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This Article is From Dec 22, 2024

कृषि विभाग की एडवाइजरी, 'पराली जलाने की बजाय बढ़ाएं खेती की उत्पादकता'

Chhattisgarh News: कृषि विभाग के मुताबिक, पैरा का उपयोग न केवल मिट्टी की सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि इससे विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं, जैसे डिस्पोजल प्लेट्स, कप, छप्पर निर्माण सामग्री, पैकेजिंग सामग्री, कागज, बायो एथेनॉल और प्लाईवुड. बड़े उद्योगों में पैरा का ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.

कृषि विभाग की एडवाइजरी, 'पराली जलाने की बजाय बढ़ाएं खेती की उत्पादकता'

Agriculture Department Advisory: धान कटाई के बाद बचे पैरा को किसान काटना जरूरी नहीं समझते, फसल के ऐसे अनुपयोगी पैरा यानी पराली को कचरा मानते हुए नई फसल की तैयारी कि लिए खेत में जला देते हैं. इस तरह से फसल अवशेष को जलाने से कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जबकि फसल अवशेष के समुचित प्रबंधन से मृदा और पर्यावरणीय स्वास्थ्य संरक्षण संभव है. पैरा जलाए जाने से हो रही समस्या को देखते हुए कृषि विभाग ने किसानों के लिए एडवाइजरी जारी किया है.

पराली मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ाती है

कृषि विभाग के अनुसार, पराली जलाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में कमी आती है, साथ ही वायुमंडलीय प्रदूषण में भी वृद्धि होती है. इसके बजाय पराली का समुचित प्रबंधन न केवल मृदा की सेहत बनाए रखता है, बल्कि इससे खाद भी तैयार की जा सकती है. कृषि विभाग ने किसानों को पराली के उपयोग की कुछ प्रभावी विधियों के बारे में जानकारी दी है, जैसे मल्चर, हैप्पी सीडर, और सुपर सीडर का उपयोग कर पराली को मिट्टी में मिला सकते हैं. इसके अलावा पराली से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है, जो मृदा की उर्वरक क्षमता बढ़ाती है.

कृषि विभाग के अनुसार, किसानों को पराली के निस्तारण के लिए डी-कंपोजर का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है. इसके लिए 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़ और 2 किलो चने का बेसन मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है, जिसे 10 लीटर की मात्रा में 1 एकड़ धान की पराली पर छिड़काव करने से पैरा को खाद में परिवर्तित किया जा सकता है. इतना ही नहीं बेलर का उपयोग करके पैरा का बंडल तैयार कर चारा के रूप में संग्रहित किया जा सकता है.

पैरा जलाने से विषैली गैसों का होता है उत्सर्जन

इतना ही नहीं कृषि विभाग ने किसानों को पैरा जलाने के दुष्परिणाम बताएं हैं. इसमें कहा गया है कि पराली जलाने से वायु मण्डलीय प्रदुषण बढ़ता है, इसके जलने से कार्बन मोनो-ऑक्साईड, मिथेन, पॉलीसाइक्लीक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जैसी विषैली गैसों का उत्सर्जन होता है.

इस प्रदुषण के आसपास के क्षेत्रों में स्मॉग या धुएं के कोहरे की मोटी परत तैयार होती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है. इसकी वजह से त्वचा और आंखों में जलन से लेकर गंभीर हृदय और स्वास्थ्य संबंधी रोग देखने को मिलते हैं. पराली जलाने से मृदा पर भी विपरित प्रभाव पडता है. यह मृदा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है. पराली जलाने से मृदा का तापमान बढ़ता है, जिससे मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म जीव विस्थापित या नष्ट हो जाते हैं. 

पैरा से बना सकते हैं सामग्री 

कृषि विभाग के मुताबिक, पराली का उपयोग न केवल मिट्टी की सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि इससे विभिन्न उत्पाद भी तैयार किए जा सकते हैं, जैसे डिस्पोजल प्लेट्स, कप, छप्पर निर्माण सामग्री, पैकेजिंग सामग्री, कागज, बायो एथेनॉल और प्लाईवुड. बड़े उद्योगों में पैरा का ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है.

कृषि विभाग ने शुरू किया डी-कंपोजर वितरण 

कलेक्टर दीपक सोनी के निर्देश पर कृषि विभाग ने जिले के सभी किसानों के लिए वेस्ट डी-कंपोजर का वितरण शुरू किया है. इससे किसानों को पैरा जलाने से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण से बचने में मदद मिलेगी और साथ ही मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बढ़ेगी. किसान स्थानीय ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से बायो डी-कंपोजर प्राप्त कर सकते हैं.

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