Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh News) के धमतरी जिले में स्थित मां बिलाई माता मंदिर जिसे मां विंध्यवासिनी (Maa Vindhyavasini) के नाम से जाना जाता है, जोकि मां विंध्यवासिनी नगर की आराध्य देवी कही जाती हैं. मां की मूर्ति जमीन से निकली है. कहा जाता है कि जहां माता का मंदिर है, वहां कभी घना जंगल हुआ करता था.माता की मूर्ति स्वयं से प्रकट हुई है.जब मूर्ति प्रकट हुई तो चेहरा द्वार के बिल्कुल सामने नहीं आया. माता की मूर्ति तिरछी रह गई.
अचानक घोड़ा, हाथी विंध्यवासिनी मंदिर क्षेत्र के पास रुका
विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Tempel) के पुजारी अश्वनी दुबे के अनुसार एक समय राजा नरहर देव अपनी राजधानी कांकेर से सैनिक (Army) के साथ इस स्थान पर शिकार के लिए पहुंचे थे.अचानक राजा का घोड़ा,हाथी विंध्यवासिनी मंदिर क्षेत्र के पास रुक गया. काफी प्रयास के बाद भी घोड़ा आगे नहीं बढ़ पाया. खोजबीन करने पर राजा को एक छोटे पत्थर के दोनों तरफ काली बिल्लियां (Cats)बैठी हुई दिखाई दी.जो काफी डरावनी थी.
वहीं, राजा के आदेश पर पत्थर को निकालने का प्रयास किया गया.लेकिन पत्थर आने की वजह उस स्थान से जल की धारा फूट पड़ी. वहीं, राजा को स्वप्न में देवी ने दर्शन देकर उसे उस स्थान से ना ले जाने और उसी स्थान पर पूजा अर्चनाकर उस स्थान पर अपनी स्थापना करवाई.
थोड़ा तिरछा रह गई थी मां की प्रतिमा
पहले निर्मित द्वार से सीधे मां विंध्यवासिनी (Maa Vindhyavasini)के दर्शन होते थे.उस समय मूर्ति पूर्ण रूप से बाहर नहीं आई थी. जब मूर्ति बाहर आई तो माता का चेहरा द्वार के बिल्कुल सामने नहीं आया. वह थोड़ा तिरछा रह गई. वहीं, तब से यहां मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी सात पीढ़ियों से लगातार पूजा की परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं, और नवरात्र में माता के दर्शन करने काफी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं, और ज्योत भी जलवाते हैं.
35 साल बाद मां विंध्यवासिनी एक नए स्वरूप में
बता दें कि 35 साल बाद मां विंध्यवासिनी (Maa Vindhyavasini) एक नए स्वरूप में भक्तों को दर्शन दे रही हैं. मंदिर के पुजारी अश्वनी दुबे ने बताया कि मां विंध्यवासिनी के चेहरे से करीब 25 किलो का चोला व सिंदूर और घी का लेप और श्रृंगार अचानक से रविवार को 9:00 बजे हट गया. वहीं, तुरंत मंदिर में मौजूद पंडितों ने मंदिर ट्रस्ट समिति को इसकी जानकारी दी. मंदिर के गर्भ गृह का पट तुरंत बंद किया गया. मंदिर का पट बंद करने के बाद मां के चोले को अच्छे से ठीक कर उसे 8 घंटे के बाद नए स्वरूप में लाया गया.
भक्तों की भीड़ मंदिरों में जुट रही है
वहीं, माता का 25 किलो का चोला विधि-विधान से पूजाकर गंगा नदी में चोला को विसर्जित किया जाएगा. मंदिर के पुजारी ने बताया कि सप्ताह में दो से तीन दिन सिंदूर और घी से माता का लेप और श्रृंगार किया जाता है.कहा जाता है कि माता की मूर्ति जमीन से निकली है. जब मूर्ति बाहर आई तो चेहरा द्वार के बिल्कुल सामने नहीं आया, जिले के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ मंदिरों में लगी रहती है.
धमतरी के लोग माता का आशीर्वाद लेकर हर कार्य की शुरुआत करते हैं. ताकि माता रानी की कृपा उन पर हमेशा बनी रहे. वहीं, 35 साल बाद अचानक नए स्वरूप में माता के दर्शन की बात लोगों तक पहुंच रही है, तो भक्तों की भीड़ मंदिर में जुटने लगी है.
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