MP में मानवाधिकार आयोग को 'अधिकार कब'? 21 महीने से अध्यक्ष नहीं, 4.7 हजार शिकायतें पेंडिंग 

Human Rights Violation : मध्य प्रदेश में मानवाधिकार आयोग को खुद ही 'अधिकार' की तलाश है... ये बात आप भले ही मजाक में कह लें लेकिन राज्य मानवाधिकार आयोग की हालत कुछ ऐसी ही है. यहां 4 हजार से अधिक शिकायतें लंबित हैं.

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MP Commission : मध्य प्रदेश में मानवाधिकार आयोग को खुद ही 'अधिकार' की तलाश है... ये बात आप भले ही मजाक में कह लें लेकिन राज्य मानवाधिकार आयोग की हालत कुछ ऐसी ही है. यहां 4 हजार से अधिक शिकायतें लंबित हैं. यही नहीं सरकार के पास भी आयोग द्वारा की गई सैकड़ों अनुशंसाएं भी सरकार के पास लंबित है. आयोग को लेकर गंभीरता का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि राज्य में आयोग के अध्यक्ष का पद ही 21 महीने से खाली पड़ा है. ऐसे में राज्य में होने वाले तमाम मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले की सुध लेना काफी मुश्किल हो गया है. दरअसल मानवाधिकार से जुड़े मामलों में अंतरिम राहत प्रदान करना जिसमें मुआवजा या हर्जाना शामिल होते हैं, उनकी सिफारिश आयोग ही सरकार से करता है. राज्य में आयोग का करीब-करीब ठप्प पड़ने की वजह से मानवाधिकार ज़ुडे़ उल्लंघन मामलों की जांच भी नहीं हो पा रही है. रिपोर्ट में आगे बढ़ने से राज्य आयोग की स्थिति पर एक निगाह डाल लेते हैं.

अब एक केस स्टडी से हालात को समझिए- साल 2022 में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले 22 साल के विचारधीन बंदी गोलू सारथी ने कमला नगर थाने में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस मामले का मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया. आयोग ने सरकार से साल 2023 में पांच लाख रुपये गोलू के परिजनों को देने की अनुसंशा की. लेकिन अब तक गोलू के परिजनों को एक रुपया भी सरकार की तरफ से नही मिला. गोलू के भाई निमंकर सारथी दिहाड़ी मजदूर हैं. हमने उसने बात की तो पता चला की भाई की आत्महत्या के बाद किसी ने सुध तक नहीं ली. मृतक के भाई निमंकर सारथी ने बताया कि मेरे भाई को पुलिस वाले रात में थाने लेकर गए थे उसने थाने के अंदर आत्महत्या कर ली थी. पुलिस वालों ने बताया था कि उसने दरी फाड़ कर फांसी लगा ली थी. सरकार की तरफ से हमें एक भी रुपए नहीं मिला , सरकार के द्वारा सहायता मिले तो अच्छी बात है.

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आम तौर पर मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं. मध्यप्रदेश में फिलहाल एक सदस्य को ही कार्यवाहक बनाकर काम कराया जा रहा है. हालांकि मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोहर ममतानी का कहना है कि हर साल अनुशंसाएं होती रहती हैं. फिलहाल 260 अनुशंसाएं सरकार के पास लंबित है. जिसमें से कुछ अनुशंसा काफी पुरानी हैं. आयोग की अनुशंसाएं बाध्यकारी होती हैं लिहाजा इसका पालन किया जाना आवश्यक है. यदि इसमें देरी होती है तो वो मानवता की दृष्टिकोण से इसे ठीक नहीं माना जाता. दूसरी तरफ राज्य के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के मुताबिक आयोग की अनुशंसाओं पर सरकार गंभीर है और जल्द ही लंबित मामलों को निपटा दिया जाएगा.

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