एक तरफ दुनिया महिला सशक्तिकरण की बातें कर रही है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध चिंतित करते हैं. हर रोज रेप और घरेलू हिंसा की खबरें आना आम बात हो गई है. अब तो लोग भी इन खबरों पर बात करना बंद कर चुके हैं. हां वो अलग बात है कि फिर से निर्भया जैसा कोई कांड हाईलाइट हो जाए तो यही लोग कैंडल लेकर मार्च करने लगेंगे. मैंने यहां पर 'हाईलाइट' इसलिए कहा क्योंकि निर्भया जैसे अपराध तो इस देश में हर रोज हो रहे हैं. वो भी एक या दो नहीं, पता नहीं कितने ऐसे केस रोज होते हैं जो रजिस्टर ही नहीं हो पाते. इन मामलों में इतनी बर्बरता देखने को मिलती है कि सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए.
हाल ही में मध्य प्रदेश में ऐसे कई मामले आए. चाहे बात ग्वालियर में हुए गैंगरेप की हो या छतरपुर में रिश्तों को शर्मसार करने वाले रेप केस की. इन सभी मामलों के सामने आने से एक सवाल जरूर उठता है, आखिर मध्य प्रदेश महिला अपराध में इतना आगे क्यों है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े भी यही कहते हैं.
ये ऐसे मामले हैं जो रजिस्टर हुए हैं, ऐसे पता नहीं कितने मामले समाज में अपनी इज्जत बचाने के लिए सामने ही नहीं आते.
अब सवाल उठता है मध्य प्रदेश में रेप जैसे अपराध में अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा? क्या सरकार ऐसे अपराध को रोकने में असमर्थ है? तो इसका जवाब है नहीं. मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य है जहां नाबालिग बच्चियों से बलात्कार के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान सबसे पहले लाया गया. लेकिन क्या सिर्फ ऐसे कानून लाने से बलात्कार के मामलों में कमी आएगी? तो इसका भी जवाब है नहीं.
वैसे तो बलात्कार के मामलों को रोकने के लिए सिर्फ सेक्स एजुकेशन काफी नहीं है. समाज में जागरुकता, बच्चों को अच्छे संस्कार और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा भी बेहद जरूरी है. लेकिन यहां पर सेक्स एजुकेशन की प्रासंगिकता ज्यादा बढ़ जाती है. सेक्स एजुकेशन अगर मां-बाप से मिले तो ये और भी ज्यादा प्रभावी साबित होगी.
हालांकि सरकार को भी इसे पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए. कुछ लोग इस पर भी सवाल उठाएंगे. लेकिन, ऐसे में बात यह आती है कि अगर सरकार स्थानीय भाषा को बढ़ावा देने के लिए हर भाषा में पाठ्यक्रम उपलब्ध करा सकती है, धार्मिक शिक्षा देने के लिए उन पाठ्यक्रमों में धार्मिक अध्याय जोड़ सकती है तो बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के रोकथाम के लिए सेक्स एजुकेशन जैसे अध्याय क्यों नहीं जोड़ सकती? सरकार हो या समाज, हर किसी को इस बारे में सोचना बेहद जरूरी है. जब तक समाज के मन से महिलाओं के लिए विकसित घटिया सोच को खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक रेप जैसे अपराध होते रहेंगे. समाज में महिलाओं के प्रति अच्छी सोच विकसित करने की जिम्मेदारी मां-बाप और शिक्षक के ऊपर सबसे ज्यादा है. क्योंकि जिन बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार नहीं मिलते वही आगे चलकर ऐसे अपराध का रास्ता अपनाते हैं.
सुमंत सिंह गहरवार NDTV के पत्रकार हैं.जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग करना और उसके बारे में लिखना काफी पसंद है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.