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चाय के बागान बने चारागाह, जशपुर के ड्रीम प्रोजेक्ट का ऐसे हुआ बेड़ा गर्क, किसकी अनदेखी ?

Tea Cultivation In Jashpur : असम की तर्ज पर छत्तीसगढ़ के जशपुर में चाय की खेती का सपना देखा गया था. सपना यह भी था कि इस चाय के बागान से लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा. लेकिन ख्वाब के हकीकत में बदलने से पहले ही योजना पर लापरवाही और अनदेखी के कीड़े लग गए हैं. पढ़िए हमारी ये खास ग्राउंड रिपोर्ट.

चाय के बागान बने चारागाह, जशपुर के ड्रीम प्रोजेक्ट का ऐसे हुआ बेड़ा गर्क, किसकी अनदेखी ?
चाय के बागान बने चारागाह, जशपुर के ड्रीम प्रोजेक्ट का ऐसे हुआ बेड़ा गर्क,किसकी अनदेखी ?

Tea Cultivation Dream Project : छत्तीसगढ़ के जशपुर में चाय बगान. बागान में लहलहाते चाय के पौधे और पत्तियों की खूशबू से दमकता जशपुर.अब ये सब ख्वाब ही बनकर रह गए हैं. पूर्व की सरकार ने ये सपना दिखाया था, लेकिन सपना साकार होने से पहले ही चाय के बागान उजड़ गया.चाय बगान मवेशियों के लिए चारागाह बन गया.असम की तर्ज पर चाय की खेती करने का सपना अधुरा ही रह गया.

असम मॉडल का 2019 में दिखाया था सपना

चाय के बागान.

चाय के बागान.

विशाल गोरे, चरवाहा ने कहा, देखभाल नहीं किए इसलिए उजड़ गया.ये सब वन विभाग की लापरवाही से हुआ, मेहनत करेंगे तो हो जाएगा.छत्तीसगढ़ में साल 2019 में असम की तरह जशपुर में चाय बागान का सपना दिखाया गया. मनोरा ब्लॉक के कांटाबेल में 40 एकड़ जमीन पर चाय का बगान लगाया गया. सरकार ने इसका खूब प्रचार किया था.

इनकी लापरवाही से उजड़ गए बागान

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कुशराम भगत, हितग्राही किसान कहते हैं कि एक साल तक देखरेख बढ़िया हुआ, उसके बाद समूह वालों को दे दिए, समूह वाले कुछ दिन चलाए, लेकिन पेमेंट नहीं हुआ तो वो लोग बंद कर दिए. एक चौकीदार रखे, वो भी छोड़ दिया. फिर हितग्राही को हैंडओवर करने कहा, लेकिन पौधे मर गए थे, इसलिए हितग्राही नहीं लिए, वन विभाग और प्रशासन की लापरवाही से उजड़ गया, पानी के लिए व्यवस्था नहीं है, विभाग की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला, पौधा लगाकर छोड़ दिए, करोड़ों रुपये जेब में चला गया. पेड़ जो लगाए थे काटना शुरू कर दिया.

'10 साल से ड्रिप सिस्टम का उपयोग हो रहा है'

सरकार तो फेल हो गए. लेकिन जशपुर के मौसम को ध्यान में रखते हुए बाबा भगवान राम ट्रस्ट ने बाबा ऑघेश्वर सोगड़ा आश्रम में चाय की खेती शुरू की गई. सुनियोजित देखभाल और तकनीक का उपयोग कर सफलता भी मिली. बाबा ऑघेश्वर सोगड़ा आश्रम में आज भी चाय बगान में चाय के पौधे लहलहा रहे हैं. क्योंकि यहां बगान की देखभाल और तकनीक का बेहतर प्रबंधन है. पानी की कमी को दूर करने के लिए 10 साल से ड्रिप सिस्टम का उपयोग हो रहा है.

आश्रम की सफलता को नजीर बनाकर जशपुर प्रशासन ने भी चाय के बागान लगाए, लेकिन बागान उजड़ गया. अब जिम्मेदार इसको फिर से संवारने का वादा कर रहे हैं.

छत्तीसगढ़  के कैबिनेट मंत्री रामविचार नेताम इस मामले पर कहते हैं कि- "इसे देखता हूं कि कितने एकड़ में खेती की जा रही है, पता लगे कहां लापरवाही हुई है, प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी चाहे वह चाय का बागान हो या फिर कॉफ़ी की खेती वह सफल हो इसके लिए प्रयास किए जाएंगे".

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अनदेखी ने सूखा डाल दिया

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छत्तीसगढ़ सरकार ने योजना बनाई थी कि असम की तर्ज पर जशपुर की धरती पर भी चाय बागान इसी तरह लहलहाएंगे और ख्वाब दिखाया गया था कि किसानों की करोड़ों की आमदनी होगी, ख्वाब यह भी दिखाया गया था कि जशपुर की चाय की चुस्कियां देश की जनता लेगी, लेकिन सरकार की इस योजना पर लापरवाही और अनदेखी ने सूखा डाल दिया है. अब देखना होगा बीजेपी सरकार इस मामले पर क्या कुछ नया करती है.

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