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This Article is From Oct 16, 2023

Chhattisgarh Election 2023: बांध पर नेताओं के सुस्त पड़े सुर, कांदला में ग्रामीणों ने सियासतदानों पर तरेरी आंखें

Chhattisgarh Election 2023: लोगों ने बताया कि वर्ष 2022 में जब बाढ़ आई थी, तो विधायक-कलेक्टर उनकी सुध लेने पहुंचे थे. इस दौरान गांव वालों ने मांग की थी कि उन्हें विस्थापित कर अन्य कहीं बसाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जान बचाने के लिए हाईवे किनारे जंगल में जाकर बसे तो वन कर्मियों ने उन्हें खदेड़ दिया. गुहार लगाने के बाद भी प्रशासन मदद को आगे नहीं आया.

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Chhattisgarh Election 2023: बांध पर नेताओं के सुस्त पड़े सुर, कांदला में ग्रामीणों ने सियासतदानों पर तरेरी आंखें

Chhattisgarh Assembly Election 2023: लगभग छह लाख एकड़ इलाके की सिंचाई के उद्देश्य से गोदावरी नदी पर तेलंगाना सरकार ने बांध का निर्माण कराया है. यह बांध छत्तीसगढ़ के उस छोर पर बना है, जहां से बीजापुर जिले की सीमा लगती है. इसी सरहद से लगा है बीजापुर जिले के अटकूपल्ली ग्राम पंचायत का एक गांव कांदला.  

तेलंगाना के खेतों को सींचने के लिए गोदावरी नहीं पर बांध बनाया गया है, लेकिन यह बांध छत्तीसगढ़ के सरहदी कांदला समेत इससे सटे आधा दर्जन गांवों के लिए वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप बन चुका है. दरअसल, बांध बनने के बाद से कांदला गांव की तबाही की कहानी शुरू हुई. 7 नवंबर को पहले चरण में होने जा रहे मतदान के मद्देनजर बीजापुर विधानसभा में न सिर्फ भाजपा, बल्कि कांग्रेस की नजर भी कांदला गांव के मतदाताओं पर है. इसकी वजह है, दोनों ही दलों से गांव वालों की नाराजगी.

विपक्षा में रहते हुए कांग्रेस ने किया था बांध का विरोध

दरअसल, 2018 विधानसभा चुनाव चुनाव से पहले तारलागुड़ा के नजदीक गोदावरी पर तेलंगाना सरकार की ओर से बांध का काम जोर-शोर से चालू था. तब सूबे में भाजपा का राज था और विधायक भी भाजपा से थे. तब विपक्ष में रहते वर्तमान विधायक विक्रम शाह मंडावी ने बांध के विरोध का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.

भाजपा और कांग्रेस दोनों हैं निशाने पर

साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में तख्तापलट होने के बाद विक्रम विधायक बने, लेकिन विधायक बनने के बाद बांध का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया. इधर, सत्ता से बेदखल होकर विपक्ष में आई भाजपा ने भी कांदला गांवों के हालातों और बांध के निर्माण को रोकने के लिए कोई आवाज नहीं उठाई. नतीजतन कांदला में पंद्रह साल सत्तासीन रही भाजपा और पांच साल से सत्ता में बैठे कांग्रेस नेताओं के प्रति भी विरोध के स्वर मुखर है.

गांव वालों ने ये सुनाया दुखरा

चुनावी माहौल में कांदला का हाल जानने के लिए NDTV संवाददाता जब कांदला गांव पहुंचे, तो ग्रामीणों ने सिंचाई के अभाव में सूखती फसल, पीने योग्य पानी की किल्लत, बिजली की आंख मिचौली, मृत मवेशियों की गिनती गिनाने लगे. तलांडी सुधन राव, श्रीनिवास सडमेक, मुड़ियम गनपत, तलांडी हीरैया, मट्टी राममूर्ति , तलांडी चंद्रैया, सडमेक नागेश, तलांडी जगदीश, तलांडी संतोष आदि ग्रामीणों ने बताया कि बांध के चलते न सिर्फ कांदला, बल्कि अन्य गांव भी डुबान में क्षेत्र में आ गए हैं. लगातार दो सालों से वे बाढ़ का दंश झेल रहे हैं. बाढ़ के चलते जानमाल की रक्षा के लिए ग्रामीण पहाड़ियों पर जाकर रहने को मजबूर हैं.

गांव से हुए विस्थापित

इन लोगों ने बताया कि वर्ष 2022 में जब बाढ़ आई थी, तो विधायक-कलेक्टर उनकी सुध लेने पहुंचे थे. इस दौरान गांव वालों ने मांग की थी कि उन्हें विस्थापित कर अन्य कहीं बसाया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जान बचाने के लिए हाईवे किनारे जंगल में जाकर बसे तो वन कर्मियों ने वहां से खदेड़ दिया. गुहार लगाने के बाद भी प्रशासन मदद को आगे नहीं आया.

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पीने के लिए नहीं है साफ पानी

बाढ़ के चलते खरीफ के मौसम में सैकड़ों एकड़ की फसलों पर तबाही का खतरा मंडराता है, वहीं, जब बारिश टल जाती है, तो सिंचाई संसाधनों के अभाव में सूखे का खतरा मंडराने लगता है. इन लोगों ने बताया कि बाढ़ के दौरान उनके दर्जनों मवेशी मारे गए. आलम यह है कि नदी किनारे बसा कांदला गांव में पीने के साफ पानी की भी पर्याप्त आपूर्ति की भी व्यवस्था नहीं है. गांव में जल जीवन मिशन के तहत पानी पहुंचाने में कार्रवाई की रफतार भी धीमी है. यहां गिनती के हैंडपंप हैं. इनमें से भी अधिकतर हैंडपंप में पीने योग्य पानी नहीं आता है. तारलागुड़ा नेशनल हाईवे से करीब पांच किमी भीतर कांदला गांव को जोड़ने वाली पक्की सड़क पर चलना भी दूभर है, उस पर गडढे और नाले की परेशानी अलग से है.

नाराजगी के बाद भी करेंगे वोट

हालात से त्रस्त कांदला के ग्रामीणों के मुताबिक चुनाव उनके लिए बेहद मायने रखते हैं, लेकिन उनके गांव अभी तक प्रचार के लिए कोई राजनीतिक दल नहीं पहुंचा है. अपने इन हालात के लिए वे सत्तापक्ष के नेताओं को सीधे जिम्मेदार मानते हैं. ग्रामीणों की मानें तो, जो भी पहुंचेगा, पहले वे उनसे पुराने किए वादों का हिसाब जरूर मांगेंगे, लेकिन नाराजगी के बाद भी वोट करने अवश्य जाएंगे.

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