MP Employment News: मध्य प्रदेश सरकार ने बेरोजगारी को लेकर जो आंकड़े दिए हैं वो विरोधाभासी हैं. हाल ही में, विधानसभा (Madhya Pradesh Assembly) में एक लिखित सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि प्रदेश में पिछले साल 35 लाख 73 हजार बेरोजगार थे, जबकि इस साल मई 2024 की स्थिति में यह संख्या घटकर 25 लाख 82 हजार हो गई है. यहां दिलचस्प ये है कि बजट के ठीक पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण (economic survey)में सरकार ने दावा किया है कि राज्य में 33.13 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं. जाहिर है इन विरोधाभासी आंकड़ों ने प्रदेश में बेरोजगारी की वास्तविक स्थिति (Unemployment in Madhya Pradesh)पर सवाल खड़ा कर दिया है. एक कड़वी सच्चाई ये भी है पंजीकृत बेरोजगारों में हजारों इंजीनियर,डॉक्टर,एमबीए और स्नातक शामिल हैं.
मध्य प्रदेश सरकार के बेरोजगारी के आंकड़े: उलझन और सवाल
मध्य प्रदेश सरकार का दावा है कि 2023 की तुलना में मई 2024 तक 9,90,935 बेरोजगारों की संख्या कम हो गई है. इसके अलावा, पिछले तीन वर्षों में 2.32 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां मिली हैं. विधानसभा बजट सत्र के पहले दिन, राज्य कौशल विकास एवं रोजगार राज्यमंत्री गौतम टेटवाल ने यह जानकारी सदन में प्रस्तुत की. यह स्थिति एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि बाकी 7 लाख 58 हजार बेरोजगार कहां गए? कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने कौशल विकास और रोजगार विभाग से प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या और उसमें पुरुषों और महिलाओं का अनुपात जानना चाहा था. सरकार ने जवाब दिया कि पिछले साल प्रदेश में 35 लाख 73 हजार बेरोजगार थे, जबकि इस साल मई 2024 तक यह संख्या घटकर 25 लाख 82 हजार हो गई है.
बेरोजगारी के आंकड़ों में विरोधाभास
जाहिर है इस विरोधाभास को सरकार ही दूर कर सकती है लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं उसमें कई चिंताजनक बातें भी हैं. पंजीकृत बेरोजगारों में उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या भी चिंताजनक है. मसलन प्रदेश में इंजीनियरिंग की डिग्री धारी बेरोजगारों की संख्या सवा लाख के करीब है. MBA डिग्री धारी भी हजारों की संख्या में बेरोजगार हैं.
अब जरा इस मसले को सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही विस्तार से समझ लेते हैं. तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार विभाग के अनुसार, 31 मई 2024 तक मध्य प्रदेश रोजगार पोर्टल पर कुल 25,82,759 आवेदक पंजीकृत हैं. इसमें बेरोजगारों की संख्या सबसे ज्यादा स्नातक डिग्री धारियों का है. इनकी संख्या 8 लाख से भी ज्यादा है.
वैसे भोपाल से लेकर दिल्ली तक ओबीसी को लेकर सियासत खूब होती है. मध्यप्रदेश में जाति के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा बेरोजगार ओबीसी समुदाय से ही है. उनकी संख्या 10 लाख से ज्यादा है. दूसरे नंबर सामान्य वर्ग के लोग हैं जिनकी संख्या करीब 7 लाख है.
अब सवाल ये है कि जब प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या इतनी है तो सरकार क्या कर रही है. सरकार के दावों को छोड़ भी दें तो भी कौशल विकास और रोजगार योजनाओं सरकारी खर्च भी आप जान लीजिए. जिससे ये सवाल पैदा होता है कि इतना खर्च करने के बाद भी हालात में सुधार क्यों नहीं होते?
आलम ये है कि सरकार ने पिछले 7-8 सालों में 110 अरब से ज्यादा रूपये खर्च कर दिए लेकिन बेरोजगारों की तादाद घटने की बजाय बढ़ती जा रही है. जाहिर इस मुद्दे पर और ठोस प्रयास करने की जरूरत है.
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