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किसके दावे में कितना दम

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    November 22, 2023 5:46 pm IST
    • Published On November 22, 2023 17:46 IST
    • Last Updated On November 22, 2023 17:46 IST

छत्तीसगढ़ में नई सरकार  किसकी बनेगी ? कांग्रेस या भाजपा ? दावे दोनों तरफ से है. किसका  दावा सही ठहरेगा, तय होगा तीन दिसंबर को जब मतों की गिनती होगी. लेकिन 17 नवंबर को मतदान का दूसरा व अंतिम चक्र निपटने के बाद से जो चर्चाएं चल रही हैं, उनमें यह अनुमान अधिक प्रबल है कि यदि दोनों पार्टियों के बीच पांच-छह सीटों का फासला रहा तो सरकार बनने के बाद वैसे ही तोड़फोड़ होगी जैसी कि 2019 में मध्यप्रदेश में हुई थी. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके समर्थक विधायकों ने पाला बदल दिया था नतीजतन 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत के आधार पर गठित मुख्यमंत्री कमलनाथ की कांग्रेस सरकार की  सवा साल के भीतर ही विदाई हो गई थी.छत्तीसगढ़ में भी आपरेशन लोटस की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता बशर्ते कांग्रेस को इतराने लायक बहुमत न मिले. यानी यदि वह 50-52 विधायक संख्या के आसपास ठहर गई तो उसके विधायकों के टूटने की आशंका बनी रहेगी. यह आशंका कितनी सच या गलत साबित होगी इसका खुलासा तो समय के अंतराल में होगा किंतु यदि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह,प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव तथा संगठन के अन्य नेताओं के कथन पर भरोसा करें तो भाजपा 52-54 सीटें जीत रही है. यानी उनके हिसाब से सरकार भाजपा की बन रही है.

यकीनन मतदान के बाद कांग्रेस की तुलना में भाजपा नेताओं का उत्साह अधिक छलक रहा है.एक वह समय था जब खुद भाजपाई मान रहे थे कि कम से कम इस चुनाव में कांग्रेस सरकार व भूपेश बघेल की छवि को तोड़ पाना असंभव है लिहाज़ा पार्टी की वापसी भी नामुमकिन है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने जो चक्रव्यूह रचा वह अब प्रदेश भाजपा के तमाम नेताओं की बांछे खिला रहा है.

अगर वास्तव में नतीजे भाजपा के पक्ष में आए तो क्या आपरेशन पंजा चलाने की मानसिकता में कांग्रेस है जो मध्यप्रदेश, गोवा जैसे कुछ राज्य में अपने  विधायकों के बहुमत के बावजूद गंवाती रही है ? जबकि भाजपा, देश की मौजूदा राजनीति में इस फन में माहिर है. अतीत की कुछ घटनाएं इसका उदाहरण हैं. जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है, विपक्ष के विधायकों को सत्ता का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में शामिल करने का श्रेय राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय अजीत जोगी को है जिन्होंने वर्ष 2000 में नया राज्य बनने के बाद कथित तौर पर राजनीतिक स्थायित्व के लिए भाजपा के 36 में से 13 विधायक तोड़ लिए थे. जबकि कांग्रेस के 48 विधायक थे. बसपा के तीन, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का एक व दो निर्दलीय के समर्थन से 90 सीटों की विधानसभा में सत्तारूढ़ कांग्रेस की संख्या 54 हो गई थी. फिर भी आशंका से ग्रस्त अजीत जोगी ने तोड़फोड़ की नीति अपनाई. भाजपा से अलग हुए 13 विधायकों ने तरूण चटर्जी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ विकास पार्टी के नाम से अलग पार्टी बना ली जो बाद में कांग्रेस में विलीन हो गई. इन्हें मिलाकर कांग्रेस के विधायकों की संख्या बढ़कर 61 हो गई थी. भाजपा को यह बडा़ झटका था हालांकि उसने 2003,2008 व  2013 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते और पंद्रह साल तक शासन किया. किंतु दूसरा झटका पहले से ज्यादा गंभीर था जब 2018 के चुनाव में वह सिर्फ 15 विधायकों तक सिमट कर रह गई थी. अब 2023 के चुनाव में उसे बीते वैभव के साथ पुनः वापसी की उम्मीद है.

भाजपा का चुनाव जीतना क्या महज ख्याली पुलाव है ? दरअसल उसकी उम्मीदें इसलिए बढ़ी हुई है क्योंकि उसने मैदान मारने के लिए वैसी रणनीति रची थी. यह माना जा रहा है कि चुनावी रण में मौजूद रही जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ( जोगी कांग्रेस ), अरविंद नेताम की हमर समाज पार्टी, सर्व आदिवासी समाज, आम आदमी पार्टी , गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व कांग्रेस के बागी उम्मीदवार कांग्रेस को खासा नुकसान पहुंचाएंगे.

कहा जाता है कि इन पार्टियों को विशेषकर हमर समाज पार्टी , गोंगपा व जोगी कांग्रेस को भाजपा की ओर से चुनाव के पूरे दौर में अच्छा खादपानी मिलता रहा. भाजपा को अपने चुनावी वायदों पर भी पूरा भरोसा है खासकर महिलाओं को वार्षिक बारह हजार रुपये सम्मान निधि देने का,जिसका प्रचार उसने गांव-गांव में किया और उनका भरोसा जीतने के लिए उनसे फार्म भी भरवाएं.

ये तो खैर भाजपा की बात हुई,कांग्रेस यदि सामान्य बहुमत के साथ चुनाव जीतती है तो उसकी बड़ी चिंता अपने विधायकों को एकजुट रखने की होगी.यद्यपि डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव कई दफे कह चुके हैं वे किसी भी सूरत में कांग्रेस छोड़ेंगे नहीं पर 17 नवंबर को अंबिकापुर में मतदान के तुरंत बाद  दिए गए उनके बयान से आशंकाएं सिर उठा रही है. उन्होंने कहा था यदि वे सीएम नहीं बने तो वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. अतः यह उनके पास आखिरी मौका है और वे अब सिर्फ विधायक बनकर नहीं रहना चाहते. उनके इस बयान से ध्वनित होता है कि यदि कांग्रेस की दुबारा सरकार बनीं तो संभवतः वैसा ही संघर्ष होगा जैसा कि 2018 में मुख्यमंत्री पद के लिए मुख्यतः भूपेश बघेल व टीएस सिंहदेव के मध्य हुआ था. हालांकि राहुल गांधी बेमेतरा की जनसभा में स्पष्ट रूप से कह चुके हैं किसानों की ऋण माफी के दस्तावेज पर भूपेश बघेल को ही हस्ताक्षर करने होंगे. उनकी इस घोषणा के बावजूद यदि टी एस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री का राग छेड़ा है तो इसके पीछे उनकी भावना भी है और इच्छा भी. आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है क्योंकि इसके पूर्व मतदान के परिणामों का इंतज़ार करना होगा. फिर भी यदि कांग्रेस में ऐसी नौबत आई तो टीएस का रूख महत्वपूर्ण रहेगा और तब देरसबेर आपरेशन लोटस के खिलने की भी संभावना बनी रहेगी.

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