Chit Fund Scam Raipur: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में चिटफंड कंपनियों (Chit Fund Companies) के 'चीट' यानी धोखे से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं. इस घोटाले से राजधानी रायपुर (Raipur) से सटे गांवों के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. NDTV की टीम ने नवा रायपुर के कई गांवों में जाकर इस मामले की जांच की तो पता लगा कि 29 गांव के किसानों ने राजधानी के विकास के लिए अपनी जमीन, अधिग्रहण में सरकार को दी. सरकार से मुआवजा मिला, लेकिन इस पैसे पर चिट फंड कंपनी की नजर लग गई. कंपनी ने गांव के ही व्यक्ति को एजेंट बनाकर पैसे डबल करने का झांसा दिया. इस झांसे में आकर लोगों ने पैसे को चिट फंड कंपनी में निवेश कर दिया और यह पैसा डूब गया. जिसके चलते कई परिवार बर्बाद हो गए, लड़कियों की शादी टूट गई, गांव के किसान-युवा, मजदूर बन गए. पैसे डूबने के सदमे से अब तक करीब 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 3 एजेंट आत्महत्या कर चुके हैं.
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद नया रायपुर को बसाने के लिए दर्जनों गांवों की जमीन को अधिग्रहित किया गया. किसानों को इस जमीन का करोड़ों रुपये का मुआवजा मिला और उसी समय छत्तीसगढ़ में कई सारी चिटफंड कंपनियां आईं, जिनमें लोगों ने पैसे दोगुने करने के लालच में अपने पैसों को इन्वेस्ट किया और ये पैसा डूब गया. इसको लेकर राज्य में समय-समय पर सियासत भी हुई. जिन गांव के लोगों का चिटफंड में पैसा डूबा उनका जीवन दूभर हो गया और उनकी माली हालत खराब है. नवा रायपुर के 5000 आबादी वाले परसदा गांव में हर परिवार के साथ धोखाधड़ी की बात सामने आई है.
मजदूरी करके पाल रहे पेट
क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को परसदा गांव का पता मालूम है, क्योंकि यहां छत्तीसगढ़ का इकलौता अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम है, लेकिन इस गांव में सूखे, मुरझाये, दुखी चेहरों की एक और हकीकत है. गांव के लगभग हर परिवार को चिट फंड कंपनियों ने चीट किया है. NDTV की टीम जब रायपुर के परसदा गांव पहुंची तो गांव में बरगद के पेड़ के नीचे प्रभु राम कन्नौजे और दुलेश्वर निषाद बैठे मिले. NDTV ने जैसे ही चिट फंड की बात छेड़ी तो दोनों का दुख और गुस्सा फूट पड़ा. दुलेश्वर कहते हैं, "दो एकड़ जमीन बेचकर चिट फंड में लगाया पैसा डूब गया आज मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं."
चिटफंड के झांसे में फंसे देव चंद यादव कहते हैं कि गांव के नब्बे फीसद लोगों का पैसा डूब गया. चिटफंड कंपनी में पैसा डूबा चुके गोपाल यादव के परिवार में झगड़ा होने लगा और परिवार बिखर गया. आज परिवार मजदूरी करने को मजबूर है. NDTV ने गांव में जैसे-जैसे लोगों से बात की, ग्रामीणों की अलग-अलग दर्दनाक कहानियां सामने आने लगीं. बुजुर्ग सुमित्रा चंद्राकर चिटफंड में पैसा डूबने की कहानी बताते हुए भावुक हो गईं. उन्होंने बताया कि डबल-ट्रिपल का लालच देकर चिटफंड में पैसा लगवाया, पूरा पैसा फंस गया. अब घर की स्थिति बहुत खराब है.
जिस खेत के मालिक थे वहीं बने मजदूर
इसी गांव के रहने वाले योगेश्वर धीवर, उमाशंकर और लीलाराम के परिजनों ने 20 से 40 लाख रुपये चिटफंड में लगा दिए, अब उनके पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं बचा है. योगेश्वर धीवर बताते हैं, "चिटफंड के कारण हमारे घर में विवाद बढ़ गया, परिवार में ऐसी परिस्थिति निर्मित हो गई कि कई बार आत्महत्या करने का मन हुआ, लेकिन बच्चों को देखकर जीना पड़ा." वहीं उमाशंकर निषाद बताते हैं, "हमारे परिवार वाले जमीन नहीं देना चाहते थे, फिर भी जमीन ले ली गई. जो पैसे मिले उसे चिटफंड कंपनी में लगा दिए. अब हालत ये है कि जिस खेत के हम मालिक थे, वहीं अब हो रहे निर्माण कार्यों में मजदूरी कर अपना पेट पाल रहे हैं."
लीलाराम निषाद कहते हैं, "मेरे घर का 40 लाख रुपये चिटफंड में लगा है, सब डबल के चक्कर में चिटफंड में निवेश किए. अब ऐसी स्थिति हो गई है कि मेरे घर में मेरे पिताजी इस उम्र में भी खेत में किसानी करने को मजबूर हैं. मेरा घर बची कुची खेतीबाड़ी से चल रहा है, गांव की स्थिति बहुत बिगड़ी हुई है." छत्तीसगढ़ अभिकर्ता संघ के अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण चंद्राकर कहते हैं, "चिटफंड में पैसा लगाने लगाने वाले 200 से अधिक लोग आत्महत्या कर चुके हैं. मेरा व्यक्तिगत 10 लाख रुपये डूब गया. पांच लाख से ज्यादा लोगों का करोड़ों रुपया चिटफंड में फंस गया है. नया रायपुर के 27 गांव में हजारों लोगों का 20 करोड़ से ज्यादा रुपये चिटफंड में फंसे हैं.
कांग्रेस सरकार ने किया था पैसा वापसी का वादा
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चिट फंड घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था. कांग्रेस ने सरकार बनने पर लोगों के पैसे वापस करने का वादा किया, लेकिन भूपेश सरकार के समय 33.4 करोड़ रुपए ही लोगों को वापस मिले. जबकि प्रदेश में लगभग 20 लाख से ज्यादा लोगों के 100 से ज्यादा चिटफंड कंपनियों में करीब 200 करोड़ रुपए डूबे हैं. पैसे वापसी की मांग को लेकर कोशिश अब भी जारी है.
नई कंपनियों ने किसानों से लूटे पैसे
किसान नेता रूपन चंद्राकर कहते हैं, "2002 में जब नया रायपुर प्रोजेक्ट आया, तब सरकार ने एक अफवाह फैलाई कि जमीन को आपसी समझौता में बेच दो. किसान डर के चलते जमीन बेच दिए, लेकिन उसी समय नई-नई कंपनी खुली, कंपनी का फीता राज्य के मंत्री और उनकी पत्नियों ने काटा. किसानों को लगा कि हमारा पैसा सुरक्षित रहेगा, समय-समय में पैसा मिल जाएगा, लेकिन पैसा नहीं मिलने से स्थिति बद से बदतर हो गई. अभी तो जैसे तैसे काम चल रहा है, लेकिन 2031 के बाद स्थिति और खराब हो जाएगी. बच्चों की शादी कैसे होगी, घर कैसे जलेगा, सब समस्या है.
मामले में राजनीति जारी
वहीं इस पूरे मामले में राजनीति अब भी थमने का नाम नहीं ले रही है. राजनीतिक दल अब भी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. चिटफंड मामले को लेकर बीजेपी प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास ने कहा कि पूर्व की भूपेश सरकार ने जनता से वादा किया था, उनके पैसे उनको मिलेंगे, लेकिन कुछ ही लोगों को लाभ मिला. कुछ लोगों की समस्या जस की तस बनी हुई है. भारतीय जनता पार्टी की विष्णुदेव सरकार सुशासन की सरकार है, निश्चित तौर पर ये बहुत पुरानी मांग है, इसपर विचार किया जाएगा और कमेटी बनाकर इस पर निर्णय लेंगे.
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