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This Article is From Oct 04, 2023

नया नहीं है भाजपा का दांव

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    October 04, 2023 12:20 pm IST
    • Published On October 04, 2023 12:20 IST
    • Last Updated On October 04, 2023 12:20 IST

भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के केंद्रीय नेतृत्व ने अभी हाल ही में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव  के लिए अपने लड़ाकों की दूसरी सूची जारी की. इस सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात संसद सदस्यों को मैदान में उतारा गया है.चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का,कुछ न कुछ अप्रत्याशित करने की भाजपा नेतृत्व की परम्परा रही है लिहाज़ा अब उसके ऐसे कदम आश्चर्यचकित नहीं करते. मध्यप्रदेश में 25 सितंबर को जारी की गई सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों क्रमशः नरेन्द्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते,प्रहलादसिंह पटेल तथा चार सांसदों राकेश सिंह,उदय प्रताप सिंह,गणेश सिंह व रीति पाठक के नाम हैं, जिन्हें अब विधानसभा चुनाव की अग्नि परीक्षा से गुज़रना होगा.

सूची में एक और महत्वपूर्ण नाम है पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का जिन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध चुनाव लड़ने कहा गया है. इस सूची के बाद उम्मीदवारों की तीसरी-चौथी सूची आनी शेष है. संभव है इन सूचियों में भी कुछ नयापन दिखे.

बहरहाल बड़े नामों को विधानसभा चुनाव लड़ाने के पीछे जो राजनीतिक मंशा है,उसे बेहतर समझा जा सकता है.कहा जा रहा है कि ऐसा ही प्रयोग छत्तीसगढ़ में भी होगा.यानी इस राज्य के विधानसभा चुनाव में कुछ सांसदों को टिकिट दी जा सकती है.सांसद विजय बघेल को पहले ही पाटन से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव में उतारा जा चुका है.वर्तमान में छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभाई सीटों में से 9 भाजपा के पास है. आजकल में जब छत्तीसगढ़ भाजपा की दूसरी सूची आएगी तब स्पष्ट हो जाएगा कि केंद्रीय नेतृत्व ने और कितने सांसदों को विधायकी की टिकिट दी है. वैसे चर्चा दो-तीन सांसदों के नामों की है.

भाजपा के इस राजनीतिक गणित के पीछे दूर दृष्टि है.अनेक मकसद है.विशेष रूप से अगला लोकसभा चुनाव है जिसे पुनः भारी बहुमत से जीतने की चुनौती है. इसलिए अगले दो-तीन  महीनों में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करना निहायत जरूरी माना जा रहा है. इन पांचों राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान,तेलंगाना व मिजोरम में विरोधी पार्टी की सरकारें हैं. केवल मध्यप्रदेश में उसकी सरकार है जहां चुनावी आबोहवा के लिहाज से उसकी स्थिति डांवाडोल है.यानी ये पांचों राज्य 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं,

इसीलिए केन्द्रीय नेतृत्व ने चुनाव की कमान अपने हाथ में रखी है तथा खूब नापतौल करके प्रत्याशियों के नाम तय किए जा रहे हैं. इस क्रम में कुछ नये चेहरों के साथ-साथ सांसदों को भी विधानसभा की टिकिट देना कितना सार्थक होगा , यह परिणामों से स्पष्ट होगा.

दरअसल पार्टी एक तीर से कई निशाने साधने की जुगत में है.छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव के चंद महीनों के भीतर हुए लोकसभा चुनाव को याद करें. विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 68 सीटें जीतकर कांग्रेस ने तहलका मचा दिया था.ऐसे उत्साहवर्धक परिणामों को देखने के बाद कांग्रेस को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के पक्ष में एक तरफा वोट गिरेंगे और 11 में से अधिकांश सीटें वह जीत जाएगी.यह भरोसा इसलिए भी मजबूत था क्योंकि भाजपा ने टिकिट बांटते समय ऐसे नेताओं पर दांव लगाया था जिनकी राज्य स्तरीय पहचान नहीं थी लिहाज़ा नाउम्मीदी अधिक थी लेकिन जो नतीजे आए वे हैरत अंगेज थे. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत से जिताने वाले मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में पुनः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देखकर वोट किया तथा 11 में से नौ सीटें भाजपा की झोली में डाल दी.सीमित पहचान वाले नयों को मैदान में उतारने का भाजपा का प्रयोग सफल रहा.

अब ऐसा ही प्रयोग छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी किया जा रहा है. सांसद विजय बघेल को मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र पाटन से उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक तो मुकाबले को कड़ा कर दिया तथा दूसरी ओर खुद को यह समझने का मौका दे दिया कि क्षेत्र में विजय बघेल की जमीनी पकड़ कैसी है? 2018 के विधानसभा चुनाव में दुर्ग जिले की पाटन सीट पर भूपेश बघेल ने भाजपा प्रत्याशी मोतीलाल साहू को करीब 28 हजार वोटों से हराया था.जबकि इसी दुर्ग लोकसभा चुनाव में विजय बघेल ने कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को भारी भरकम तीन लाख 91 हजार वोटों से पटखनी दी.

अब सांसद विजय बघेल पाटन में मुख्यमंत्री के खिलाफ लड़ते हुए अपनी पार्टी की पिछली हार का अंतर कितना कम कर पाएंगे या जीत के कितने करीब जा सकेंगे,यह नतीजों से जाहिर तो होगा ही किंतु परिणामों के आधार पर भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को राज्य के मतदाताओं के रूख को भांपने एवं करीब पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के संदर्भ में नई रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.

यदि विजय बघेल हार जाते हैं, जिसकी संभावना प्रबल है,तो उन्हें  पुनः टिकिट दी जाए अथवा नहीं,इस पर पार्टी विचार करेगी.अर्थात भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने की दृष्टि से कुछ सांसदों को टिकिट देकर उन्हें लोकप्रियता की कसौटी पर कसना चाहता है. इस प्रयोग से दोहरा फायदा हैं. पहला यदि टिकिट मिलने पर सांसद विधानसभा चुनाव जीत जाते हैं तो पार्टी विधायकों की संख्या तो बढ़ेगी ही दूसरा फायदा लोकसभा चुनाव में उनके स्थान पर नये को टिकिट दी जा सकेगी. दरअसल केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिहाज़ से देख रहा है इसलिए उसने इन चुनावों में समूची ताकत लगा रखी है. प्रधानमंत्री के इन राज्यों में लगातार दौरे, सभाएं व लोगों को लुभाने के लिए करोड़ों रूपयों के विकास कार्यों व योजनाओं की घोषणाएं इसका प्रमाण है.

भाजपा की रणनीति में एक प्रयोग यह भी हो सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले कुछ विधायकों को लोकसभा चुनाव भी लड़ा दिया जाए. पर यह विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर है.

पिछले लोकसभा चुनाव में नामालूम से लोगों को टिकिट दी गई थी जिन्हें बंपर जीत केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अत्यंत लोकप्रिय छवि की वजह से मिली.क्या उस दौर में यह कल्पना की जा सकती थी कि पूर्व महापौर सुनील सोनी जैसा नेता रायपुर लोकसभा सीट तीन लाख 48 हजार वोटों से जीत जाएगा ?

हालांकि रायपुर लोकसभा सीट भाजपा का अभेद्य किला रही है,पर पिछले चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ जीत का  इतना विशाल अंतर कभी नहीं रहा.

बहरहाल  चुनाव के संदर्भ में एक और तथ्य पर गौर करना जरूरी है. केंद्र में भाजपा की सत्ता के दस वर्षों में छत्तीसगढ़ की खारून सहित देश की नदियों में बहुत पानी बह चुका है. भाजपा की जीत के ट्रमकार्ड  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रभाव घटा है.अब देश आंखें मूंदकर उन्हें वोट देने की स्थिति में नहीं है.केंद्रीय नेतृत्व की यही बड़ी चिंता है.इसीलिए आगामी लोकसभा चुनाव के पूर्व होने वाले राज्यों के ये चुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट की तरह है.इनके नतीजे पार्टी की संभावनाओं के साथ  लोकसभा चुनाव की दिशा भी तय करेंगे.

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