ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश की चुनावी बिसात में नए जिलों का ऐलान अब नये मोहरे हैं. तभी तो 40 दिन में चौथे जिले मैहर का ऐलान हो गया है. हालांकि सच ये है कि कमलनाथ ने अपनी सरकार गिरने से पहले नागदा,मैहर और चाचौड़ा को जिला बनाने का ऐलान किया गया था लेकिन शिवराज सरकार ने नागदा और मैहर पर मुहर लगा दी. जाहिर है इसका श्रेय बीजेपी को मिल गया. अब बड़ा सवाल ये है इन जिलों से फायदा क्या होगा और क्या सरकारी खजाना इन्हें चलाने के लिये काफी है. आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि राज्य में चुनाव दर चुनाव कैसे नए जिले बन रहे हैं.
ये तो सभी को पता है कि राज्य में इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं. लिहाजा नए जिलों के बनने की रफ्तार भी फुल स्पीड में आ गई हैं. इसकी तस्दीक नीचे दिए गए ग्राफिक्स से होती है.
जानकार कहते हैं,छोटे जिलों में प्रशासनिक काम-काज जल्दी और बेहतर होता है,जनता के साथ प्रशासन का संवाद बढ़ता है, कानून-व्यवस्था नियंत्रण में रखना आसान होता है और सरकार का राजस्व भी बढ़ता है. लेकिन इसके साथ ही ये भी सही है कि नए जिले बनने से सरकार के खजाने पर बोझ भी बढ़ता है.
इसके अलावा नए जिला मुख्यालय बनने से वहां रहने की लागत बढ़ती है और महंगाई भी. सेवानिवृत्त IAS देवेन्द्र सिंह राय के मुताबिक ये महंगा सौदा है. नए जिले बनाने के पीछे राजनीतिक वजहें ही ज्यादा हैं.
देवेंद्र सिंह राय
कुछ ऐसी ही राय अर्थशास्त्री कपिल होलकर भी रखते हैं. उनका साफ कहना है कि इससे राज्य के खजाने पर खर्च बढ़ेगा.
कपिल होलकर
दरअसल दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा था कि नये जिले मामूली राजनीतिक लाभ देते हैं लेकिन खजाने को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं. सही तो ये होगा कि जिलों का गठन सिर्फ सियासी लाभ के लिये ना हो. वाकई जब इसकी जरूरत हो तो ही किया जाए.