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मां नर्मदा की पवित्रता

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Sanjeev Chaudhary
  • विचार,
  • Updated:
    February 16, 2024 7:29 am IST
    • Published On February 16, 2024 07:29 IST
    • Last Updated On February 16, 2024 07:29 IST

मध्यभारत की सबसे बड़ी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवी सबसे बड़ी और सबसे स्वच्छ नदी नर्मदा का जन्मोत्सव शुक्रवार, 16 फरवरी को है. माना जाता है कि गंगा दशहरा पर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. उसी तरह माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मां नर्मदा के धरती के अवतरित होने का दिन माना गया है. धर्मशास्त्रों के मुताबिक मां नर्मदा के स्नान ही नहीं दर्शन मात्र से पुण्य फल की प्राप्ति होती है. मां नर्मदा के एक-एक कंकड़ को शंकर माना गया है.

वैसे तो मां नर्मदा के जन्म की कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से एक के अनुसार वे मैकल राजा की पुत्री थीं. नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिनका पुराण भी मौजूद है. और तो और केवल नर्मदा ही ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा का विधान है. माना जाता है कि इसके तट पर कई ऋषि मुनि आज भी तपस्या में रत हैं. एक अन्य कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के पश्चात भगवान शिव के पसीने की एक बूंद धरती पर गिरी थी, जिससे नर्मदा का जन्म हुआ. इसी कारण उन्हें शिवसुता भी कहा गया है. वे चिरकुवांरी हैं और उन्हें अनंतकाल तक संसार में रहने का वरदान भी प्राप्त है.

Narmada River

फोटो: मुकुल यादव

नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के मैकल पर्वत अमरकंटक से हुआ है. यहां माई की बगिया नामक दलदली जमीन से इसका उद्गम माना गया है. जो कुछ दूरी पर स्थित कुंड से खंभात की खाड़ी तक अविरल बहती हैं. कहते हैं कि यहां मां नर्मदा का विवाह मंडप भी मौजूद है, लेकिन विवाह न होने के बाद क्रोध में आकर उन्होंने विपरीत दिशा पकड़ ली और एकांत में रहने का निश्चय किया था.

मान्यता है कि राजा मैकल की पुत्री नर्मदा के स्वयंवर के लिए उनके पिता ने यह ऐलान किया था कि जो भी राजकुमार उनकी बेटी के लिए गुलबकावली के फूल लाएगा वे उनसे उसका विवाह कराएंगे. राजकुमार सोनभद्र गुलबकावली के फूल लाने में सफल रहे थे, लेकिन नर्मदा और सोनभद्र ने एक-दूसरे को देखा नहीं था. विवाह के जब चंद दिन ही शेष रह गए थे तो नर्मदा ने अपनी दासी जोहिला से प्रेम संदेश भेजा, लेकिन जोहिला ने इसके बदले उनसे उनके वस्त्र और आभूषण मांग लिए.

Narmada River

फोटो: मुकुल यादव

जोहिला जब वही वस्त्र और आभूषण पहनकर राजकुमार सोनभद्र के पास गई तो राजकुमार ने उसे ही नर्मदा समझ लिया. इधर जब काफी देर हो गई तो नर्मदा खुद ही जोहिला को ढूंढने चल दीं. जहां पहुंचकर उन्हें राजकुमार और जोहिला साथ-साथ दिखे. उन्हें साथ देख नर्मदा अपमान की आग में जल उठीं और नर्मदा जो पलटीं, फिर पलट कर वापस नहीं आईं. यही कारण है कि ग्राम बारह में सोनभद्र और जोहिला नदियों का संगम है लेकिन जोहिला को आज भी दूषित नदी माना जाता है.

वैसे तो मां नर्मदा के बारे में कई मान्यताएं हैं, लेकिन कहा जाता है कि जो भक्ति भाव से मां नर्मदा का पूजा करता है, मां उसे पूरे जीवन काल में एक बार दर्शन अवश्य देती हैं. मां नर्मदा से निकले पत्थरों को शिव का एक रूप माना जाता है. यह रूप स्वयं प्राण प्रतिष्ठित होते हैं. इनकी प्राण प्रतिष्ठा करने की जरूरत नहीं होती. इसलिए मां नर्मदा से निकले पत्थरों की शिवलिंग के रूप में पूजा होती है. ऐसी मान्यता है कि मां गंगा, मां नर्मदा से मिलने आती हैं और यह दिन गंगा दशहरा के रूप में भी मनाया जाता है.

Narmada River

फोटो: मुकुल यादव

वैज्ञानिक दृष्टि से देंखें तो मध्य प्रदेश और गुजरात की मुख्य नदी मां नर्मदा की धारा विपरीत दिशा की ओर बहने के पीछे सबसे बड़ी वजह रिफ्ट वैली है. रिफ्ट वैली का मतलब होता है, नदी का बहाव जिस दिशा में होता है उसका ढलान उसकी विपरीत दिशा में होता है. इसी ढलान की वजह से मां नर्मदा नदी का बहाव पूर्व से पश्चिम की ओर है.

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