Chhattisgarh Election 2023 : छत्तीसगढ़ की बीजापुर विधानसभा (Bijapur Assembly Seat) में चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है. 1 लाख 68 हजार 991 मतदाता वाली इस विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी (Congress Vs BJP) के बीच कांटे की टक्कर है. इस बार यहां कांग्रेस के वर्तमान विधायक विक्रम शाह मंडावी (Congress MLA Vikram Shah Mandavi) और बीजेपी के पूर्व मंत्री महेश गागड़ा (Ex BJP Minister Mahesh Gagda) एक बार फिर आमने-सामने हैं. पिछले दो चुनाव में इन दोनों ही उम्मीदवारों ने यहां से एक-एक बार जीत का स्वाद चखा है. इस जो जीतेगा वह 2-1 से आगे हो जाएगा.
पिछले चुनाव परिणाम कैसे रहे हैं?
2013 में महेश गागड़ा ने विक्रम मंडावी को 9 हजार 487 वोटों से पटखनी दी थी. तो वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में विक्रम ने अपनी हार का बदला लेते हुए महेश को 21 हजार 584 वोटों के विशाल अंतर से शिकस्त दी थी.
पूर्व कांग्रेसी ने बिगाड़ा विक्रम का माहौल
पहले इस सीट पर रुझान कांग्रेस के पक्ष में ही था. ऐसी चर्चा थी कि विधायक विक्रम मंडावी की जमीनी सक्रियता का सीधा लाभ उन्हें चुनाव में मिलेगा. लेकिन कांग्रेस से निष्कासित अजय सिंह ने जिस तरह से विक्रम के खिलाफ बगावती तेवर अपनाते हुए भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के आरोप लगाए, उससे चुनाव से ऐन पहले विक्रम के पक्ष में माहौल बनने की बजाय बिगड़ता गया. अब इसका फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है. टिकट की घोषणा से पहले तक जिले से नदारद रहे बीजेपी प्रत्याशी महेश गागड़ा को लेकर भी जनता में नाराजगी बरकरार है. हालांकि टिकटों के एलान के बाद से दोनों ही उम्मीदवार जमीनी कसरत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
दोनों प्रत्याशी लगा रहे हैं एड़ी-चोटी का जोर
सड़क दुर्घटना में चोटिल होने के बावजूद विक्रम चुनाव प्रचार में एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं. शहरों के मुकाबले विक्रम का ज्यादा फोकस ग्रामीण इलाकों में है. तीज-त्योहार के स्थल पर मतदाताओं को साधने से वे नहीं चूके रहे हैं. इसी तरह महेश भी चुनावी कमान खुद थामे हुए हैं. छोटे स्तर से लेकर बड़े पदाधिकारियों को टीम लीडर की भूमिका में साथ लेकर जनसंपर्क कर रहे हैं.
विक्रम के लिए बागियों के तेवर घातक
बीजापुर विधानसभा चुनाव में विक्रम के खिलाफ जो बगावती तेवर उभर रहे हैं वे उनकी जीत की दौड़ में बाधा बन रहे हैं. कांग्रेस से निकाले जाने के बाद से अजय सिंह पिछले दो वर्षों से विक्रम के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. महादेव तालाब, लोहाडोंगरी, देवगुड़ी, स्कूल जतन, बोर खनन, मूलभूत सुविधाओं के अलावा डीएमएफ मद में बड़े पैमाने पर विधायक द्वारा भ्रष्टाचार और निर्माण कार्यों में कमीशनखोरी, नियम विरुद्ध टेंडर जैसे आरोप अजय सिंह लगाते आ रहे हैं. देवगुड़ी मामले में अजय के आरोपों पर प्रशासन ने भी मुहर लगा दी थी. लगातार आरोपों के चलते विक्रम ना सिर्फ विवादों में घिरे, बल्कि उनकी छवि भी काफी हद तक धूमिल हुई. अजय के बगावती तेवर का फायदा भाजपा के साथ क्षेत्रीय दलों को भी मिलने लगा है.
महेश के लिए करो या मरो की स्थिति
भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी जैसे आरोपों के बाद भी बीजापुर विधानसभा की पिच पर विक्रम का बल्ला बोल रहा है. जिसकी मुख्य वजह महेश गागड़ा का घरेलू मैदान से दूर रहना है. 2018 में पराजय के बाद विपक्ष की भूमिका बांधने के बजाए गागड़ा बीजापुर से बाहर संगठन के आयोजनों में व्यस्त रहे. परिणाम यह रहा कि क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर हो गई. इस बीच गागड़ा के विकल्प में डॉ बीआर पुजारी का नाम सामने आया. हालांकि जैसे कयास लगाए जा रहे थे. उसके विपरीत जाते हुए बीजेपी ने गागड़ा पर भरोसा जताते उन्हें उम्मीदवार बना दिया. अब गागड़ा के सामने इस चुनाव में करो या मरो की स्थिति है, लिहाजा गागड़ा भी पिछली गलतियों से सबक लेकर चुनाव की कमान अपने हाथों में लेकर फूंक-फूंककर कदम आगे बढ़ा रहे हैं.
अब देखना होगा कि एक-एक अंकों की बराबरी पर होने के बाद इस बार विक्रम और महेश के चुनावी मुकाबले में 'पंजा' बाजी मारता है या कांग्रेस के गढ़ में 'कमल' खिलता है.
क्षेत्रीय दलों से भी बिगड़ सकता है गणित
पांच साल के भीतर बीजापुर विधानसभा में क्षेत्रीय दलों नें बूथवार अपनी पकड़ बनाई है. इनमें CPI, जनता कांग्रेस के अलावा AAP की सक्रियता की चर्चा भी जोरों पर हैं. भानुप्रतापपुर उप चुनाव में अचानक से उभरे सर्व आदिवासी समाज की क्षेत्रीय स्तर पर लोकप्रियता ने दिग्गज राजनीतिक दलों के चुनावी गणित को बिगाड़ने का काम किया. बीजापुर में भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा. यहां सर्व आदिवासी समाज द्वारा बनाई गई हमर राज पार्टी ने अपना प्रत्याशी उतारा है. चूंकि कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक ग्रामीण मतदाता हैं, लेकिन इस बार आदिवासी समाज, आम आदमी पार्टी, जनता कांग्रेस, सीपीआई की सक्रियता ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. क्षेत्रीय पार्टियों के उम्मीदवारों को जीत ना भी मिली तो भी इनके हिस्से जो वोट आएंगे, उससे नुकसान सीधे कांग्रेस को होगा.
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