
आम तौर पर सुपारी का इस्तेमाल पूजा और पान के साथ खाने में किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी सुपारी से देवी-देवताओं की शानदार प्रतिमाएं बनाई जा सकती हैं या फिर बच्चों के लिए खिलौने भी...शायद पहली बार में आप इस पर विश्वास न कर पाएं लेकिन जब आप रीवा के अवधेश और दुर्गेश नाम के दो कलाकारों से मिलेंगे तो आप बरबस ही कह पड़ेंगे कि सुपारी से तो अपनी मनचाही वस्तु बनाई जा सकती है. दरअसल रीवा में रहने वाला कुंदेर परिवार आधी सदी से भी अधिक समय से सुपारी से तरह-तरह की मूर्तियां और खिलौनी जैसी चीजें बनाता रहा है. इनकी कला को राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक सराह चुके हैं.
कैसे शुरु हुआ सिलसिला
ये बात 1942 की है. रीवा के फोर्ट रोड में भगवान सिंह कुंदेर का परिवार रहता था. भगवान के बेटे राम सिया लकड़ी के खिलौने बनाते थे.
इसी दौरान राम सिया ने सुपारी से कुछ अलग करने का सोचा.सबसे पहले उन्होंने सुपारी से सिंदुर की डिब्बी बनाई और महाराज के सामने इसे भी पेश किया. जिससे खुश होकर महाराज ने 51 रुपये का इनाम दिया था. इसके बाद राम सिया ने सुपारी से चाय के सेट से लेकर ताजमहल तक अनगिनत चीजें बनाईं.

कुंदेर परिवार सुपारी से सुंदर कलाकृतियां करीब आधी सदी से बना रहा है. लेकिन अब वो आर्थिक परेशानी का सामना कर रहा है.
साल 1960 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद रीवा आए उन्हें सुपारी से बनी वर्किंग स्टिक कुंदेर परिवार ने दी. इसके बाद 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई उन्हें तोहफे के रुप में सुपारी का टी सेट दिया गया. इसके बाद तो सिलसिला चल निकला. तब से अब तक रीवा आने वाले हर आम और खास को तोहफे में सुपारी के गणेश जी और खिलौने ही दिए जाते हैं.
आज स्थिति ये है कि डिमांड के मुताबिक वे किसी भी जीच का डिजाइन बना कर कस्टर को दे देते हैं.
परिवार के सामने परेशानी भी है
आम तौर पर कुंदेर परिवार के पास सबसे ज्यादा डिमांड सुपारी के गौर-गणेश की मूर्तियों के ही आते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि हिंदू धर्म में सुपारी को भी पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा दुर्गा की प्रतिमा की भी डिमांड रहती है. विदेशी सैलानी भी उनकी कला को देखने रीवा में आते रहते हैं. लेकिन परेशानी ये है कि बिना सरकारी मदद के अब इस कला को आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा है. परिवार का कहना है कि मौजूदा दौर में सिर्फ इस कला से परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. अब तो उनके परिवार के बच्चे नौकरियों की तलाश कर रहे हैं. जाहिर है यदि संरक्षण नहीं मिला तो ये कला इसी पीढ़ी के साथ खत्म हो सकती है. राज्य सरकार की योजना एक शहर एक उत्पाद के लिए पहले सुपारी के खिलौने को चुना गया था लेकिन बाद में जीआई टैग रीवा के आम के उत्पाद को मिल गया.