गांधी जी के पहुंचने के पहले ही अंग्रेजी हुकूमत ने आदेश वापस ले लिया था.
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जैतुसाव मठ के पास कुएं से हरिजन लड़की से गांधी ने पिया था पानी
महात्मा गांधी छूआ छूत को बड़ी सामाजिक बुराई मानते थे . उन्होंने 1930 के दशक में दलितों को ‘हरिजन' बोलना शुरू किया. 1932 में, “हरिजन सेवक संघ” की स्थापना की . 1933 में गांधी जी जब रायपुर आए उस समय जैतुसाव मठ के कुएं से हरिजन पानी नहीं ले सकते थे. महेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि जब गांधी जी आए उसी समय छुआछूत खत्म करने और समाज को जोड़ने के लिए आंदोलन चल रहा था. गांधी जी ने मठ के पास के कुएं से दलित लड़की से पानी भरवाकर पिया और लोगों को पिलवाया.
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