Chhattisgarh Forest Department : छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत के मामले को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, अब इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर सुनवाई की शुरुआत कर दी है. लगातार वन क्षेत्र के कोर जोन में हाथियों का शिकार हो रहा है. ताजा मामला बिलासपुर के तखतपुर विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिला, जहां करंट की चपेट में आने से एक युवा हाथी की मौत हो गई.
कोर्ट ने व्यक्तिगत शपथ पत्र में जवाब मांगा
मौतों को रोकने में विभाग असफल रहा है. इस दौरान तीन इंसानों की भी मौत हुई, जिसका रिकॉर्ड किसी कारण से सरकारी दस्तावेजों में नहीं है, लिहाजा अब इस पूरे मामले को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने संबंधित विभाग के आला अधिकारियों को फटकार लगाते हुए व्यक्तिगत शपथ पत्र में जवाब मांगा है.
'मामले में विभाग जांच करवा रहा'
बिलासपुर उच्च न्यायालय में इस पूरे मामले की सुनवाई हो रही है. बिलासपुर में स्थित मुख्य वन विभाग के आला अधिकारी प्रभात मिश्रा से मिली जानकारी के अनुसार, हाथियों की मौत से इनकार नहीं किया जा सकता. बीते सालों में हाथियों की मौत तो हुई है, लेकिन यह आंकड़ा उतना नहीं है, जितना की बताया जा रहा है. रही बात मामलों की जांच और कार्रवाई की, तो वह विभाग लगातार करता रहता है. इस बार बिलासपुर के तखतपुर वन क्षेत्र में हुए हाथी के मौत के मामले में विभाग जांच करवा रहा है. अब मामला न्यायालय में है, लिहाजा इस पर और भी गंभीरता बरती जा जा रही है.
जानें क्या बोले अधिकारी
प्रदेश के कई जिले में हाथियों की मौत करंट के चपेट में आ जाने की वजह से होती है. यह कहना है वन विभाग के आला अधिकारियों का. हाल ही में हुई मौत के लिए उन्होंने विद्युत वितरण कंपनी को जिम्मेदार माना है. इस घटना दोहराव न हो इसके लिए वन विभाग विद्युत वितरण कंपनी के साथ मिलकर हैवी इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई केबल को दुरुस्त करने में लगा है. इसकी जानकारी वन विभाग के द्वारा कोर्ट के समक्ष भी रखी गई. लेकिन वन्य जीवों के शिकार और करंट के चपेट में आ जाने की वजह से हो रही मौत के बीच का अंतर काफी ज्यादा है. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
'इस बार हाथियों की मौत झुंड में हुई'
छत्तीसगढ़ का एक चौथाई हिस्सा वनों से ढका हुआ है. यहां हाथियों के अलावा तमाम तरह के वन्य जीव रहते हैं. लेकिन बीते कुछ सालों से यह देखा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में जैसे ही हाथियों का प्रवेश होता है बेदर्दी से उनका शिकार होने लगता है. इस बार हाथियों की मौत झुंड में हुई है. जाहिर सी बात है कि जब हाथियों के झुंड निकलने लगते हैं, तो यह अपने आप में काफी गंभीर बात हो जाती है.
इन्होंने प्रदेश को हाथियों के लिए नर्क घोषित कर दिया
ऐसा पहले भी हो चुका है और यही वजह है की बड़ी संख्या में हाथियों की मौत के मामले को अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी नजरअंदाज नहीं किया है. बीते कुछ सालों के और हाल में हुए हाथियों के शिकार पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि अब हाथियों को लेकर सरकार और विभाग जितनी लापरवाह है. उतने ही शिकारी के हौसले बुलंद हैं, यही वजह है कि वन्य जीव संरक्षण के लिए काम करने वाले लोगों ने विशेष रूप से छत्तीसगढ़ को हाथियों के लिए नर्क घोषित कर दिया.
अनदेखी पर बेहद गंभीर और कड़ी टिप्पणी
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने पूरे मामले में बेहद संवेदनशीलता दिखाई है. दरअसल, सोमवार को इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और अमितेंद्र किशोर प्रसाद के डबल बेंच में सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने वन्यजीवों की मौत (विशेष रूप से हाथी और बाघ) और पर्यावरण की अनदेखी पर बेहद गंभीर और कड़ी टिप्पणी करते हुए यह साफ कर दिया कि, मामले में कोर्ट में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी. हाई कोर्ट ने सोमवार को बाघ की हो रही मौत के मामले में भी सुनवाई की और यह स्पष्ट किया कि 8 नवंबर 2024 को सरगुजा के कोरिया वन मंडल में खानखोपड़ा नल के पास एक बाग का शव मिला जिसमें वन विभाग के अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि, यह मौत जहर खुरानी की वजह से हुई है, जिसकी जांच की जानी है.
कोर्ट के इस तरह की टिप्पणी के बाद प्रधान मुख्य वन संरक्षक को 10 दिन के भीतर व्यक्तिगत शपथ पत्र पर जवाब मांगा है. यह भी पूछा गया है कि आखिरकार वन्य जीवों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. शपथ पत्र में दिए गए जवाब और वास्तविक तत्वों में अगर ज्यादा अंतर रहा, तो कोर्ट इस मामले में एक्शन ले सकता है. इस मामले में हाई कोर्ट ने संबंधित विभाग के अन्य अधिकारियों को फटकार लगाते हुए जवाब मांगा है.
ये भी पढ़ें- अमेरिकी चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश के सीएम यादव ने किया बड़ा दावा, बोले-भारत पर निर्भर थे ट्रंप और हैरिस
21 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
अब इस पूरे मामले में 21 नवंबर 2024 को अगले सुनवाई है. इससे पहले वन विभाग के आला अधिकारियों को 10 दिन के भीतर व्यक्तिगत शपथ पत्र में इसका जवाब देना होगा. इस दौरान वन्यजीवों की हो रही मौत और उसके संरक्षण के लिए किया जा रहे काम का गंभीरता से विश्लेषण किया जाएगा. जाहिर सी बात है कि मौत के आंकड़े बताते हैं कि संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्य नाकाफी है, और वन्य जीवों को यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया गया है.अगर यह कोर्ट में सिद्ध होता है तो संबंधित अधिकारियों को इसका जवाब देना होगा.
ये भी पढ़ें- MP में महिला गेस्ट टीचर चुकाती हैं बड़ी कीमत! मां बनने पर नहीं मिलता है मातृत्व अवकाश, जाती है नौकरी