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हिंदी में डॉक्टर बनने का सपना टूटा ! छत्तीसगढ़ में MBBS की हिंदी मीडियम सीट पर एक भी एडमिशन नहीं, वजह क्या?

Hindi Medium MBBS: छत्तीसगढ़ में MBBS की पढ़ाई को हिंदी में कराने की सरकारी मंशा को इस साल तगड़ा झटका लगा है, क्योंकि शैक्षणिक सत्र 2025-26 में हिंदी मीडियम कोर्स के लिए किसी भी छात्र ने प्रवेश नहीं लिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों और अंग्रेजी मेडिकल टर्मिनोलॉजी के चलते अव्यावहारिक साबित हुआ है.

हिंदी में डॉक्टर बनने का सपना टूटा ! छत्तीसगढ़ में MBBS की हिंदी मीडियम सीट पर एक भी एडमिशन नहीं, वजह क्या?

MBBS in Hindi: छत्तीसगढ़ में डॉक्टरी की पढ़ाई को हिंदी मीडियम में कराने की सरकारी मंशा को इस साल तगड़ा झटका लगा है. राज्य सरकार ने पिछले सत्र में भले ही ग्रामीण छात्रों को सहूलियत देने के लिए MBBS की पढ़ाई हिंदी में कराने का बड़ा फैसला लिया हो, लेकिन शैक्षणिक सत्र 2025-26 में हिंदी मीडियम कोर्स के लिए किसी भी छात्र ने प्रवेश नहीं लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि छात्र खुद ही मेडिकल एजुकेशन के लिए हिंदी को चुनना नहीं चाहते हैं.

क्यों टूटा हिंदी मीडियम का सपना?

बता दें कि छत्तीसगढ़ के सरकारी और निजी 14 मेडिकल कॉलेजों में करीब 2000 MBBS सीटें हैं. पिछले सत्र में सिर्फ दो छात्रों ने हिंदी मीडियम में दाखिला लिया था, लेकिन इस साल यह संख्या शून्य हो गई. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह मेडिकल टर्मिनोलॉजी का अंग्रेजी में होना और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का डर है.

आईएमए (IMA) रायपुर के पूर्व चेयरमैन डॉ. राकेश गुप्ता इस फैसले को ही अव्यावहारिक मानते हैं. उनका कहना है कि सभी किताबें अंग्रेजी में हैं और छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में बने रहने के लिए अंग्रेजी में MBBS को ही पसंद करते हैं.

उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) का हवाला देते हुए कहा कि हिंदी मीडियम की कोई जानकारी नहीं है और यह फैसला अव्यावहारिक है. हालांकि एक तथ्य ये भी है कि MBBS में प्रवेश पाने वाले लगभग 70% छात्र हिंदी भाषी पृष्ठभूमि से आते हैं. परेशानी ये  है कि वे भी हिंदी में पढ़ना नहीं चाहते. अधिकारियों के अनुसार, छात्रों की संख्या कम होने के कारण इस वर्ष हिंदी माध्यम की कक्षाएं शुरू करने की योजना रद्द कर दी गई है.

सरकार का दावा, छात्रों की सुविधा

चिकित्सा शिक्षा निदेशक (DME) डॉ.यूएस पैकरा का दावा है कि शासन की तरफ से हिंदी में किताबें (लिटरेचर) उपलब्ध करा दी गई हैं और यह छात्र पर निर्भर करता है कि वह हिंदी या अंग्रेजी में पढ़ाई करे. यानी, सरकार ने वैकल्पिक व्यवस्था दी, लेकिन चुनने का अधिकार छात्र को ही है.

फैसला'जल्दबाजी' या 'सुविधा'?

इस मामले पर राजनीति भी गरमा गई है. कांग्रेस मीडिया सेल के चेयरमैन सुशील आनंद शुक्ला ने हिंदी मीडियम से MBBS की पढ़ाई शुरू करने के फैसले को जल्दबाजी का और अव्यावहारिक करार दिया है.

वहीं, बीजेपी प्रवक्ता शताब्दी पांडेय ने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि भाषा बाधा न बने, इसलिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी और हिंदी मीडियम में पढ़ना छात्रों की सुविधा पर है. 

पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश का हाल

जहां छत्तीसगढ़ में हिंदी मीडियम MBBS की राह ठंडी पड़ी है, वहीं पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में जरूर कुछ छात्रों ने यह राह चुनी है. मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य था, जिसने MBBS की पढ़ाई हिंदी में शुरू की. शुरुआती चरण में वहां भी छात्रों का रुझान बहुत अधिक नहीं था, लेकिन छात्रों की एक छोटी संख्या ने हिंदी में दाखिला लिया है. हालांकि, वहां भी मेडिकल टर्मिनोलॉजी और भविष्य की चुनौतियों को लेकर संशय बना हुआ है.
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