MP News in Hindi: मध्य प्रदेश पर्यटन (Madhya Pradesh Tourism) क्षेत्र के मामले में बालाघाट (Balaghat) अग्रणीय जिलों में शामिल है. यहां पर कई शताब्दी पुराने स्मारक से लेकर कई पौराणिक स्थान भी हैं, जो पुरातत्व विभाग के पास संरक्षित करने के लिए अधीन है. लेकिन, उन पौराणिक स्थलों की स्थिति चिंताजनक बन गई है. फिलहाल, हम बात कर रहे हैं बालाघाट से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित हट्टा की बावड़ी की. यह बावड़ी लगभग तीन सौ साल पुरानी है, जिसकी दीवारें अपने अस्तित्व को बचाने की गुहार लगा रही है... आइए इसके बारे में आपको थोड़ी और जानकारी देते हैं.
हट्टा की बावड़ी का इतिहास
बालाघाट जिले में स्थित हट्टा की बावड़ी का इतिहास तीन शताब्दी पुराना है. दरअसल, इस बावड़ी को नागपुर शहर बसाने के समय बुलंद शाह ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था. यह बावड़ी सैनिकों के रुकने, आराम करने और पीने के पानी के लिए बनाई गई थी. इस बावड़ी पर तीन राजवंशों का शासन रहा... जिसमें हैहय, गोंड और भोसले शामिल हैं. ऐसे में इनमें इन वंशों की स्थापत्य कला की कलाकृतियां आज भी नजर आती है.
1988 में हुई पुरातत्व विभाग के हवाले
लोधी जमींदारों के वंशज प्रताप नगपुरे ने बताया कि यह बावड़ी तीन राजवंशों से होकर जमींदारों तक पहुंची. ऐसे में ये सन् 1818 में लोधी जमींदारों के हाथ में चली गई. इसके बाद आजादी के बाद तक यह बावड़ी लोधी वंश के पास ही रही थी. प्रताप नगपुरे ने बताया कि फरवरी 1988 में यह बावड़ी पुरातत्व विभाग के सौंप दी गई.
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अब जर्जर होने लगी बावड़ी
अब यह बावड़ी जगह-जगह से जर्जर होने लगी है. वहीं, यहां पर आने वाले पर्यटक भी यहां स्वच्छता को नजरअंदाज करते हैं. ऐसे में यहां पर कचरे का अंबार लगा हुआ है. ऐसे में पर्यटकों को भी इन स्मारकों को संरक्षित करने के लिए जागरूक होने की जरूरत है. वहीं, पुरातत्व विभाग का कहना है कि इसके संरक्षण के लिए विभाग जरूरी कदम उठा रहा है.
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