
Chhattisgarh Panchayat Election 2025: छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (CG Panchayat Chunav) के तीसरे और अंतिम चरण का मतदान शनिवार को सुकमा (Sukma) जिले के कोंटा विकासखंड (Konta Development Block) में शांतिपूर्ण तरीके संपन्न हुआ. इस दौरान आजादी के 77 साल बाद ब्लॉक के 5 पंचायतों में पहली बार मतदान हुआ. इस दौरान ग्रामीणों ने भयमुक्त होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया.
इस पंचायत चुनाव में सबसे बेहद खूबसूरत तस्वीर माओवादियों के गढ़ कहे जाने वाले पूवर्ती गांव से आई, जहां ग्रामीणों ने पहली बार नक्सल दहशत को धता बताते हुए लोकतंत्र के महापर्व में न सिर्फ हिस्सा लिया, बल्कि अपने गांव में पानी, सड़क और शिक्षा की मांग भी की. पूवर्ती के आंगनबाड़ी केंद्र में बनाए गए पोलिंग बूथ क्रमांक 13 में सुबह मतदान शुरू होने से पहले ही ग्रामीणों की भीड़ केंद्र में जमा होने लगी. वार्ड क्रमांक 9 से 17 तक के लिए वोट पूवर्ती में डाले गए.
लोगों ने बढ़ चढ़ लिया मतदान में हिस्सा
पूवर्ती गांव इसलिए भी खास है, क्योंकि यह इलाका नक्सलियों की पीएलजीए का गढ़ था. जहां नक्सली नेता माड़वी हिड़मा की जनताना सरकार चलती थी. बीते 40 सालों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे कोंटा ब्लॉक के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सली फरमान के कारण चुनाव का बहिष्कार किया जाता रहा है. यही कारण है कि ग्रामीण चुनाव से नहीं बल्कि इसकी चर्चा करने से भी कतराते थे. बीते फरवरी के बाद यहां खुले सुरक्षा कैंप ने इलाके की तस्वीर ही बदल कर रख दी है. कुख्यात नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती में उसके घर के बगल में ही मतदान केंद्र बनाया गया. पहले ऐसा समय था कि ग्रामीण हिड़मा के नाम से खौफ़ में आ जाते थे और वोट डालने के लिए अपने घरों से नहीं निकलते थे. आज उसी गांव के मतदाता पंचायत चुनाव के लिए बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया.
नक्सलवाद से मिला छुटकारा, अब विकास चाहिए...
पुलिस और प्रशासन के अथक प्रयासों के बाद पूवर्ती को नक्सलवाद से मुक्त करा लिया गया है. गांव में सोलर लाइन और नल जन योजना के तहत काम काफी तेजी से चल रहा है. मतदान करने आए युवा जोगा मड़कामी, डोड्डी लालु, संतोष बोडके और बड़दरस बोड़के ने बताया कि पुलिस और प्रशासन की मदद से गांव नक्सलवाद से मुक्त हो गया है, लेकिन सालों से लोग यहां बुनियादी ढांचे का इंतजार कर रहे हैं. उसने बताया कि गांव में मतदान केंद्र खुलने से हम लोग बहुत खुश हैं. हम लोग अपने गांव में ही भयमुक्त माहौल में मतदान कर रहे हैं.
गोद में बच्चे लेकर पहुंची महिलाएं
अपने मताधिकार को लेकर ग्रामीण काफी जागरूक हो चुके हैं. लिहाजा, अपने मत का प्रयोग करने के लिए बच्चे को गोद में लेकर पूवर्ती के मतदान केन्द्रों पर महिलाएं पहुंची. ऐसे ही अपने बच्चे को गोद में लेकर वोट डालने पहुंची मड़कम नंदे ने कहा कि गांव में पहली बार मतदान हो रहा है. उन्होंने बताया कि गांव के विकास के लिए वोट करना आवश्यक है. पंचायत चुनाव को लेकर हम सब बहुत ख़ुश हैं. इस प्रकार पूवर्ती गांव के ग्रामीण मतदाताओं ने पूरे उमंग और उत्साह के साथ स्थानीय निर्वाचन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई और अपने जागरूक मतदाता होने का प्रमाण दिया.
100 से अधिक गांवों में पहली बार हुई वोटिंग
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के तीसरे चरण में पहली बार सुकमा और बीजापुर जिले के कई अति संवेदनशील गांवों में वोटिंग हुई. पूवर्ती जैसे गांव कुछ वक्त पहले तक नक्सलियों की राजधानी कहा जाता था लेकिन इन इलाकों में कैंप खुलने के बाद यहां की तस्वीर बदली है. पहली बार यहां अपने गांव में ही ग्रामीण वोट डाल पा रहे हैं. बस्तर दौरे पर पहुंचे गृहमंत्री विजय शर्मा ने बताया कि 100 से अधिक ऐसे गांव हैं, जहां पहली बार वोटिंग हो रही है. विजय शर्मा ने कहा कि ग्रामीण अब से पहले पूवर्ती के पोलिंग बूथ को नक्सली दहशत के चलते सिल्गेर शिफ्ट करना पड़ता था, लेकिन अब ग्रामीण खुद अपनी सरकार चुनने के लिए सामने आ रहे हैं.
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दरअसल, माओवाद को समाप्त करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार लगातार प्रयासरत है. बस्तर में माओवाद अब खात्मे की ओर पहुंच चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के संकल्प के अनुरूप मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. सुकमा सहित सम्पूर्ण बस्तर में लोकतंत्र की जीत हो रही है और यह उन ग्रामीणों की जीत है, जिन्होंने भय को त्याग कर लोकतंत्र की स्थापना के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग किया. सुरक्षाबलों की मेहनत, सरकार की दूरदर्शिता और जनता की भागीदारी से यह सकारात्मक बदलाव संभव हुआ है. इसी लिए ग्रामीण भयमुक्त होकर मतदान करने अपने घरों से बाहर निकल पाए.
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