![तोमर ने अध्यक्ष पद के लिए भरा नामांकन, क्या उपाध्यक्ष के लिए कांग्रेस की बनाई परंपरा को तोड़ेगी BJP? तोमर ने अध्यक्ष पद के लिए भरा नामांकन, क्या उपाध्यक्ष के लिए कांग्रेस की बनाई परंपरा को तोड़ेगी BJP?](https://c.ndtvimg.com/2023-12/55l0dg8o_narendra-singh_625x300_18_December_23.jpg?downsize=773:435)
Madhya Pradesh Assembly Winter Session: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा अध्यक्ष (Assembly Speaker) के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी (BJP) विधायक नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) नामांकन दाखिल किया. उन्होंने अपना नामांकन पत्र विधानसभा प्रमुख सचिव को सौंपा. नामांकन दाखिल के दौरान मुख्यमंत्री मोहन यादव, पूर्व सीएम शिवराज, कैलाश विजयवर्गीय, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार समेत कांग्रेस के नेता मौजूद रहे. वहीं उपाध्यक्ष की बात करें तो अब तक किसी ने इस पद के लिए नामांकन दाखिल नहीं किया है.
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नरेंद्र सिंह तोमर ने दाखिल किया विधानसभा अध्यक्ष के लिए नामांकन.
क्या कांग्रेस की बनाई इस परंपरा को तोड़ेगी BJP? किसके हाथों में जाएगा उपाध्यक्ष का पद
विधानसभा की परंपरा है कि अध्यक्ष का पद सत्ता पक्ष के पास रहता है. वहीं, उपाध्यक्ष का पद विपक्ष के पास रहता है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस परंपरा को तोड़ दिया था. 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई तो उन्होंने अध्यक्ष के साथ-साथ विपक्ष को मिलने वाला उपाध्यक्ष का पद भी अपने पास रख लिया था. हालांकि अब तक किसी ने उपाध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल नहीं किया है. ऐसे में अब देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी इस पुरानी परंपरा को कायम रखती है या फिर 2018 में कांग्रेस की तरफ से शुरू की गई इस नई परंपरा को आगे बढ़ाती है.
तीन साल से खाली था उपाध्यक्ष का पद
विधानसभा उपाध्यक्ष का पद तीन साल से खाली था. अब नई सरकार में ये पद भरा जाएगा. दरअसल, 15 माह के कार्यकाल में कांग्रेस सरकार ने अपनी पार्टी की विधायक हिना कांवरे को नियुक्त किया था. वो 10 जनवरी, 2019 से 24 मार्च, 2020 तक उपाध्यक्ष रहीं. वहीं कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बीजेपी ने इस पद को खाली रखा था.
56 साल के बनाए परंपरा को कांग्रेस ने 2018 में तोड़ दी थी
बता दें कि साल 1962 में पहली बार विपक्ष के विधायक को उपाध्यक्ष बनाया गया था. विपक्ष के विधायक नरबदा प्रसाद श्रीवास्तव को पहली बार विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया गया था और तब से ये पद हमेशा से विपक्ष के पास रहा है, लेकिन साल 2018 में कांग्रेस ने ये परंपरा तोड़ते हुए ये पद खुद अपने पास रख ली थी. हालांकि सरकार गिरने के बाद जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनीं तो ये पद खाली छोड़ दिया गया. दरअसल, राजनीतिक विचारधारा में भिन्नता के कारण विधानसभा के उपाध्यक्ष का पद पहली बार तीन साल तक खाली रहा.
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