Bhopal News: कभी अपनी हरियाली के लिए मशहूर भोपाल में अब हरे-भरे पेड़ों की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं. शहर में पेड़ न के बराबर बचे है. पहले शहर के पार्कों में जो हरियाली देखने मिलती थी, अब वो भी नज़र नहीं आ रही है, क्योंकि पार्कों का रखरखाव सही ढंग से नहीं किया जा रहा है. दरअसल ये पेड़ भोपाल के हरे फेफड़े थे जिन्हें बेरहमी से काट दिया गया है. घनी आबादी का बोझ ऐसा बढ़ा कि शहर का पर्यावरण ही बिगड़ गया है. पर्यावरणविद् सुभाष पांडे दावा कर रहे हैं कि बीते तीन सालों में भोपाल के 8000 से ज्यादा पेड़ काटे गए हैं और उसके बदले सरकार ने दूसरे पेड़ भी नहीं लगाए है.
इस मामले में NDTV ने पर्यावरणविद सुभाष पांडे से बातचीत की जिसमें उन्होंने बताया किसरकार ने शहर के बीचों-बीच स्मार्ट सिटी बनाई और शहर में हजारों पेड़ों को काटा गया . भोपाल की ग्रीनरी BHEL क्षेत्र पर टिकी हुई थी लेकिन भोपाल की बढ़ती हुई पॉपुलेशन का लोड भी BHEL की तरफ़ जा रहा है.
सुभाष पांडे
BHEL निवासी अनिल मिश्रा का कहना है कि मैं 19,70- से यहाँ रह रहा हूँ, पहले यहां 20,000 कर्मचारी BHEL में काम करते थे फिर धीरे धीरे एम्पलॉइज कम होते गए और क्वॉटर्स खंडर होते गए और उसमें जो पेड़ लगाए गए थे वहाँ से वह कर्मचारी न होने की वजह से देख रेख नहीं हो पा रही है और पेड़ों की कटाई शुरू हो गई है. मैनेजमेंट भी अब उतनी ही नज़र नहीं रख पा रही है और देख रेख के अभाव में यहाँ पेड़ कम होते जा रहे हैं. पेड़ों की देखभाल नहीं हो रही है जिसका असर जलवायु पर भी हो रहा है और लोगों की उम्र कम हो रही है जबकि BHEL क्षेत्र में बुजुर्ग सबसे अधिक पाए जाते थे.
स्वास्थ्य पर पड़ता है सीधा असर
यदि ग्रीनरी कम होती है तो इसका सीधा असर हेल्थ और हाइजीन पर पड़ता है. इसका सीधा असर लोगों की उम्र पर पड़ रहा है क्योंकि यदि ग्रीनरी कम होती है तो एयर पॉल्यूशन बढ़ता जाता है. बीते 10 सालों में भोपाल की गिनती उन शहरों में आ गई है जहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स कम होता है.