रोज़गार की तलाश में 15 वर्ष भटके, घरवालों ने मृत समझ किया अंतिम संस्कार, अब लौट के बैगा घर को आए

MP News: बैगा परिवार से आने वाले बिरिजलाल पढ़े-लिखे नहीं है. वे रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे. बृजलाल ने बताया कि वह भटकते-भटकते केरल पहुंच गए थे, वहां उन्होंने सुपारी के खेत में काम किया. इसके अलावा नारियल पानी बेचा. वहीं ये काम करने के बाद हावड़ा से मसूरी और दिल्ली जैसे शहरों तक पहुंच गया. जब वह झारखंड के जमशेदपुर पहुंचा तब वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनसे पूछताछ करके अपने संगठन में रखा. उसके बाद बिरिजलाल ने जो पता बताया उसके आधार पर समाजसेवियों द्वारा उन्हें बालाघाट लाया गया. 

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Madhya Pradesh News: बैगा जनजाति (Baiga tribe) के परिवार का मुखिया जिसको उसके ही परिवारजनों और रिश्तेदारों ने मृत मानकर अंतिम संस्कार कर दिया था, वह बैगा अब एक बार फिर अपने परिजनों के बीच है. वह पूरी तरह से स्वस्थ है और जीवित भी है. उसकी वापसी का परिवारवालों, रिश्तेदारों और गांव के लोगों ने लंबा इंतजार किया था. अब जब वह सकुशल वापस आ गया है तो इन सभी के चेहरों पर एक बार फिर से मुस्कान आ गई है.

टाटानगर से बालाघाट में हुई वापसी

15 वर्षों के इंतजार के बाद आज जमशेदपुर, झारखंड के टाटानगर से ट्रेन द्वारा बिरिजलाल की सकुशल घर वापसी हुई है.  आज सुबह बालाघाट पहुंचने पर सर्व समाज के समाज सेवियों द्वारा इस 52 वर्षीय बैगा आदिवासी बिरिजलाल का जोरदार स्वागत, अभिनंदन एवं नए जीवन को लेकर शुभकामनाएं दी गईं.

बिरिजलाल ने जिस तरह से पिछले 15 साल बिताए वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. देश में कई हिस्सों में उन्होंने भटक-भटक कर अपने जीवन के 15 वर्ष काट दिए.

क्यों भटकना पड़ा?

बैगा परिवार से आने वाले बिरिजलाल पढ़े-लिखे नहीं है. वे रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे. बृजलाल ने बताया कि वह भटकते-भटकते केरल पहुंच गए थे, वहां उन्होंने सुपारी के खेत में काम किया. इसके अलावा नारियल पानी बेचा. वहीं ये काम करने के बाद हावड़ा से मसूरी और दिल्ली जैसे शहरों तक पहुंच गया. जब वह झारखंड के जमशेदपुर पहुंचा तब वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनसे पूछताछ करके अपने संगठन में रखा. उसके बाद बिरिजलाल ने जो पता बताया उसके आधार पर समाजसेवियों द्वारा उन्हें बालाघाट लाया गया. 

नक्सल प्रभावित पथरी के ग्राम लहंगा कन्हार के सोम टोला निवासी बृजलाल को देखने के बाद अब गांव वालों की आंखों में आंसू छलक पड़े. वहीं उनके जिन घर वालों ने उन्हें मृत समझ कर तेरहवीं तक का कार्यक्रम कर दिया था और वे सभी अब उनकी वापसी को एक चमत्कार मान रहे हैं.

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