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भाजपा के राम कितने आएंगे काम

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    January 09, 2024 4:23 pm IST
    • Published On January 09, 2024 16:23 IST
    • Last Updated On January 09, 2024 16:23 IST

छत्तीसगढ़ में हाल ही में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व का संकल्प आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी ग्यारह की ग्यारह सीटें हासिल करना है. इसके लिए प्रदेश इकाई की जोरदार तैयारियां शुरू हो गई हैं. वर्तमान में पार्टी नौ सीटों पर काबिज हैं. चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह का लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए 400 से अधिक सीटें जीतकर नया कीर्तिमान गढ़ना है ,अतः राज्य छोटा हो या बड़ा,उनके लिए वहां की एक-एक सीट महत्वपूर्ण हो गई है. छत्तीसगढ़ में भाजपा संगठन के लिए संतोष की बात यह है कि राज्य में अब तक हुए चारों लोकसभा चुनाव में उसने कांग्रेस को आगे नहीं बढ़ने दिया. वर्ष 2004 में लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने  छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें जीती थीं. जीत का यह सिलसिला 2009, 2014 तथा 2019 में भी जारी रहा जहां पार्टी ने क्रमशः दस,दस व नौ  सीटें जीती थीं. इन आंकड़ों को देखें तो यह साफ है कि राज्य के मतदाताओं ने जो कभी कांग्रेस के पक्ष में थोक में वोट करते थे,वे अब भाजपा के हो गए है.

ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि 2009 में केंद्र में भाजपा की नहीं कांग्रेस की सरकार थी जिसके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. यानी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के वोट बैंक के दरकने का क्रम 2004 के आम चुनाव से शुरू हो गया था जो 2019 के पिछले चुनाव में भी जारी रहा. 20 वर्षों के इस लंबे अंतराल में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने खाते में सिर्फ एक सीट का इज़ाफ़ा कर सकी. अब लोकसभा में इस राज्य से उसके दो प्रतिनिधि हैं.

दरअसल जिस तरह  2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम विस्मयकारी थे , उसी तरह कुछ ही माह बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी कम आश्चर्यजनक नहीं थे. तब 90 में से  68 विधानसभा सीटें जीतने के बाद कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह लोकसभा चुनाव में भी बाजी मार लेगी. इस अनुमान का आधार यह था कि अधिकांश संसदीय  क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक काबिज थे. लेकिन राज्य के मतदाताओं ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया और वैसे ही नतीजे दिए जो वह पहले भी देती रही है. यानी कांग्रेस लोकसभा की 11 में से  सिर्फ दो सीटें जीत पाई.

अब प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य पुनः बदल गया है. राज्य में एक बार फिर भाजपा की सरकार बन गई है. उसके विधायकों  की संख्या भी पूर्व के मुकाबले अधिक है. पिछले तीन चुनावों में वह 50 से आगे नहीं बढ़ पाई थी. अब उसके 54 विधायक है. केवल जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र ऐसा है जहां उसका एक भी विधायक नहीं है. शेष दस में उसकी अच्छी हिस्सेदारी है. अत:अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव के संदर्भ में पिछले परिणामों को ध्यान में रखें तो सहज ही कहा जा सकता है कि भाजपा को अपना रिकॉर्ड कायम रखने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

भाजपा की संभावना के और भी कारण है. मसलन विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकलुभावन छवि के बावजूद मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया था. अर्थात लोकसभा चुनाव के संदर्भ में भी मोदी का चेहरा व चुनाव में  किए गए उनके वायदों का आकर्षण प्रबल है.

एक और कारण जो राजनीतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, वह है अयोध्या में रामलला प्राणप्रतिष्ठा समारोह. 22 जनवरी में होने वाले इस धार्मिक महामहोत्सव के काफी पूर्व से देश में धर्म विशेष के प्रति जो वातावरण बना है,उसका प्रभाव नि:संदेह छत्तीसगढ़ में भी लोकसभा चुनाव के दौरान नज़र आएगा. अतः अन्य मुद्दों की बात छोड़ भी दें तो भी 400 से अधिक सीटें जीतने के लक्ष्य तक पहुंचने की दृष्टि से भाजपा का यह सबसे बड़ा और मारक ट्रम्प कार्ड है जो चल चुका है. बड़ी बात यह है कि अनुकूल संभावना के बावजूद भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व गफलत में नहीं है तथा छत्तीसगढ़ की सभी लोकसभाई सीटों पर कड़ी नज़र रख रहा है. वह उन पांच क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे रहा है जो विधानसभा चुनाव में वांछित परिणाम नहीं दे सकीं थीं. ये सीटें हैं -जांजगीर -चांपा,रायगढ़,महासमुंद,कोरबा और बस्तर. कोरबा से श्रीमती ज्योत्सना महंत व बस्तर से दीपक बैज कांग्रेस के सांसद हैं.

अब सवाल है कि क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भाजपा की उजली संभावना को ठेस पहुंचा पाएगी ? जिन पांच लोकसभा क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर उसने बेहतर प्रदर्शन किया है ,अपना दबदबा बनाया है, क्या वहां के कांग्रेसी विधायक  पुनः उतने या उससे अधिक वोट ले पाएंगे जो उन्होंने विधानसभा चुनाव में हासिल किए थे?

यह भी सवाल है कि क्या कांग्रेस अपनी दो सीटें कोरबा व बस्तर पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएगी ? और क्या 14 जनवरी से मणिपुर से प्रारंभ होने वाली राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना पाएगी ?

इस यात्रा के वृत्त में छत्तीसगढ़ भी है जो 536 किलोमीटर के सफर के साथ चार लोकसभा क्षेत्रों सरगुजा, कोरबा, जांजगीर व रायगढ़ से होकर गुज़रने वाली है. इनके अलावा यह भी प्रश्न है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जिन राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा की केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश करेगी क्या वे मुद्दे उन रामभक्त मतदाताओं का रूख बदलने में कामयाब होंगे जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में उसे पटखनी दी ? इन सवालों के जवाब में यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस की राह बहुत कठिन है. लोकसभा चुनाव निकट हैं और इस स्थिति में कांग्रेसजनों के पास एक ही विकल्प है कि वह आपसी मतभेद व वैमनस्यता भूलाकर  एकजुटता दिखाये तथा उन मतदाताओं को विश्वास में लेने की कोशिश करें जो कांग्रेस की विचारधारा के समर्थक हैं किंतु अनेक कारणों से उससे बिदक गए हैं. यदि कांग्रेस यह काम कर पाई तो समर्थक वोटों व प्रतिबद्ध वोटों के सहारे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस  बेहतर नतीजे हासिल कर सकती है अन्यथा यह कहा जा सकता है अपनी दोनों सीटों को बचा पाना भी उसके लिए मुश्किल होगा.

दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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