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16वीं शताब्दी से इस गांव में नहीं हुआ हाेलिका दहन, जानिए क्यों होली पर आग नहीं लगाते यहां ग्रामीण

Holika Dahan 2025 Muhurat: छत्तीसगढ़ के इस गांव में होलिका के साथ-साथ रावण दहन की परंपरा भी नहीं है. यहां के लोगों सदियों से ये परंपरा निभाते हुए आ रहे हैं. आइए जानते हैं ऐसा क्यों है?

16वीं शताब्दी से इस गांव में नहीं हुआ हाेलिका दहन, जानिए क्यों होली पर आग नहीं लगाते यहां ग्रामीण
Holika Dahan 2025: इस गांव में नहीं होता होलिका दहन

Holika Dahan News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के तेलीनसती गांव में 16वीं शताब्दी से होलिका दहन (Holika Dahan) नहीं हुआ है. इतना ही नहीं इस गांव में होलिका दहन के अलावा रावण दहन भी नहीं किया जाता है. इसके अलावा गांव में किसी भी व्यक्ति के मृत्यु के चिता न जलाने की परंपरा भी कई वर्षों से चली आ रही है. वक्त जरूर बदला, लेकिन धमतरी से महज 5 किलोमीटर दूर तेलीनसती गांव की दस्तूर नहीं बदली है. यहां के ग्रामीण अबीर गुलाल तो जमकर उड़ाते हैं. लेकिन होलिका दहन नहीं करते हैं.

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क्या है मान्यता?

इस गांव में आज भी बिना होलिका दहन के ही होली का त्योहार मनाया जाता है. गांव वालों की मान्यता है कि आग जलाने से उनके ऊपर आफत आ सकती है. होली नहीं जलाने की प्रथा आज की नहीं बल्कि 16वीं शताब्दी से चली आ रही है. इस परंपरा को युवा वर्ग भी आगे बढ़ा रहे है.

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धमतरी से सरहद के करीब तालाब के किनारे बने मन्दिर के इतिहास में  इसकी दास्तान छिपी है. तेलीनसत्ती गांव में ना ही होली जलाई जाती है और न ही दशहरे में रावण का दहन किया जाता है. वैसे इन त्योहारों की खुशियां और उमंग यहां छोटे से लेकर हर बड़े बुजुर्ग में बराबर ही नजर आती है, लेकिन इन दोनों मौकों पर गांव में आग नहीं जलती. अगर यह सब होता भी है तो सरहद के बाहर. ऐसी मान्यता है कि होली के मौके पर गांव में आग नहीं जलाई जाती है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो गांव में आफत आ जाती है.

गांव वालों का कहना है कि सदियों पहले इस गांव में एक महिला बिना शादी किए, एक युवक को पसंद करती थी और उस युवक को अपना पति मान चुकी थी. बाद में वह महिला उस युवक की चिता में सती हुई थी तब से यह परंपरा चली आ रही है. अभी भी इसे हर शख्स मानता है.

गांव के प्रमुख ग्रामीण बताते है कि गांव में एक जमींदार था. जो सात भाई और एक बहन थी. बहन ने गांव के युवक से बिना शादी किये, मन ही मन अपना पति मान कर उस युवक को अपने घर का दमाद व घर जमाई बनकर लड़की के घर रहता था. उनकी सैकड़ों एकड़ की खेती भी थी एक बार खेत का मेड़ टूट गया और इसके बाद सातों भाई ने मेड़ बांधने की खूब कोशिश की, लेकिन वह बांध नहीं सके. एक दिन सातों भाइयों ने अपनी बहनोई को मारकर उसी मेड़ में गाड़ दिया और जब बहन ने पूछा तो उन्होंने सारी बातें बता दी. इस बात को जानने के बाद बहन ने पति को मेड के अंदर से बाहर निकाल कर पति की जलती चिता में जलकर सती हो गई. इसके बाद से ही गांव में होलिका नहीं जलाई जाती है. इसकी याद में जय मां सती मंदिर भी बनाया गया है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश भी वर्जित है.

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इस गांव में हर शुभ काम के लिए तेलिन सती माता का आशीर्वाद लेने के बाद ही कुछ भी कार्य किया जाता है. गांव में खास बात ये भी है कि अन्य गांवों में हैजा जैसे बीमारी फैलती है उल्टी दस्त होती है, लेकिन तेलिनसत्ती गांव मे माता सती की कृपा से आज तक बीमारी नहीं फैली है.

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