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This Article is From Nov 05, 2023

चुनाव में साधु-संतों की कवायद

Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    November 05, 2023 11:32 IST
    • Published On November 05, 2023 11:32 IST
    • Last Updated On November 05, 2023 11:32 IST

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण में जिन 20 सीटों पर मतदान होगा उनमें दुर्ग संभाग की हाई प्रोफाइल सीट कवर्धा भी शामिल है. यहां से  राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री और चार बार के विधायक मोहम्मद अकबर चुनाव लड़ रहे हैं. अकबर एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी हैं जिन्हें कांग्रेस ने टिकिट दी है जबकि भाजपा ने इस समुदाय से अपनी पार्टी के किसी भी नेता को चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया. मोहम्मद अकबर ने 2018 के चुनाव में भाजपा के अशोक साहू को 59 हजार से अधिक मतों से हराकर प्रदेश में सर्वाधिक मतों से जीत का कीर्तिमान स्थापित किया था. इस बार भी वे इसे कायम रख पाते हैं या नहीं, यह देखना दिलचस्प रहेगा. वह इसलिए भी क्योंकि यहां राजनीतिक स्थितियां बदली हुई हैं. भाजपा ने यहां हिंदू मतों के धृवीकरण का कार्ड खेला है. पार्टी ने उनके खिलाफ एक ऐसे कद्दावर नेता विजय शर्मा को टिकिट दी है जो इस क्षेत्र में हिंंदूत्व का झंडा पूरे जोशखरोश के साथ लहराते रहे है. दो वर्ष पूर्व कवर्धा में झंडे के विवाद के बाद जो साम्प्रदायिक तनाव फैला और आगजनी की घटनाएं घटीं थीं, उसमे मुख्य आरोपी के रूप में विजय शर्मा का चेहरा सामने आया था. उनकी गिरफ्तारी हुई तथा कुछ महीने उन्हें जेल में रहना पड़ा.

कवर्धा  दुर्ग संभाग की प्रतिष्ठित व चर्चित सीट है. यह डॉक्टर रमन सिंह का इलाका है जो पंद्रह वर्षों तक भाजपा शासन के मुख्यमंत्री रहे. रमन सिंह स्वयं भी कवर्धा से सटे राजनांदगांव से चुनाव लड़ रहे हैं. कवर्धा में साहू वोटों की बहुलता है फिर भी यहां के बहुसंख्य हिंदू मतदाताओं ने पिछले चुनाव में जाति को परे रखकर कांग्रेस के प्रत्याशी मोहम्मद अकबर के व्यक्तित्व व कृतित्व को तरजीह दी तथा उन्हें भारी बहुमत से जीता दिया.

इस बार उनके सामने भाजपा उम्मीदवार के रूप में साहू नहीं ब्राह्मण है जिसके हाथ में धर्म का ध्वज है और चुनाव प्रचार के लिए साधु-संतों की विशाल मंडली भी. मीडिया की एक खबर के अनुसार पिछले कई दिनों छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से आए 50 से अधिक साधु-संतों ने कवर्धा में डेरा डाल रखा है.  वे आठ टोलियों में बंटकर गांव-गांव दौरा कर रहे हैं, छोटी छोटी सभाएं ले रहे हैं, दलितों के घर भोजन कर रहे हैं तथा रातजगा भी वहीं कर रहे हैं.  साधु-संतों का यह कार्यक्रम सनातन धर्म रक्षा मंच के तहत संचालित हो रहा है. विशेष बात यह है कि ये धर्माचार्य  किसी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं कर रहे हैं. गांववालों से केवल यही कह रहे हैं कि सोच समझकर वोट करें. इसी संदर्भ में मीडिया की खबर के अनुसार कवर्धा में 06 दिसंबर 2021 में संतों की विशाल संकल्प सभा हुई थी जिसमें संकल्प लिया गया था सनातन धर्म की रक्षा के लिए 2023  के चुनाव में वे कवर्धा में पुनः इकट्ठे होंगे तथा गांव-गांव में जागरूकता फैलाएंगे. कवर्धा में सक्रिय इस टोली में राष्ट्रीय सेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद तथा बजरंग दल के कार्यकर्ता भी शामिल हैं।

कवर्धा में  सनातन धर्म की रक्षा के नाम पर साधु -संतों के प्रचार अभियान का उद्देश्य स्पष्ट है- धर्म व जाति के नाम पर हिंदू वोटों का धृवीकरण. कवर्धा में भाजपा की यह रणनीति कितनी कारगर सिद्ध होगी यह अभी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मोहम्मद अकबर जितने मुस्लिम हैं ,उतने हिंदू भी. वे सर्वधर्म समभाव के प्रतीक हैं. वे अपने जनसम्पर्क के दौरान मंदिरों में जाते हैं, माथा टेकते हैं तथा आरती भी करते हैं.

कहा जाता है कि कवर्धा में उन्होंने कई मंदिर भी बनाए. उनके द्वारा निर्मित एक मंदिर रायपुर में भी है , पंडरी में कृषि उपज मंडी के निकट.  लिहाज़ा उनका बहुआयामी व्यक्तित्व भाजपा की वोटों के धृवीकरण की नीति में खासे आड़े आ रहा है. परिणाम क्या होगा , यह अभी नहीं कहा जा सकता पर पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस की जीत का अंतर विशाल था.

भाजपा बुरी तरह पिछड़ गई थी. वह 59,234 वोटों  से पराजित हुई. मोहम्मद अकबर को 1,36,320 , वोट मिले थे जबकि अशोक साहू को 77, 036. मतदान भी भारी भरकम हुआ था 82.50 प्रतिशत.

इस बार के चुनाव में यह पहली बार है जब चुनाव प्रचार के लिए साधुओं का सहारा लिया गया  हालांकि पिछले चुनावों के दौरान भी अपने प्रत्याशी भक्तगणों को जीत का आशीर्वाद देने मंदिरों व मठों के धर्माचार्य व उनके चेले छत्तीसगढ़ आते रहे हैं पर वे चुनाव प्रचार से दूर रहे. हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार की दृष्टि से भाजपा शासन में तो पंद्रह वर्षों तक राजिम में कुंभ मेले का आयोजन होता रहा. 2018 के बाद भूपेश बघेल सरकार ने यद्यपि इस पर रोक लगा दी पर कांग्रेस भी नर्म हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ती रही। इस चुनाव की बात करें तो रायपुर दक्षिण से कांग्रेस ने दूधाधारी मठ के महंत व पूर्व विधायक रामसुंदर दास को टिकिट दी है जिनके सामने भाजपा के सात बार के विधायक बृजमोहन अग्रवाल हैं. पिछले चुनाव में हार के बावजूद अच्छा प्रदर्शन करने वाले कन्हैया अग्रवाल को टिकिट न देकर महंत को लड़ाने के पीछे कांग्रेस का भी मकसद साफ है, हिंदू वोटों को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करना. हालांकि यहां वोटों का धृवीकरण नहीं , उनका विभाजन तय माना जा रहा है.

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