छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सुकमा जिले का पूवर्ती गांव जहां से निकले मड़वी हिड़मा ने प्रतिबंधित माओवादी संगठन में शामिल होकर बम, बंदूक के दम पर दहशत के रूप में अपनी पहचान बनाई. दशकों तक पूवर्ती गांव को भय का केंद्र बनाए रखा. लेकिन, अब इस गांव की तस्वीर बदल रही है. गांव के युवाओं के हाथ में अब दहशत की बंदूक नहीं, बल्कि उम्मीद की मशाल है.
बस्तर ओलंपिक 2025 में हिड़मा के पूवर्ती गांव के रहने वाले युवा डोड्डा विजय के हाथों में समापन कार्यक्रम की मशाल थमाई गई है. इससे वे चर्चा में हैं. विजय बताते हैं कि उनके गांव की तस्वीर तेजी से बदल रही है. एनडीटीवी से बात करते हुए विजय कहते हैं कि पूवर्ती गांव में अब दहशत का चेहरा रहे माड़वी हिड़मा की चर्चा नहीं होती. गांव में स्कूल अस्पताल राशन दुकान जैसी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं. पढ़ाई के साथ बच्चे खेल में भी हिस्सा ले रहे हैं. बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन दूरस्थ गांव के रहने वाले हम जैसे युवाओं के लिए अपनी प्रतिभा दिखाने का बेहतर विकल्प है.
आयोजन हमारे लिए जीत
विजय बताते हैं कि उनकी टीम ने कबड्डी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, ब्लॉक स्तर पर जीत दर्ज की, लेकिन आगे हार का सामना करना पड़ा. कबड्डी प्रतियोगिता में उनकी टीम को जरूर हार मिली, लेकिन छिपी हुई अपनी प्रतिभा को सामने लाने में यह आयोजन हमारे लिए जीत साबित हुआ है. बस्तर ओलंपिक 2025 की मशाल अपने हाथों में उठाकर यह संदेश देने की कोशिश है कि बस्तर के दूरस्थ गांव भी अब माओवाद की वजह से नहीं पहचाने जाएंगे.
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121 गांव के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे
गौरतलब है कि बस्तर ओलंपिक 2025 में संभाग के अंदरूनी 121 ऐसे गांव के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं, जो पहली बार किसी खेल प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए गांव से बाहर निकले हैं. सुकमा बीजापुर नारायणपुर समेत बस्तर संभाग के सभी सात जिलों के इन 121 गांव में के ऐसे 5000 प्रतिभागी बस्तर ओलंपिक 2025 में शामिल हुए.