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कैसे हुई थी माधवराव सिंधिया की मौत? PM अटल समेत पूरी संसद पहुंची थी अंत्येष्ठि में

Dev Shrimali
  • विचार,
  • Updated:
    सितंबर 30, 2024 12:52 pm IST
    • Published On सितंबर 30, 2024 11:07 am IST
    • Last Updated On सितंबर 30, 2024 12:52 pm IST

30 सितंबर, 2001 सुबह के लगभग नौ बजे थे. अचानक मोबाइल पर दिल्ली के नंबर का एक कॉल आया. उठाने पर आवाज आयी- महाराज बात करेंगे. उधर से खनकदार आवाज माधव राव सिंधिया की थी. उन्होंने बताया कि वे अभी थोड़ी देर बाद कानपुर के लिए निकलेंगे, इसलिए आज दोपहर में होने वाली हम लोगों की टेलीफोनिक मीटिंग अब शाम को लौटने के बाद ही होगी. दरअसल, सिंधिया परिवार 6 अक्टूबर की तैयारी में जुटा था. इस दिन तब के युवराज और आज के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को सामाजिक जीवन में प्रवेश कराने की औपचारिक तैयारी थी और इसके लिए सिंधिया राजघराने के संस्थापक महादजी सिंधिया की स्मृति में एक संभाग स्तरीय वृहद दौड़ का भव्य आयोजन होना था. उस मौके पर एक चार पेज का कलर परिशिष्ट प्रकाशित होना था जो अखबारों में भरकर घर-घर पहुंचाने की योजना थी और इसको तैयार करने वाली सम्पादकीय टीम का मैं भी हिस्सा था.

30 सितंबर को यह फाइनल होना था और दोपहर का समय इसको अंतिम रूप देने के लिए तय हुआ था. माधव राव इस आयोजन को लेकर बहुत ही उत्साहित थे और प्रफुल्लित भी, लेकिन 30 सितंबर को अचानक उनका दिल्ली से कानपुर जाने का कार्यक्रम बन गया.

कानपुर में थी कांग्रेस की रैली 

30 सितंबर को कांग्रेस की कानपुर में बड़ी रैली थी. इस रैली को सम्बोधित करने के लिए दिल्ली से वहां की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का जाना तय था कि अचानक उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया तो फिर उनके स्थाना पर गुलाम नवी आज़ाद का जाना तय हुआ, लेकिन उनका भी जाना नहीं हो पाया तो माधव राव सिंधिया से संपर्क किया गया. वे तो मानो तैयार ही थे, क्योंकि इस रैली के संयोजक प्रकाश जायसवाल उनके मित्र थे और उनके आग्रह को सिंधिया ने तत्काल स्वीकार कर लिया. इस नए प्रस्ताव की स्वीकृति ने हमारी टेलीफोनिक बैठक को शाम तक के लिए स्थगित करवा दिया.

दोपहर के कॉल ने उड़ाई नींद 

दोपहर में घर से निकला था मोती महल के लिए. ग्वालियर में मोती महल तब संभागीय मुख्यालय हुआ करता था और तब यहां जनसम्पर्क विभाग का संभागीय दफ्तर था और आरएमपी सिंह एडिशनल डायरेक्टर. ज्यादातर पत्रकार दोपहर में कई घंटे सिंह साहब के पास नियमित गुजारा करते थे. मैं भी घर से उसी सत्संग के लिए निकला था. मोती महल से बमुश्किल दो फर्लांग के दूरी शेष बची थी कि अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी. मैंने देखा वो यूपी का नंबर था. मैंने अपनी हीरोपुक साइड में रोकी और कॉल रिसीव किया. यह मैनपुरी से एक पत्रकार का था. अमर उजाला से जुड़े इस युवा पत्रकार से मेरी मुलाक़ात नब्बे के दशक में तब हुई थी, जब रामजन्भूमि आंदोलन के सिलसिले में भिंड और इटावा के बीच स्थित चम्बल नदी तनाव का केंद्र बनी हुई थी.

टेलीफोन पर आई थी माधवराव सिंधिया की मौत की खबर

इधर, एमपी में अयोध्या जाने वाले कारसेवकों का जमावड़ा था, जो अयोध्या कुछ की तैयारी में थे. यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी जो उन्हें वहां प्रवेश से रोकना चाहती थी. चम्बल पर भिंड के तत्कालीन कलेक्टर संजय जोशी और एसपी विवेक जोहरी के साथ मेरा भी तकरीबन चंबल पुल तक आना-जाना होता था और उसी दौरान यूपी के इन पत्रकार महाशय से जान पहचान हुई थी, लेकिन उनका कॉल आज यानी 30 सितंबर को पहली बार और वर्षों बाद आया. उन्होंने पूछा- क्या माधवराव सिंधिया कानपुर गए हैं?  मैंने कहा - जाना तो था, क्या हुआ ?

उन्होंने झिझकते हुए कहा- भाई साहब हमारे यहां यानी मैनपुरी करहल में इस समय भयंकर बरसात हो रही है. यहां एक विमान में ऊपर आग लग गयी है और उसके टुकड़े-टुकड़े गिर रहे हैं. लोग कह रहे हैं इस विमान से कांग्रेस के नेता कानपुर जा रहे थे. आप थोड़ा पता करिए.. 

इस सूचना से मैं पूरी तरह हिल गया. मैंने जनसम्पर्क विभाग पहुंचकर आरएमपी सिंह को यह बात बताई तो उन्होंने कहा कि जब तक पक्की बात न हो तब तक चुप ही रहो. मैं तत्काल उनके पास से जयविलास पैलेस की तरफ दौड़ा. वहां सब सामान्य था, फिर मैंने भी चैन की सांस ली. बाहर से पता चला कि महल के भीतर बड़ी प्रशासनिक बैठक चल रही है.  तत्कालीन कमिश्नर विमल जुल्का सहित पुलिस और प्रशासन के सभी आला अफसर  तीन अक्टूबर के आयोजन की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए बैठे थे. विमल जुल्का सिंधिया के नजदीकी नौकरशाहों में से माने जाते थे.

मैंने गेट पर खड़े व्यक्ति को अपना नाम बताया और उनसे कहा कि अंदर जाकर हरी सिंह नरवरिया जी को बोलो कि देव श्रीमाली उनसे मिलने आए हैं. हरी सिंह पूर्व विधायक थे और भिंड जिले से ही थे. लिहाजा हम लोग अच्छे दोस्त थे. वे उस समय सिंधिया के जनसम्पर्क प्रमुख थे और सभी स्थानीय राजनीतिक मामले देखते थे. थोड़ी  देर में वे बाहर आये और बुलाने का कारण पूछा. महाराज कहां हैं ? मैंने पूछा.

आपको पता तो है, आपसे सुबह बात तो हुई थी. कानपुर गए हैं. शाम को लौटेंगे. मैंने हरी सिंह से आग्रह किया कि एक बार वे दिल्ली कॉल करके चेक कर लें.  दरअसल, मैं दिल्ली से हालचाल जानना चाहता था, लेकिन हरी सिंह खीजने लगे, लेकिन मेरे आग्रह पर वे अंदर गए और 27 सफदरजंग कॉल करके अमान्य बातचीत की.  उन्होंने बहार आकर बताया महाराज कानपुर गए हैं और बाकी लोग बंगले पर अंदर ही है. उन्होंने मुझसे वजह जाननी चाही, लेकिन मैं मुस्कराकर बगैर कुछ बोले वहां से वापस लौटकर मोतीमहल आ गया सिंह साहब के पास. 

पहली खबर की ब्रेकिंग 

एक बार फिर मैनपुरी से पत्रकार का फोन आया. उसने बताया कि प्लेन पूरी तरह क्रैश हो चुका है. उसमें कोई नहीं बचा है. प्लेन में कुछ नेता और पत्रकार थे, लेकिन उनमें से कोई जीवित नहीं बचा है. नाम पता नहीं चल रहा है. पता चले तो बताना.

अब अनिष्ट की पूरी आशंका हो गयी थी. मैं खबर ब्रेक कराना चाहता था एनडीटीवी पर. तब एनडीटीवी पर आधे घंटे इंग्लिश बुलेटिन आता था और आधा घंटे का हिंदी बुलेटिन. तब इंग्लिश का स्लॉट चल रहा था. मैंने राजकुमार केसवानी जी को कॉल किया. स्व केसवानी तब एनडीटीवी के राज्य  कुछ रोज पहले ही उन्होंने ग्वालियर में मुझे संवाददाता बनाया था. तब मोबाइल के सिग्नल भी भाग्य से मिलते थे. कई किस्तों में उनसे बात हो सकी. मैंने उन्हें घटना के बारे में बताया, लेकिन सवाल यही था कि खबर कैसे ब्रेक कराई जाए.  इतने बड़े व्यक्ति की मौत से जुड़ा मामला था. इसके बाद वे आउट ऑफ़ नेटवर्क हो गए. उन्होंने संदीप भूषण जी का नंबर दिया जो तब भोपाल में रिपोर्टर थे. मेरे बारे में उन्हें ब्रजेश राजपूत जी ने बताया था जो तब सहारा में काम करते थे. संदीप से बात करके ब्रेकिंग तय हुई- मैनपुरी के पास विमान क्रैश. इसमें कांग्रेस के कई नेता दिल्ली से कानपुर जा रहे थे. वरिष्ठ नेता माधव राव सिंधिया के भी इस विमान में होने की खबर.

ब्रेकिंग के साथ ही मच गया हड़कंप 

इस ब्रेकिंग के साथ ही दिल्ली से लेकर देशभर में भूचाल आ गया. इसके साथ ही दिल्ली के हर चैनल की ओबी वैन का रुख 27 सफदरजंग बंगले की तरफ था. हालांकि तब वहां खामोशी थी, लेकिन अचानक सोनिया गांधी कार से वहां पहुंची और वे लगभग बदहवास स्थिति में दिखाई दीं. बुरी खबर सच निकली. ग्वालियर का सियासी सूर्य अस्त हो चुका था. खबर आ गई- 'माधव राव सिंधिया अब नहीं रहे.'

शोक में डूबा बेचैन शहर 

थोड़ी ही देर में यह खबर पैट्रोल में आग की तरह ग्वालियर में फ़ैल गयी. अफसर तैयारियों में जुट गए. आरएमपी सिंह ने दूरदर्शिता दिखाते हुए होटलों में फटाफट पचास रूम बुक करवा दिए और ट्रेवल्स वाले से बात कर शाम तक पचास कारों को तैयार रखने को कह दिया. पूरा शहर सड़कों पर था.  बदहवास. हर किसी को सच पता था, लेकिन फिर भी एक-दुसरे से पूछ रहा था बस इस प्रत्याशा में कि वह कह दे- महाराज को कुछ नहीं हुआ. शाम होते होते सड़कों पर करुण क्रंदन था. ग्वालियर शहर के नब्बे फीसदी घरों में शाम को चूल्हा नहीं जला था. घर-घर में शोक था और लगभग हर आंख में आंसू. शाम होते-होते मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ग्वालियर पहुंच चुके थे और शव आने पर उमड़ने वाली भीड़ को कैसे नियंत्रित किया जाए इस तैयारी में पूरा प्रशासन जुट गया था. दिग्विजय ने आते ही एयरपोर्ट से लेकर अंत्येष्टि स्थल और महल से लेकर पूरे मार्ग का पैदल अवलोकन किया.

जन नायक की अभूतपूर्व अंतिम विदाई 

सिंधिया के निधन के बाद ग्वालियर में कई रोज तक घरों में चूल्हा नहीं जला और दुकाने बंद रही. मैंने मार्क टुली को सिर्फ मूंगफली से पेट भरते देखा और बड़े -बड़े नेताओं को मित्रों के घरों में ठहरते देखा. ग्वालियर में इतने वीवीआईपी आ चुके थे कि सर्किट हाउस, रेस्ट हाउस ही नहीं सारे होटल पैक हो चुके थे. अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री अजित जोगी ग्वालियर पहुंचे तो उन्हें ठहरने तक की जगह नहीं मिली. बाद में उन्हें दर्पण कॉलोनी में बने हाउसिंग बोर्ड के दो कमरे के गेस्ट हाउस में भेजा गया.  इसमें मंडल के कर्मचारी ठहरते थे. सिंधिया की अंतिम यात्रा में ग्वालियर-चम्बल अंचल तो मानो पूरा उमड़ पड़ा था. शहर के ब्याह पुलिस को अवरोधक लगाने पड़े थे, लेकिन भीड़ उन्हें तोड़कर सिटी में घुस आयी थी. अंतिम दर्शन के दौरान लाखों लोग सड़कों पर थे.

पूरी संसद अंत्येष्टि में शामिल हुई 

संभवत देश में यह पहला मौका था जब इतना जन समूह किसी ऐसे नेता की अंतिम यात्रा में उमड़ा हो जो मौत के समय किसी संवैधानिक पद पर न हो. तब दिल्ली में एनडीए की सरकार थी. नजाकत को पहचानते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने पूरी संसद को एक साथ एक ही विमान से दिल्ली से ग्वालियर लाने का फैसला किया. केंद्र की पूरी सरकार ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री और कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा नेता माधवराव सिंधिया को श्रद्धांजलि देने ग्वालियर आया था. जानकारों का कहना था कि महात्मा गांधी के निधन के बाद यह सम्भवत देश का पहला शोक जलसा था, जिसमें गैर पदेन नेता के लिए इतनी भीड़ उमड़ी हो. सिंधिया की अंत्येष्टि का देश के सभी चैनल्स पर लाइव दिखाया गया, यह भी पहली बार ही हुआ था.

बगैर जूता-चप्पल के रहे थे दिग्विजय सिंह 

हालांकि मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और स्व माधव राव सिंधिया के बीच कभी आत्मीय सम्बन्ध नहीं थे, लेकिन दिग्विजय सिंह उनका सम्मान बहुत करते थे. माधव राव की मृत्यु के बाद से दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर में ही बारह दिनों तक डेरा डाल लिया था. वो परिवार के सदस्य की तरह हर व्यवस्था में जुटे नजर आये और ख़ास बात ये कि पूरे बारह दिनों तक उन्होंने न जूते पहने और न ही चप्पल. वे नंगे पांव ही दौड़ते-भागते दिखें.

दिग्विजय ने ही बोला था सबसे पहले ज्योतिरादित्य को महाराज 

इसी शोक काल में ग्वालियर के सिंधिया परिवार को अपना नया मुखिया चुनना था. जयविलास पैलेस के सामने स्थित मंदिर पर इसकी शाही रस्म होनी थी, जिसमें देश भर से राजे-रजवाड़े के प्रतिनिधि आये थे. राघोगढ़ के राजा की हैसियत से दिग्विजय सिंह भी इस समारोह में आगे ही मौजूद थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया के सर पर पगड़ी रखकर जैसे ही माथे पर पुरोहितों ने तिलक किया तो पहला नारा दिग्विजय सिंह ने ही लगाया था- 'महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया जिन्दावाद.'  इसके बाद सब ने बारी-बारी से कोर्निस (शाही जुहार) करके उन्हें बधाई दी थी.

देव श्रीमाली एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और NDTV से जुड़े हैं. जमीनी स्तर के मुद्दों के बारे में लिखना काफी पसंद है.

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.) 

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