Appointment of Registrar in Harisingh Gour Central University: सागर के डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय (Harisingh Gour Central University) में कुलसचिव पद पर डॉ. सत्य प्रकाश उपाध्याय (Registrar of University) की नियुक्ति पर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. बता दें कि कुलसचिव की नियुक्ति पर संदेह होने के बाद छात्र संघ ने विरोध करते हुए जांच की मांग की थी. जिसके बाद विश्वविद्यालय के कुलपति और सागर के सांसद राज बहादुर सिंह (MP Rajbahadur Singh) को जांच की मांग करते हुए ज्ञापन सौंपा गया था. सांसद राज बहादुर सिंह ने बताया कि इस मामले की शिकायत केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान (Dharmendra Pradhan) से की गई थी, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री ने जांच के निर्देश दिए हैं.
यूनिवर्सिटी प्रशासन पर क्या हैं आरोप?
बता दें कि डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर डॉ. सत्य प्रकाश उपाध्याय का एक पन्ने पर इंटरव्यू लेटर जारी करने के निर्देश दिए गए थे. जिसके बाद से उनकी नियुक्ति को लेकर घोटाले के आरोप लगाए गए थे. बता दें कि डॉ. उपाध्याय इससे पहले संयुक्त कुलसचिव के पद पर भी रहे हैं. वे वर्तमान में प्रभारी कुलसचिव के पद पर पदस्थ हैं. उनकी नियुक्ति कुलसचिव के मूल पर किए जाने को लेकर विवाद हुआ है. डॉ. उपाध्याय के ऊपर आरोप लगाया गया है कि वह अयोग्य और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए व्यक्ति हैं. उन्हें कुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए. इसके साथ ही डॉ उपाध्याय की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठाया गया है.
सांसद को दिया गया था ज्ञापन
डॉ. सत्य प्रकाश उपाध्याय की कुलसचिव पद पर नियुक्ति को लेकर जांच की मांग की गई थी. जिसके लिए छात्र संघ और सागर के स्थानीय लोगों ने सांसद राज बहादुर सिंह को दिल्ली जाते हुए ज्ञापन सौंपा था. इस ज्ञापन में सागर विश्वविद्यालय में 2012 में कुलसचिव पद पर नियुक्त हुए डॉ सत्य प्रकाश उपाध्याय की नियुक्ति की जांच और वर्तमान में प्रभारी कुलसचिव समेत तमाम प्रशासनिक पदों से उन्हें हटाकर उचित प्रशासनिक और न्यायिक कार्रवाई करने की मांग की गई थी. इसके लिए भारत सरकार के स्तर पर एक जांच कमेटी गठित कर पूरे प्रकरण की जांच करने की मांग की गई थी. जांच के दौरान कुलसचिव उपाध्याय को तत्काल सारे प्रशासनिक पदों से दूर करने का भी आग्रह किया गया था, जिससे वे जांच के दौरान अपने पद का दुरुपयोग कर उनकी नियुक्ति और प्रभार में रहते हुए लिए गए निर्णय से जुड़े दस्तावेज से छेड़छाड़ और जांच प्रभावित न कर सकें.
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