Coffee Cultivation News : बस्तर...नाम सुनते-बोलते ही जो सबसे पहला ख्याल आता है, वो है- नक्सलवाद का. ऐसी तस्वीर बताई जाती है कि यहां नक्सली होंगे और सुरक्षाबलों की धमक होगी और पिछड़े आदिवासी समुदाय के लोग होंगे. लेकिन आपको सुखद आर्श्चय होगा नए जमाने में बस्तर बदल रहा है. यहां अब कॉफी की खेती हो रही है. बस्तर कॉफी ब्रांड फेमस भी हो रहा है. दूसरे शब्दों में कहें, तो जहां पहले बारूद की गंध थी, वहां अब कॉफी की सुगंध पसर रही है. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि कैसे ये बदलाव आया.
20 एकड़ की खेती से हुई बदलाव की शुरुआत
चार दशकों से माओवाद का दंश झेल रहे बस्तर को अब नई पहचान मिल रही है. एक तरफ तो सुरक्षाबलों के लगातार चलाए जा रहे अभियान नक्सली बैकफुट पर हैं तो दूसरी तरफ स्थानीय लोग सरकार के सहयोग से कॉफी की खेती कर रहे हैं. अहम ये है कि इसकी शुरुआत उसी झीरम घाटी से हुई जहां कभी नक्सलियों ने बड़ी संख्या कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की हत्या की थी. झीरम घाटी में ही मौजूद है दरभा इलाका. इसी दरभा के बड़े इलाके में अब कॉफी की खेती हो रही है.
दरअसल सरकार के उद्यान विभाग के वैज्ञानिकों ने अपनी खोज में पाया कि यहां की जमीन कॉफी की खेती के लिए काफी अनुकूल है. जिसके बाद प्रयोग के तौर पर साल 2017 में यहां 20 एकड़ में कॉफी की खेती की शुरुआत की गई.इलाके में नक्सली गतिविधियां लगभग खत्म हो चुकी थी लिहाजा शुरुआती प्रयोग सफल रहा.
अब 270 एकड़ में कॉफी की खेती
NDTV की टीम जब इसी इलाके में चांदामेटा गांव पहुंची तो वहां किसानों ने बताया कि जो प्रयोग सिर्फ 20 एकड़ इलाके में शुरु हुआ था वो अब बढ़कर 270 एकड़ इलाके में पहुंच गया है. यहीं हमें मिले आयतु नाम के किसान. वे बताते हैं कि इस इलाके में पहले नक्सलवाद चरम पर था. एक बार तो चुनाव में वोट डालने की वजह से नक्सलियों ने उन्हें और उनके बड़े भाई को पेड़ लटकाकर पूरे गांव के सामने मारा था. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. अब आयतु और उनके साथी किसान करीब 60 एकड़ इलाके में कॉफी की खेती कर रहे हैं.
कॉफी की भीनी खुशबू से बदलाव की बयार
इलाके में कॉफी की खेती जैसे-जैसे सफल होती गई वैसे-वैसे और किसान भी इससे जुड़ते चले गए. अब 270 एकड़ इलाके में कॉफी की खेती हो रही है. 86 किसानों ने अपने खेतों में कॉफी की प्लांटेशन की है. बस्तर के कलेक्टर एस हरीश बताते हैं कि पहले कॉफी को केवल प्रयोग के तौर पर लगाया गया था लेकिन अब यह बस्तर की पहचान बदलने में मील का पत्थर साबित हो रहा है. सरकार की मंशा है कि भविष्य में और भी बड़े इलाके में कॉफी की खेती हो. जाहिर है नक्सलवाद से पीड़ित बस्तर अब धीरे-धीरे बदल रहा है और वहां बारुद की गंध की जहर कॉफी की भीनी खुशबू चारों तरफ फैल रही है.
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