Chhattisgarh Assembly Election 2023: केंद्र में सत्तासीन भाजपा (BJP) के नेता भले ही अकसर देश को कांग्रेस मुक्त करने की बात करते हैं. लेकिन, कांग्रेस (Congress) से जुड़ी कुछ जमीनी हकीकत ऐसी है, जिसे जानकर आप दंग रह जाएंगे. दरअसल, देश में कांग्रेस के कुछ ऐसे मजबूत गढ़ है, जहां 1952 के बाद से अब तक भाजपा कभी भी जीत नहीं पाई है. यहां पर 1952 से लगातार या तो कांग्रेस का कब्जा रहा है या फिर कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाने वाले नेताओं ने जीत दर्ज की है.
दरअसल, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के समय से छ्त्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कई क्षेत्र कांग्रेस के अभेद्द गढ़ बने हुए हैं. राज्य बनने के बाद हां 15 साल तक भाजपा (BJP) की सरकार रही, लेकिन भाजपा और कांग्रेस (BJP and Congress) के वोट प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं बन पाया. वहीं, छ्त्तीसगढ़ की सीतापुर (Sitapur), कोटा(Kota), खरसिया (Kharsia), मरवाही (Marwahi) और पाली तानाखार (Pali Tankhar) पांच ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां से आज तक भाजपा जीत नहीं पाई है. इस बार भाजपा इन सीटों को जीतने की रणनीति पर काम कर रही है.
भाजपा ने इस बार जीत का किया दावा
छ्त्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. इस बार भाजपा सत्ता के मैजिकल आंकड़े 46 पार करने के लिए कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है. इसके साथ ही भाजपा इस बार नया इतिहास रचने की कोशिश में भी जुट गई है. यही वजह है कि भाजपा छत्तीसगढ़ की उन 5 सीटों पर भी फोकस कर रही है, जिसे पहलेकभी नहीं जीत पाई.
ये हैं कांग्रेस के वे अभेद्य सीट, जिसे भाजपा कभी नहीं भेद पाई
सीतापुर- इस विधानसभा सीट पर 1952 से अब तक कांग्रेस का कब्जा रहा है. राज्य बनने के बाद अमरजीत भगत 4 बार से विधायक है. इस बार सेना से सेवानिवृत्त रामकुमार टोप्पो को भाजपा ने प्रत्याशी बनाकर इस अभेद्य सीट को जीतने की रणनीति तैयार की है.
पाली तनाखार - छ्त्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक हुए चार चुनावों में इस सीट पर हमेशा ही भाजपा दूसरे स्थान पर रही है. वर्तमान में कांग्रेस के मोहित राम केरकेट्टा यहां से विधायक हैं.
कोटा- इस विधानसभा सीट पर 1952 से अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं, लेकिन भाजपा अब तक यहां खाता भी नहीं खोल नहीं पाई. पहले इस सीट पर रेणु जोगी कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुनी गई. 2018 में वह जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (JCCJ) की टिकट पर विधायक बनीं. भाजपा ने इस बार इस सीट से हिंदूवादी नेता प्रबल प्रताप सिंह को उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है.
खरसिया- इस सीट से वर्तमान में उमेश पटेल कांग्रेस के विधायक है. इस सीट पर अब तक हुए सभी चुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है. इस सीट से 1988 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह विधायक रह चुके है. वहीं, 2018 में आईएएस की नोकरी छोड़कर ओपी चौधरी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उमेश पटेल से हार गए. इस बार भाजपा ने इस सीट से महेश साहू को मैदान में उतारा है.
मरवाही- कांग्रेस का गढ़ रहा है. राज्य बनने के बाद से कांग्रेस से पहले अजीत जोगी फिर उनके पुत्र अमित जोगी विधायक रहे. 2018 में अजीत जोगी अपनी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगी (JCCJ) से विधायक बने, लेकिन भाजपा अब भी यहां जीत के लिए तरस रही है. कांग्रेस ने इस बार वर्तमान विधायक केके ध्रुव को मैदान में उतारा है. वहीं, भाजपा से प्रणव मर पच्ची मैदान में हैं. पूर्व सीएम अजीत जोगी यहां से 2018 में जीते थे, लेकिन उनके निधन के बाद कांग्रेस से केके ध्रुव उप चुनाव में जीत हासिल की.
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कांग्रेस ने फिर किया जीत का दावा
भाजपा इन 5 सीटों पर भले ही जीत दर्ज नहीं कर पाई हो, लेकिन वह 15 सालों तक प्रदेश की सत्ता में रह चुकी है. हालांकि, इस बार सत्ता में काबिज होने के लिए भाजपा एक-एक सीट के समीकरण पर काम कर रही है. अब देखना ये होगा कि भाजपा कांग्रेस के इन अभेद्य किलों में सेंध लगाने में सफल हो पाती है या फिर कांग्रेस का इतिहास बरकरार रहता है. इसका फैसला 3 दिसंबर की मतगणना के बाद ही हो पाएगा.
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